"ट्रेजेडी" को "राजभोग" की तरह जीने वाले - दिलीप कुमार
"ट्रेजेडी" को "राजभोग" की तरह जीने वाले - दिलीप कुमार
भारतीय सिनेमा में ट्रेजडी किंग नाम से मशहुर दिलीप कुमार एक महान लोकप्रिय अभिनेता है। दुखद सीन में अपनी मार्मिक एक्टिंग से सबके दिल को छु लेने की वजह से इन्हें ट्रेजडी किंग कहा गया। जन्म से उनका नाम मोहम्मद युसूफ खान था, हिंदी सिनेमा में आने के बाद इन्होंने अपना नाम दिलीप कुमार रख लिया। दिलीप कुमार जी एक प्रतिष्ठित अभिनेता है, जिन्होंने हिंदी सिनेमा जगत में 5 दशक की लम्बी पारी खेली है। भारतीय सिनेमा के गोल्डन एरा के समय के ये एक अग्रिम अभिनेता रहे है। दिलीप कुमार जी ने बॉलीवुड में 1940 में कदम रखा था, उस समय हिंदी सिनेमा अपने शुरुआती दौर में था, उस समय ना ज्यादा एक्टर हुआ करते थे, ना फिल्म बनाने वाले डायरेक्टर। देश की आजादी के पहले फिल्म देखने वाला दर्शक वर्ग भी काफी सीमित था।
दिलीप कुमार उर्फ़ मोहम्मद युसुफ़ ख़ान भारतीय हिन्दी सिनेमा के प्रसिद्ध अभिनेता है। दिलीप कुमार को अपने दौर का बेहतरीन अभिनेता माना जाता है, त्रासद भूमिकाओं के लिए मशहूर होने के कारण उन्हे 'ट्रेजडी किंग' भी कहा जाता था।दिलीप कुमार को भारतीय फ़िल्मों में यादगार अभिनय करने के लिए फ़िल्मों का सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार के अलावा पद्म भूषण, पद्म विभूषण और पाकिस्तान का सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'निशान-ए-इम्तियाज़' से से भी सम्मानित किया जा चुका है। इसके अलावा वहवर्ष 2000 से वे राज्य सभा के सदस्य रहे।
दिलीप कुमार का जन्म 11 दिसम्बर, 1922 को वर्तमान पाकिस्तान के पेशावर शहर में हुआ था। उनके बचपन का नाम 'मोहम्मद युसूफ़ ख़ान था। उनके पिता का नाम लाला ग़ुलाम सरवर था जो फल बेचकर अपने परिवार का ख़र्च चलाते थे। विभाजन के दौरान उनका परिवार मुंबई आकर बस गया। उनका शुरुआती जीवन तंगहाली में ही गुजरा।
परिवार
इनके 12 भाई बहन थे। इनके पिता फल बेचा करते थे, व अपने मकान का कुछ हिस्सा किराये में देकर जीवनयापन करते थे। 1930 में इनका पूरा परिवार बॉम्बे में आकर रहने लगा। 1940 में अपने पिता से मतभेद के चलते उन्होंने मुंबई वाले घर को छोड़ दिया और पुणे चले गए। यहाँ उनकी मुलाकात एक कैंटीन के मालिक ताज मोहम्मद शाह से हुई, जिनकी मदद से उन्होंने आर्मी क्लब में एक सैंडविच का स्टाल लगा लिया। कैंटीन का कॉन्ट्रैक्ट ख़त्म होने के बाद दिलीप जी 5000 की सेविंग के साथ वापस अपने घर बॉम्बे लौट आये। इसके बाद अपने पिता की आर्थिक मदद करने के लिए दिलीप जी नया काम तलाशने लगे।
फिल्म लाइन में आने का मौका उन्हें भाग्य ने दिया 1943 में चर्चगेट स्टेशन में इनकी मुलाकात डॉ मसानी से हुई, जिन्होंने उन्हें बॉम्बे टॉकीज में काम करने का ऑफर दिया। फिर इसके बाद इनकी मुलाकात बॉम्बे टॉकीज की मालकिन देविका रानी से हुई, जिनके साथ उन्होंने 1250 रूपए सालाना का अग्रीमेंट कर लिया। यहाँ महान अभिनेता अशोक कुमार जी से इनका परिचय हुआ, जो दिलीप जी की एक्टिंग से बहुत मोहित हुए। शुरुआत में दिलीप जी कहानी व स्क्रिप्ट लेखन में मदद किया करते थे, क्योंकि उर्दू व हिंदी भाषा में इनकी अच्छी पकड़ थी।
देविका रानी के कहने पर ही दिलीप जी ने अपना नाम युसूफ से दिलीप रखा था। जिसके बाद 1944 में उन्हें फिल्म में लीड एक्टर का रोल मिला, हालांकि यह फिल्म फ्लॉप रही पर इसके जरिये दिलीप जी की सिनेमा मे एंट्री हो चुकी थी।
यहीं देविका रानी की पहली नज़र उन पर पड़ी और उन्होंने दिलीप कुमार को अभिनेता बना दिया। देविका रानी ने ही 'युसूफ़ ख़ान' की जगह उनका नया नाम 'दिलीप कुमार' रखा। पच्चीस वर्ष की उम्र में दिलीप कुमार देश के नंबर वन अभिनेता के रूप में स्थापित हो गए थे।
दिलीप कुमार ने अपने करियर की शुरुआत फिल्म 'ज्वार भाटा' से की, जो वर्ष 1944 मे आई। हालांकि यह फ़िल्म सफल नहीं रही। उनकी पहली हिट फ़िल्म “जुगनू” थी। 1947 में रिलीज़ हुई इस फ़िल्म ने बॉलीवुड में दिलीप कुमार को हिट फ़िल्मों के स्टार की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया। 1949 में फ़िल्म “अंदाज़” में दिलीप कुमार ने पहली बार राजकपूर के साथ काम किया। यह फ़िल्म एक हिट साबित हुई।
