तुम बदल गए हो ।
तुम बदल गए हो ।
सबक: उस दिन दोस्ती के बारे में मैंने जाना की जब दोस्ती का रंग गहरा हो रहा हो, तो उससे रिश्तेदारी के सिंदूर से रंग दो। दोस्ती का इससे ख़ूबसूरत अंत नहीं हो सकता। मुफ्त की शिक्षा है इसलिए मुफ्त के समय में ही इसका आंकलन करे।
पूरबी, नाम काल्पनिक है क्योंकि उसे बुरा न लग जाये। एक रोज यूँ ही राजीव चौक मेट्रो स्टेशन पे दोस्ती हो गई थी। किसे पता था की क्या रंग दिखलाएगी।
लेकिन बीतते वक़्त के साथ हमारी दोस्ती का रंग गेहरुआ रंग से भी ज्यादा गहरा हो गया था। बता दूँ कुछ अलग नहीं थी हमारी दोस्ती, बाकी कहानियों की तरह ही थी, लेकिन हमारी कहानी हमारे लिए खास थी।
वो अकसर मेरे अधूरे शब्दों को पूरा कर दिया करती थी। जब महफ़िल में मेरा पलड़ा कमजोर पड़ जाता तो वह कोई व्यंग मर देती। साथ में हम हमेशा जीतते थे और अगर हार भी जाये तो कोई दुख नहीं था क्योंकि गम में बराबर की हिस्सेदारी होती थी।
धीऱे-2 मुझे अपनी ज़िंदगी अच्छी लगने लगी। हम अक्सर ही सुबह-2 घूमने निकल जाते, कभी बंगला साहिब तो कभी इंडिया गेट। रात को ऑफिस के बाद छत पे गुटरगूँ करना भी तय था। इन सब के बीच के फासले को कम्बखत सोशल मीडिया ने भर दिया था। हर रविवार वो सुबह शर्माजी की डेरी से दूध और बंसल अंकल की दुकान से मैगी ले आती। 3 महीने में मैंने भी अदरक वाली चाय बनाना सिख लिया था। और ये बात कहना झूठ न होगा की हमारी मैगी कभी 2 मिनट में नहीं बनती थी।
बहुत थोड़े वक़्त में बहुत सारी यादें संजो ली थी, दर्द तो होना। और एक रोज उसने उससे मिलवाया। अरे ये तो पियूष है। उसका दोस्त। माफ़ी चाहूंगा। हुआ करता था। पर आज तो पहचान ही बदल गई। मुझे याद नहीं मैंने कैसे रियेक्ट किया, अक्सर ही बातें भूल जाता हूँ। पर हँसा ज़रूर था क्योंकि हम अक्सर दोनों मिल के पियूष पे जोक बनाया करते थे।
न! न! न! गलती मत करना मुझे गलत समझने की।
पूरबी मेरी खास दोस्त थी।
जनता हूँ आप इस वक़्त क्या सोच रहे है।
जनता हूँ बहुत ही नायब होती है ऐसे किस्से, इसीलिए तो बयान करने आया हूँ। वो अक्सर “कुक-कुछ” जोड़ देती थी अपनी बातों में। चलो कुछ -कुछ खरीदते हैं। चलो कुछ कुछ बनते है।
हाँ!
सब याद है मुझे!
खैर! वक़्त ने कुछ कुछ रंग दिखाने शुरू किया, और अगले रविवार न पूरबी आई न ही सुबह मेरे घर में दस्तक दी!
दोपहर को जब खुद से आंख खुली तो अकेलेपन का एहसास हुआ। साथ ही एक अजीब सा डर भी लग रहा था। मैंने कॉल किया पर जवाब नहीं आया। रात को जब उम्मीद न थी तब उसका टेक्स्ट आया!
“सॉरी, आज पियूष के साथ बहार गई थी। लेकिन हम लोग पक्का नेक्स्ट संडे मूवी देखने जायेंगे”
लेकिन मेरे हम और उसके हम का मतलब अब बदल गया था। मुझे लग वो अकेले होगी पर उसके हम में अब
पियूष भी शामिल हो गया था। वो ज़्यादातर वक़्त अब उसके साथ होती। प्यार का आकर्षण, दोस्ती के गुरुत्वाकर्षण पे भरी पड़ने लगा था।
पूर्वानुमान, दोस्ती में दरार के संकेत। हमारा मिलना अब काम होने लगा, अब वो उन पियूष वाले जोक्स पे काम ही रियेक्ट करती थी और अक्सर उन पे ऑफेंड हो जाती थी।
हे पूरबी! तुझे क्या हो गया है! ये सवाल बस मन में रहता था। एक दिन जब में ऑफिस कुछ अच्छा नहीं गया, मन हल्का करने के लिए मेरे फ़ोन में एक ही नंबर था पर मुझे बस निराशा ही हाथ लगी।
उस दिन मन बना लिया।
“बहुत हुआ, उससे जी लेने दो अपनी ज़िंदगी” कुछ हफ्ते में उससे नहीं मिला। ना ही उससे बात करने की कोशिश की। कुछ कॉल्स भी इग्नोर किया। एक दिन शाम अचानक ही रास्ते में मिल गई, और टपक से बोली, “कहा रहता है तू, आज कल दिखता ही नहीं है। सोचा सब सच बोल दूँ, लेकिन मन की बात को मन में ही रखा “बदल तो तुम गई हो, में तो आज भी उन्हीं रास्तों से गुजरता हूँ। ”
खैर एक मुस्कराहट के बाद में वहां से निकल गया ! और फिर उस बातचीत पे विराम लग गया।
वैसे क्या मैंने आपको बताया है की मैं 11 बार सीढ़ियों से गिरा हूँ। एक बार जब में 5 साल का था और पकड़म पकड़े खेलते वक़्त कुछ ज़्यादा ही दूर निकल आया। मैंने फिजिक्स के आने से पहले ही ग्रेविटी का पाठ पढ़ लिया था।
खैर वक़्त बीतने लगा, मैंने जॉब चेंज की और ज़िंदगी में आगे बढ़ने लगा!
