उन्नति की दासता

उन्नति की दासता

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बीस के बीस मेरी होगी और

फिर उन्नीस आपकी

कभी उन्नीस आपकी हो

जाएगी तो फिर बीस मेर।


ये मौसम की मार का असर है,

नाक बंद, सांस बंद,

जरा हौले हौले झींकना चाहे

बीस उन्नीस भी पड़े कम।


सुबह का पल, हाथ में रुमाल,

मौसम का कमाल,

मौसम के रुख देखिए,

घर घर में एलर्जी का है धमाल।


तो बात करते करते सांस भी लीजिये,

छींकिये और नाक पे रुमाल रखिये।

ये मौसम का असर है फागुन तक रहेगा

जो एलर्जी में रहेगा वो यूँ ही जियेगा।


आप सभी का दर्द मेरे

जैसा हमदर्द ही जानेगा।


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