चू चू का घौसला
चू चू का घौसला
जो होता है, अच्छे के लिए होता हैं।
खैर, में इससे सहमत नहीं हूँ।
बात उन दिनों की है जब हम गर्मी की छुट्टियां मनाने अपने नानी के घर जाया करते थे. पर मेरी कहानी शुरू होती छुट्टियां खत्म होते ही। जब मैं वापिस घर आया तो सीधे अपने खिलोने लेने दूसरी मंज़िल पे चला गया। वहां निकास पंखे की जगह एक चिडिया ने घोसला बना लिया है। ये सब मेरे लिए किसी आश्चर्य से कम नहीं था। उसे देखते ही मैं ऐसे उत्साहित हो गया जैसे इंडिया ने वर्ल्ड कप जीत लिया हो. मेरा इतना उत्साहित और जिज्ञासु होने के पीछे एक बजह ये भी थी की मैंने पहली बार चिड़िया का घोंसला देखा था। आज तक तो ऐसा सिर्फ किताबो में देखा था। मैं काफी देर तक उसे घूरता रहा और सोचता रहा की आखिर एक चिड़िया ने ये कैसे बनाया होगा. उसके तो हाथ भी नहीं होते. जनता हूँ आप मुझे जज कर रहे है, पर बता दूँ में उस वक़्त करीब 7 साल का था।
वो सावन का महीना था और पवन भी शोर कर रहे थे। अब हर दिन मैं कुछ वक़्त निकल के दूसरे माले पे चला जाया करता था और बस इंतज़ार करता की कब बच्चे बहार आएंगे।
मैं उस चिड़िया को देखता रहता था जो हर वक़्त उन अंडो को सेकती रहती थी। मुझे याद था की टीचर ने बताया की अंडे में से बच्चा निकलेगा. ये सब याद करके मेरी उत्सुकता और बढ़ गई.
अब में और ज़्यादा वक़्त ऊपर गुजरने लगा. मैंने उन बच्चों का नाम भी रख दिया ‘चु-चु’.
मैं रोज अपने खाने में से थोड़ा बचा के ऊपर ले जाता और वहां चिड़िया के खाने के लिए डाल देता।
इस बात को करीब एक हफ्ता हो गया था, मेरी उत्सुकता भी बढ़ गयी थी।
पर उस रात के तूफ़ान के बाद सब थम गया.
जब बारिश शुरू हुई तो सब लोग घर के अंदर जाके सो गए लेकिन मेरे मन में बस उस घोंसले के बारे में चल रहा था. में प्राथना कर रहा था की जल्दी सुबह हो और मैं जाके घोंसले को देखु। न जाने क्यों वो तूफ़ान मुझे बेचैन कर रहा था।
कुछ देर में तूफ़ान रुक गया पर मेरे अंदर का तूफ़ान अभी भी चल रहा था। मुझे ऊपर जाना था। अचानक मैंने ज़िद्द करना शुरू कर दिया पर रात के वक़्त ऊपर कोई नहीं जाता था।अक्सर ही हम लोग ऊपर ताला लगा दिया करते थे।
मुझसे कहा गया की सुबह जाके में देख सकता हूँ।
पर मेरे मन भयभीत हो रखा था। सुबह उजाला होते ही मैं भाग के ऊपर गया और ताला खोलते ही फुट-2 के रोने लगा।
घोंसला तहस-नहस होके बिखर गया था और अंडे भी टूट गए थे।
मुझे याद है मैंने उस दिन खाना नहीं खाया था हर कोई मुझे मनाने में लगा था. उनके लिए ये बस एक घोंसला था।
मैंने दोवारा कभी किसी चिड़िया को घोंसला बनाते नहीं देखा। शायद मेरा घर इस लायक नहीं की उनका घर बन सके।
खैर कहानी का सारांश ये है की जो होता है वो सिर्फ अच्छे के लिए नहीं होता है। उस रात जो तूफ़ान आया वो अच्छे के लिए नहीं आया था। कभी कभी जो होता है वो बुरे के लिए भी होता है।