और में विशाखा से मिला!
उसने भी मेरे साथ ही जॉइन किया इसलिए ट्रेनिंग दोनों की साथ में हुई। बस इसी बीच हमारे बीच हमारे के फासले मीट गए। घुंघराले बालों वाली ये लड़की बहुत ही चुलबुली थी। अक्सर ही 8 घंटे की शिफ्ट को 12-13 घंटे में खत्म करती।
“कभी साल दिन में बीत जाते है, तो कभी दिन सालों में कटता है”। पूरबी के बाद और विशाखा के साथ मैंने इस बात की गहराई को अनुभव किया। करीब करीब एक साल बीत गया था और एक दिन जब में सो कर उठा तो देखा किसी अज्ञात नंबर से कुछ मैसेज थे।
“सुनो। कहाँ हो आज-कल? मैं कल तुम्हारे फ्लैट पे आ रही हूँ। तुमसे कुछ-कुछ बात करनी है। तुम्हें एक बात बताऊँ मेरा ब्रेकअप हो गया है। ”
मैं अभी इन शब्दों के मायने समझ ही रहा था कि घंटी बजी।
मेरी दोस्त लोट आई।
ऐसा लगा बीते हुए वक़्त से कुछ वापस आया हो। ऐसा लगा जैसे कुछ खोया हुआ मिल गया हो। उसके हाथ में मैगी और दूध का पैकेट था। एक पल के लिए लगा मैं वक़्त में वापिस आ गया हूँ।
आदित्य! आदित्य! थिस इस मी!
ओह! हे! पूरबी!
कौन है? विशाखा ने अंदर से पूछा!
पूरबी को एहसास हो गया की मैं अकेला नहीं हूँ।
वो एक पल था जब मैंने ख़ुशी को मायूसी में बदलते देखा!
वैसे तो में जानना चाहता था की वो वापिस क्यों आई है लेकिन में जनता था! पर कुछ कर नहीं सकता था।
“लेखक हूँ, जादूगर नहीं, शब्द बदल सकता हूँ, वक़्त नहीं। ”
मैंने उसे विशाखा से मिलवाया। काफी बातें हुई! पर यूँ तो वो हमेशा शाम तक रूकती थी लेकिन उस दिन 12 बजे ही 9-2-11 हो गई।
“आई तो वो ठहरने के इरादे से थी लेकिन शायद कुछ ज़रूरी काम याद आ गया, इसलिए जाना पढ़ा।”
मैंने खुद को तसल्ली देने के लिए कहा।
मैं समझ तो सब रहा था और शायद वो भी किसी दिन समझ रही थी, पर अनजान बना रहा जैसे किसी दिन वो बानी थी।
उस रात उससे थोड़ी सी फ़ोन पे बात हुई, पर ऐसा लग रहा था जैसे सफर के दौरान किसी मुसाफिर से बात हो रही हो। खैर उस रात के बाद मैंने कई बार उसके हाल जाने की कोशिश की पर कोई सकारात्मक जबाव नहीं मिला।
“दुःख लोगों के जाने के बाद ही नहीं होता है अक्सर उनके वापिस आने से भी होता है”।
हाँ! वो मेरी खास दोस्त थी!
हाँ! मुझे उसके जाने के बाद अफ़सोस हुआ था!
हाँ! में उस रात बहुत रोया था!
हाँ! जब वो लौट के आई तब वो मुझसे प्यार करने लगी थी, ठीक वैसे ही जैसे कभी मैं उससे प्यार करता था।
पर कहते है न की अक्सर कुछ-कुछ बदलने से सब कुछ बदल जाता है।
अब सब कुछ बदल गया था।
और वो अंजाम की रात। उसका अचानक कॉल आया। हम दोनों ही जानते थे की ये हमारी आखिरी बात होगी।
पहले ऐसे बातें हुई जैसे कुछ बताना चाहती हो पर छुपा रही हो। “फिर मैंने कहा की तुम बदल गई हो” मेरी दोस्त पूरबी अब पहले जैसी नहीं रही। न जाने क्यों इसका जवाब उसने सोच के रखा था। वो लेखिका नहीं थी, इसलिए अपने दर्द को छुपाना नहीं जानती थी, इसीलिए बोली, “बदल तो तुम गए हो, में तो आज भी उन्हीं रास्तों से गुजरती हूँ। ”

