Nisha Nandini Bhartiya

Drama

5.0  

Nisha Nandini Bhartiya

Drama

तुमने क्या पढ़ा

तुमने क्या पढ़ा

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कितना सुंदर समा था। चारों तरफ हरियाली ही हरियाली, ऊँचे -नीचे, टेढ़े-मेढ़े पहाड़। आकाश मैं इंद्रधनुषी रंग, बादलों से झरती नन्ही नन्ही बूंदे। चारों तरफ़ खिले हुए रंग बिरंगे फूल, कचनार की महकती कलियाँ। पहाड़ पर अकेले घूमते हुए जोशी जी आनंद में डूबे हुए आनंद ले रहे थे।

कुछ नये जोड़े हाथों में हाथ लिए, आँखों में आँखें डाले दुनिया की नजरों से दूर कोनों में बैठे बतिया रहे थे। एक जोड़े का वार्तालाप घूमते हुए जोशी जी के कानों में स्पष्ट सुनाई दे रहा था। शायद दोनों एक दूसरे को अपना परिचय दे रहे थे। लड़के ने कहा- मैंने तकनीकी पढ़ाई की है। और लड़की ने कहा- मैंने व्यवहारिक पढ़ाई की है। अब तकनीकी और व्यवहारिक को लेकर दोनों के बीच बहस शुरू हो गई थी। दोनों ने इधर-उधर घूमते हुए जोशी जी को बुलाया।

क्षमा कीजिए सर. आप पढ़े लिखे लगते हैं, क्या आप हमारी समस्या का समाधान कर सकते हैं।

जी आप बताए समस्या क्या है ? जोशी जी ने कहा- आप लोग किस विवाद में उलझे हुए हैं।

शुरूआत लड़के ने की- सर मेरा नाम अमन सिंह है। मैंने महाराष्ट्र विश्व विद्यालय से सिविल इंजीनियर की पढ़ाई की है और अब मैं दिल्ली की बड़ी कंपनी में कार्यरत हूँ।

अब लड़की ने अपना परिचय दिया- सर, मेरा नाम रीता है। मैंने कला क्षेत्र से बी.ए किया है लेकिन फिलहाल मैं घर पर रहकर ही गृहकार्य की नौकरी कर रही हूँ, व्यवहारिक होकर जीवन जीने की कला सीख रही हूँ।

जोशी जी ने दोनों बच्चों की हौसला अफजाई की, दोनों की प्रशंसा की, फिर बड़े धैर्य से पूछा- तो आप दोनों का विवाद किस बात पर है ?

अमन ने बोलना शुरु किया- सर, हमारे माता-पिता हमारा रिश्ता करना चाहते हैं, इस लिए हम लोगों को बातचीत करने का मौका दिया है। हम दोनों में व्यवहारिक शिक्षा और तकनीकी शिक्षा को लेकर बहस हो रही है।

लड़के ने कहा- मुझे तकनीकी शिक्षा प्राप्त नौकरी पेशा लड़की चाहिए लेकिन यह तो नौकरी नहीं करती है। यह व्यवहारिक शिक्षा को अधिक महत्व देती है। यह जीवन जीने की कला सीख रही है। अब आप ही बताएँ कि क्या जीवन जीना भी कोई सीखने की कला है। जीवन तो हर मनुष्य स्वंय जीता है। पशु पक्षी भी जीते हैं। इसके द्वारा कोई धन प्राप्ति नहीं सकती है। जीवन जीने के लिए धन चाहिए लेकिन रीता अभी कुछ समय तक नौकरी करना नहीं चाहती है। मुझे रीता पसंद है पर मैं इससे शादी नहीं कर सकता क्योंकि यह तकनीकी ज्ञान से अधिक व्यवहारिक ज्ञान को महत्व देती है।

जोशी जी ने बड़े धैर्य से अमन की बात सुनी फिर रीता की तरफ देख कर बोले- बेटा तुम भी अपने विचार रखो।

रीता ने बड़ी गंभीरता से बहुत ही मधुर आवाज में कहा- चाचा जी आप तो सब जानते ही हैं कि आजकल सभी लड़कियां भी पढ़ लिख सिर्फ नौकरी करने की कला में महारथी होती है। गृहकार्य से अनभिज्ञ होती हैं। मैंने अपने भैया-भाभी को देखा है दोनों अकेले रहते हैं। दोनों मिलकर लगभग दो लाख महीने का कमाते हैं लेकिन घर में हमेशा कमी ही रहती है। भाभी को चाय बनाना तक नहीं आता है। हर काम के लिए नौकरों पर आश्रित रहती हैं। कमाई का आधे से ज्यादा हिस्सा नौकरों पर चला जाता है। उसके बावजूद घर में सुख शांति नहीं है।

