Aditya Kumar

Tragedy

4.1  

Aditya Kumar

Tragedy

बचपन का दोस्त

बचपन का दोस्त

4 mins
1.0K


बचपन की दोस्ती अक्सर ही बचपन में छूट जाया करती है। आप बड़े हो जाते है लेकिन आपकी दोस्ती नहीं। बात कुछ दिन पहले की है जब एक बचपन के खास दोस्त से अचानक ही फ़ोन पे बात हो गई। जब फ़ोन की स्क्रिन पे उसका नाम देखा तो मन ही मन में उछाल गया. तुरन्त टीवी पे चल रहे फ्रेंड्स को पॉज किया और जाके अपने फ्रेंड से बातें करने लगा. शुरू में अच्छा फील हुआ लेकिन फिर अचानक बातें खत्म हो गई. 


पर ऐसा कैसे हो सकता है, जब मैं आपने आज के दोस्तों से बात करता हूँ या फिर ऑफिस के यारों से तो कभी ऐसा नहीं लगता। कितना कुछ होता है बातें करने को। हमारी अचानक बातें रुक जानें से अटपटा सा सन्नाटा आ गया। पर हमने हार नहीं मानी। हमने अतीत में खोये हुए सारे गले मुर्दे उखाड़े। लेकिन कुछ देर बाद फिर हमारी बातें खत्म हो गई। अब हम दोनों को ही एहसास हो चला था की इस गाड़ी को हम ज़्यादा दूर नहीं धकेल सकते। 

लेकिन कोई भी बात ऐसे खत्म नहीं करना चाहता था। फिर मैंने बात खत्म करने के वास्ते उसे अगले हफ़्ते घर आने का न्यौता दे दिया। और कुछ समझ ही नहीं आ रहा था। 

उस रात खाना खाने के बाद जब मैं छत पे टहल रहा था तो यही बात चल रही थी की हमारे पास बातें क्यों नहीं थी। क्या हमारी दोस्ती बचपन की थी और उसे बचपन में ही खत्म कर देना था या फिर बातें करने के लिए बातें होनी भी चाहिए। क्या होती है ये बातें? कहाँ से आती है? कौन बनता है? 

ऐसे ही अटपटे ख्याल मेरे मन में घर दे रहे थे। मैं जितना सोचता उतना ही उलझ जाता। क्या अब हम दोस्त नहीं है?या फिर दोस्ती का मतलब ये नहीं की आपको बातें करनी ही है। 

मुझे याद है कुछ वक़्त पहले जब ऑफिस में ऐसे ही कोई बात छिड़ गई थी और हम सब लोग अपने बचपन के दोस्तों का गुनगान करने लग गए थे तब मैंने भी बढ़ चढ़ के हिस्सा लिया। मैंने भी अपने दोस्त करन के साथ बचपन की यादों का प्रदर्शन किया। एक पल के लिए तो लगा जैसे मैं वापिस अपने बचपन में पहुंच गया हूँ। ताज्जुब की बात तो ये थी की हर कोई अपने बचपन की दुहाई दे रहा था। सबकी ही ज़िंदगी में बचपन का एक यार था जिनके साथ उन्होंने वक़्त की रेत पे लकीरे खींची थी। 

अचनाक ही मेरे मन में एक बात आई और मैंने ऑफिस की साथी को कॉल लगा दिया। पहले उसे लगा की मैं उसे देर रात किसी काम के लिए कॉल कर रहा हूँ। मैंने दोवारा ट्री किया इस बार उसने फ़ोन उठाते ही बोला की घर पे मेहमान आये है इसलिए बिजी हूँ लेकिन जब मैंने उससे बताया की ये कॉल व्यक्तिगत चर्चा के लिए है तो उसके गेस्ट न जाने कही चले गए। मैंने हिचकिचाते हुए उससे पूछा की वो अपने बचपन के दोस्त से कितना मर्तबा बात करता है और वो लोग कितनी बार मिलते है। फिलहाल कब मिले थे। मुझे मेरे सारे सवालों का जवाब मिला। उसमे से कुछ बातें ऐसी थी जो में नहीं सुनना चाहता था। मुझे नहीं जानना था की बचपन की दोस्ती का अंजाम क्या होता है। खैर जब करन उस रविबार घर पे मिला तो काफी अच्छा लगा।  

हमने कुछ वक़्त बीते हुए कल की बातों में जाया किया। फिर कुछ वक़्त चाय पीते हुए काटा। 


माफ़ करना मैं अपने दोस्त का परिचय तो देना ही भूल गया। करन. हम दोनों एक ही स्कूल जाया करते थे. हम दोनों का घर उतना ही दूर था जितना दूर एटलस पे चीन है इंडिया से. शाम को जब हम अपनी अपनी छत पे जाते तो एक दूसरे को देख के उत्साहित हो जाते। दोस्ती एक ऐसा बंधन है जिसमे आके हम दुनियादारी के बंधन से दूर चले जाते है। हम उतना ही देख पाते है जितना वो हमे देखने को बोलती है और जब दोस्ती टूटती है तब हमे दुनिया का ख्याल आता है। 

दोस्ती के लिए हम दुनिया से लड़ जाते थे। उस वक़्त बस दोस्त सही और दुनिया गलत लगती थी। समय के साथ हमारी दोस्ती का आधार तो मजबूत हो गया लेकिन हम उसपे घर न बना सके। 12वीं के बाद मैं बाहर आ आगया लेकिन उसकी ज़िंदगी की गाड़ी वहीं आगे बढ़ती रही।  वक़्त कम है इसीलिए कहानी के अंत पे चलते है। करीब १ घंटा बीत गया था और अब कुछ बात करने के लिए नहीं था। मैंने टीवी चला दिया लेकिन हम दोनों ही जानते थे की बचपन अब पीछे छूट गया है और वो दोस्ती भी। अब वो बचपन की बातों के लिए न तो मेरे पास वक़्त था और न ही वो बातें अच्छी लगती थी। 

दिल के किसी कोने में एक कमरा था जिसमे बचपन की यादें थी लेकिन वक़्त के साथ उसके ताले में जंग लग गई थी। अक्सर ही उसे खोलने में तकलीफ होती थी। 

थोड़ी देर बाद उसने ही जाने की पहल की। आखिरी बार गले मिला और बस चला गया। कुछ बदला नहीं, जैसे पहले कभी कभी बातें होती थी वैसा ही था बस हममे से किसी ने मिलने की इच्छा नहीं जाहिर की। हम दोस्त तो थे लेकिन आज के नहीं, बचपन के। 

 

 


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Tragedy