उल्कापिंड
उल्कापिंड
आभा एक बड़ी होनहार बच्ची थी। वो पढाई में भी काफी होशयार थी और हमेशा क्लास में अव्वल आती थी। इसको रात में तारे देखना बहुत अच्छा लगता था। जब भी वो लोग छत पर सोते तो वो घंटों तारों को निहारती रहती। अपने पापा से भी कई बार तारों के बारे में पूछती कि वो जो सबसे ज्यादा चमकने वाला तारा है उसका क्या नाम है और जब कभी तारा टूटता दिखाई देता तो पूछती के ये क्या है। उसके पापा भी जितना वो जानते थे उसे बता देते और जो नहीं जानते होते वो अगले दिन किसी किताब से पढ़ कर उसे बता देते। तारों के बारे में दो तीन किताबें भी उन्होंने उसे ला कर दे दीं थीं।
एक बार आभा के जन्मदिन पर उसके पापा ने उसे एक दूरबीन ला कर दी। उस दिन के बाद तो वो हर रोज रात को करीब एक घंटा छत पर ही बैठी रहती और चाँद और तारे देखती रहती। अब वो अपने पापा से तारों के बारे में अपने पसद की किताबें भी मंगवाने लगी थी और उन्हें पढ़ती रहती। दसवीं में उसके बहुत अच्छे नंबर आये और उसके पापा उसे मेडिकल ले कर देना चाहते थे पर उसने जिद करके आर्ट्स लिया। वो खगोलशास्त्र में अपनी डिग्री करना चाहती थी। उस का एडमिशन भी एक अच्छे कॉलेज में हो गया जहाँ वो एस्ट्रोनॉमी में डिग्री करने लगी।
उसका समय या तो लाइब्रेरी में बीतता था जहाँ वो तारों, ग्रहों और उल्कापिंडों के बारे में पढ़ती रहती थी या फिर वो अपने डिपार्टमेंट में लगी बड़ी सी दूरबीन से रात में उन्हें देखती रहती थी। उसकी लगन और मेहनत के कारण आभा ने ग्रेजुएशन में यूनिवर्सिटी में टॉप किया। उसके बाद आगे की पढाई के लिए उसने इसरो में आवेदन किया और उसका सिलेक्शन एक तीन साल के उल्कापिंडों के अध्यन के कोर्स में हो गया।
इसरो में उसे अच्छे टीचर, अच्छा सीखने का माहौल और अच्छे उपकरण मिले जिसके कारण उसका उल्कापिंडों में इंटरेस्ट और बढ़ गया। बाकी स्टूडेंट्स के मुकाबले वो अपने अध्यन में दुगना वक्त देती थी। धीरे धीरे इसरो के डायरेक्टर भी उसकी लगन देख उसे पसंद करने लगे और वो उनकी चहेती स्टूडेंट बन गयी। उसका तीन साल का कोर्स पूरा होने पर डायरेक्टर ने उसे इसरो में ही नौकरी दे दी और उस को उस डिपार्टमेंट में लगा दिया जहाँ नए नए उल्कापिंडों की खोज होती थी।
एक दिन आभा दूरबीन से ग्रहों और तारों को देख रही थी कि उसकी नजर एक ऐसे उल्कापिंड पर पड़ी जो की आकार में बहुत ही बड़ा था और सीधा धरती की तरफ ही आ रहा था। थोड़ा और ध्यान पर देखने से उसने पाया की इस उल्कापिंड का आकार करीब करीब धरती से आधा है। हालाँकि उस वक्त वो जितनी दूर था और जिस रफ़्तार से वो धरती की तरफ बढ़ रहा था उसे करीब एक साल लगना था धरती पर पहुँचने के लिए। आभा को लगा कि अगर ये उल्कापिंड धरती से टकरा जायेगा तो धरती पर जीवन ख़तम हो जायेगा। वो भागी भागी इसरो के डायरेक्टर के पास गयी और उन्हें सब कुछ बताया। डायरेक्टर को भी जब पूरी तरह तसल्ली हो गयी तो उन्होंने अगले दिन सभी साइंटिस्ट की मीटिंग बुलाई और नासा से भी कांटेक्ट किया।