भैया-भाभी में बात-बात पर झगड़ा होता रहता है। जब दोनों घर आते हैं तो थक जाने के कारण दोनों के मन अशांत रहते हैं। बच्चे नौकरों के भरोसे पलने के कारण बिगड़ रहे हैं। उनको माँ-बाप का पवित्र प्यार नहीं मिल रहा है। मेरा आठ साल का भतीजा अपनी आयु से अधिक बड़ा हो गया है। स्कूल से आकर सारे दिन मायूस सा रहता है। नौकरों के साथ रहकर कुछ अपशब्द भी बोलना सीख गया है। पढ़ने में उसका मन बिल्कुल नहीं लगता है। माता-पिता के प्यार की कमी के कारण उसे बात-बात पर गुस्सा आता है।

दूसरी तरफ मेरी मां हैं जिन्होंने केवल दसवीं तक पढ़ा है लेकिन गृहकार्य में निपुण हैं। पिताजी बैंक में कार्यरत हैं। सिर्फ पचास हजार रुपए कमाते हैं लेकिन हम तीन भाई-बहन और माँ-पिताजी लेकर पाँच लोगों का खर्च बहुत ही अच्छी तरह हो जाता है बल्कि अच्छी खासी बचत भी हो जाती है। माँ हर काम बहुत सलीके से करती हैं। थोड़ा भी बर्बाद नहीं करती हैं। मैंने अपनी बाइस साल की उम्र तक माँ- पिताजी को कभी झगड़ते नहीं देखा। दोनों बहुत अपनत्व भाव से रहते हैं। हम तीनों भाई बहनों की परवरिश भी बहुत ही सलीके से अच्छे संस्कारों के साथ हुई है। अब बी.ए की पढ़ाई पूरी करके मैं भी माँ के साथ जीवन जीने की कला सीख रही हूँ। माँ कहती है कि जिसने यह कला सीख ली उसके जीवन में सुख ही सुख है।

माँ का कहना है कि सुख धन से नहीं खरीदा जाता है। जीवन जीने की कला से सुख आता है। चाचाजी आप तो मेरे पिता तुल्य हैं। अब आप ही बतायें क्या माँ गलत कहती है ?

बहुत देर से दोनों की बातें सुनने के बाद जोशी जी ने अमन से कहा- अमन तुम कुछ घर का काम जानते हो जैसे बिस्तर ठीक करना, थोड़ा बहुत चाय खाना आदि बना लेना।

अमन ने तपाक से कहा- अरे सर, आप यह कैसी बातें कर रहे हैं। यह सब काम पुरुष का नहीं है। मुझे यह सब कुछ नहीं आता है। मेरी माँ और बहनें और नौकर यह काम करते हैं।

जोशी जी ने कहा- शादी के बाद जब तुम अपनी पत्नी के साथ अकेले रहोगे तब कौन करेगा ? 

अमन ने कहा- मेरी पत्नी।

तो बेटा जब तुम घर का कार्य नहीं कर सकते तो पत्नी कैसे दोहरी भूमिका निभायेगी। क्या वो इंसान नहीं है ? और बेटा, नौकरों के भरोसे घर नहीं चलता है। ऐसे घरों में सदैव कलह रहती है। बच्चे संस्कार हीन रह जाते हैं। तुमने रीता के भैया-भाभी का हाल तो सुन ही लिया है और इस कलियुग में न जाने कितने लोग सिर्फ पैसे को महत्व देते हैं। जिसके कारण उनका जीवन जीते जी नरक बन जाता है। आने वाला भविष्य भी बिगड़ता है। मैं तो इक्कीसवीं सदी में भी रीता जैसी समझदार लड़की को देखकर आश्चर्य चकित हूँ। यह कितनी गुणी है। इससे विवाह करके तुम्हारा जीवन स्वर्ग समान हो जायेगा आने वाली पीढ़ियाँ भी संस्कारी होगी और अमन बेटा, कोई भी काम स्त्री-पुरुष का अलग अलग बंटा हुआ नहीं होता है। जिस तरह स्त्री दोहरी भूमिका निभाती है, वैसे ही पुरुष को भी दोहरी भूमिका निभाना चाहिए। अमन, मैं तो कहूँगा कि अगर तुम अपने वैवाहिक जीवन को सुंदर और सुखमय बनाना चाहते हो तो तुम भी रीता के साथ मिलकर जीवन जीने की कला सीख लो। फिर चाहे दोनों नौकरी करो। जीवन सदैन सुख-शांति से पूर्ण होगा।

जोशी जी की बातें अमन को बुरी लग रही थीं पर उनमें सच्चाई की झलक थी। उसने जोशी जी के चरण छुए और कहा- सर आपने मेरी आँखें खोल दी। मैं विवाह तो रीता से ही करुँगा लेकिन जीवन जीने की कला सीखने के बाद।

रीता बहुत प्रसन्न थी। दोनों ने जोशी को धन्यवाद दिया और अपने गंतव्य पर चल दिए।


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