नासा ने भी अपनी तरफ से इसे कन्फर्म किया और उस उल्कापिंड का नाम आभा के नाम से रखा। अंदर ही अंदर नासा ने इस उल्कापिंड को नष्ट करने की तैयारी जी जान से शुरू कर दीं। उन्होंने एक यान बनाया जिसमें की बड़ी बड़ी ड्रिल्स थीं और जिससे कि उस उल्कापिंड में एक बड़ा सा छेद करके उसमें बम प्लांट कर ब्लास्ट करना था। उसके लिए चार साइंटिस्ट को जाने के लिए चुना गया। इन चार में आभा भी एक थी। जब इस यान ने उड़ान भरी तो उल्कापिंड के टकराव को बस एक महीना रह गया था। धरती पर जीवन बचाने का बस सिर्फ ये ही एक तरीका बचा था।
यान पंद्रह दिनों में उस उल्कापिंड के पास जाकर उसपर उतर गया। सूर्य के होते बाहर का तापमान करीब एक हजार डिग्री सेंटीग्रेड था और इसलिए कोई बाहर नहीं निकल सकता था। उन्हें सिर्फ उसी समय काम करना पड़ता था जब सूर्य नहीं होता था। काम शुरू करते ही एक नयी मुसीबत से सामना हुआ। उस उल्कापिंड की जमीन बहुत ही सख्त थी शायद वो सारा लोहे का बना हुआ था। ड्रिल मशीन बड़ी मुश्किल से ड्रिल कर पा रही थी और दिन में कुछ मीटर ही ड्रिल हो पाति थी। हालाँकि अच्छे नतीजे के लिए उन्हें कम से कम एक किलोमीटर अंदर तक उस बम को प्लांट करना था। ऐसे करते करते उन्हें चौदह दिन और बीत गए और अब एक आखरी दिन बचा था।
आभा उस दिन बैठी सोच रही थी कि शायद अगले दिन पृथ्वी ख़तम हो जाएगी। वो ये भी सोच रही थी की इस समस्या का क्या कोई हल है या नहीं। उस को अपने पापा की याद भी आ रही थी जो की बेटी के सफल होने की आस लगाए धरती पर अपनी बेटी की राह देख रहे थे। तभी उसके मन में एक ख्याल आया और उसने अपने साथियों से कहा। उसके साथी हालाँकि उससे सहमत नहीं थे पर और कोई चारा न देख उन सब ने हामी भर दी। वो सब स्पेशल सूट पहन कर सूरज के होते हुए यान से बाहर निकले। असल में आभा के दिमाग में ये आया था की हजार डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पर लोहा थोड़ा पिघल जायेगा और ड्रिल करने में आसानी होगी। और हुआ भी ऐसा ही। कुछ ही घंटों में वो एक किलोमीटर तक पहुँच गए। उन्होंने बम प्लांट किया और जल्दी से यान में बैठ कर उस उल्कापिंड से चल दिए और बम में ब्लास्ट कर दिया।
उधर धरती पर उस के पिता को आभा की याद आ रही थी। आज दिवाली की रात थी और उन्होंने आभा के बगैर दिवाली कभी नहीं मनाई थी। अचानक उन्होंने देखा जैसे की एक तारा टूटा है पर ये गायब होने की बजाए आकार में बढ़ रहा था और ऐसे लग रहा था की ये धरती की और ही आ रहा है। आभा के पिता को कुछ कुछ समझ में आ रहा था कि शायद आभा असफल हो गयी कि तभी दीवाली की आतिशबाजी की तरह आकाश रौशनी से भर गया। वो उल्कापिंड छोटे छोटे टुकड़ों में बँट गया था और करीब सभी टुकड़े धरती की सतह पर पहुँचने से पहले ही ख़त्म हो गये थे। जो पांच दस टुकड़े धरती की सतह पर पहुंचे भी थे वो बहुत छोटे होने के कारण कोई नुक्सान नहीं पहुंचा सके थे। तभी फ़ोन की घंटी बजी। दूसरी तरफ आभा थी। वो कुछ बोल नहीं पा रहे थे और उनकी आँखों में ख़ुशी के आंसू थे। उन्हें आभा पर नाज था कि वो इस धरती को बचाने में सफल रही और उन्हें लगा की आभा भी इस आतिशबाजी का उनके साथ में दिवाली मनाती हुई आनंद ले रही है।