1950 का दशक हिंदी सिनेमा के लिए बहुत उपयोगी साबित हुआ। इस समय दिलीप जी की ट्रेजडी किंग की छवि धीरे धीरे लोगों के सामने उभरकर आने लगी थी। जोगन, दीदार व दाग जैसी फिल्मों के बाद से ही लोग इन्हें ट्रेजडी किंग बोलने लगे थे। दाग फिल्म के लिए इन्हें पहली बार फिल्मफेयर बेस्ट एक्टर अवार्ड भी मिला। इसके बाद देवदास जैसी महान फिल्म दिलीप जी ने वैजयंतिमाला व सुचित्रा सेन के साथ की थी। शराबी लवर का ये रोल दिलीप जी ने शिद्दत से निभाया था, जिसमें सबने उन्हें ट्रेजिक लवर का ख़िताब दिया। ट्रेजडी रोल के अलावा दिलीप जी ने कुछ हलके रोल भी किये थे, आन व आजाद जैसी फिल्मों में उन्होंने कॉमेडी भी की थी। 50 के दशक में स्टार के तौर पर स्थापित होने के बाद दिलीप जी ने 1960 में कोहिनूर फिल्म की जिसमें उन्हें फिल्म फिल्मफेयर अवार्ड मिला। 60 के दशक में अपने भाई नासिर खान के साथ गंगा जमुना सरस्वती नामक फिल्म में काम किया, हालांकि यह फिल्म बड़े पर्दे पर असफल रही, परंतु इसने दिलीप जी की इमेज पर कोई बुरा प्रभाव नहीं डाला।
लगभग 2 दशक तक सिनेमा में राज करने के बाद 70 के दशक में जब अमिताभ बच्चन और राजेश खन्ना जैसे कलाकारो की एंट्री हिन्दी सिनेमा में हुई, तो इन्हे फिल्मों के ऑफर मिलना कम हो गए थे। इस समय दिलीप जी की जो फिल्में आई वो भी असफल रही। इसके बाद दिलीप जी ने 5 सालों तक का लम्बा ब्रेक ले लिया और 1981 में मल्टी स्टारर ‘क्रांति’ फिल्म से धमाकेदार वापसी की। इसके बाद से इन्होने अपनी उम्र के हिसाब से रोल का चुनाव किया, वे परिवार के बड़े या पुलिस वाले के रोल लेने लगे। दिलीप जी की आखिरी बड़ी हिट फिल्म रही 1991 की फिल्म ‘सौदागर’. दिलीप जी आखिरी बार 1998 में फिल्म ‘किला’ में नजर आये और इसके बाद इन्होने अभिनेता के रूप में फिल्म इंडस्ट्री से सन्यास ले लिया।
दीदार (1951) और देवदास (1955) जैसी फ़िल्मों में गंभीर भूमिकाओं के लिए मशहूर होने के कारण उन्हें ट्रेजडी किंग कहा जाने लगा। मुग़ले-ए-आज़म (1960) में उन्होंने मुग़ल राजकुमार जहाँगीर की भूमिका निभाई। “राम और श्याम” में दिलीप कुमार द्वारा निभाया गया दोहरी भूमिका (डबल रोल) आज भी लोगों को गुदगुदाने में सफल साबित होता है। 1970, 1980 और 1990 के दशक में उन्होंने कम फ़िल्मों में काम किया। इस समय की उनकी प्रमुख फ़िल्में थीं: क्रांति (1981), विधाता (1982), दुनिया (1984), कर्मा (1986), इज़्ज़तदार (1990) और सौदागर(1991)। 1998 में बनी फ़िल्म “क़िला” उनकी आखिरी फ़िल्म थी।उन्होने रमेश सिप्पी की फिल्म शक्ति मे अमिताभ बच्चन के साथ काम किया। इस फिल्म के लिए उन्हे फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार भी मिला।
दिलीप जी कहां तक पढे है, ये कभी कॉलेज गए या नहीं इस बात की जानकारी किसी के पास नहीं है। पर कहां जाता है कि कुमार साहब ने अपनी स्कूल की पढाई नासिक के पास के किसी स्कूल से की थी, फिर इनका परिवार बॉम्बे आकर बस गया।
दिलीप जी हमेशा से पाकिस्तान व भारत के लोगों को जोड़ना चाहते थे, उन्होंने इसके लिए बहुत से कार्य भी किये। सन 2000 से दिलीप जी संसद के सदस्य बन गए, वे एक बहुत अच्छे सामाजिक कार्यकर्ता है, जो हमेशा जरूरतमंदो की मदद के लिए आगे रहे है।
खास बातें दिलीप कुमार की
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि कुमार साहब और इनकी पत्नी की उम्र में 22 साल का अंतर होने के बाद भी बॉलीवुड के इस कपल ने 2 साल पहले ही अपने निकाह के 50 वर्ष पूरे कर लिए है।
दिलीप जी ने फिल्म इंडस्ट्री में 6 दशक से भी अधिक समय तक काम किया है, और इन्होने पहला और सबसे अधिक फिल्म फेयर अवार्ड भी अपने नाम किए है।
उन्होने सायरा बानु को उनकी जन्मदिन की पार्टी में पहली बार देखा था, वे उनकी सुंदरता से आकर्षित हुये थे। उनकी सुंदरता से आकर्षित होकर वे सायरा जी को अपनी फिल्मों में अभिनेत्री के रूप में देखने का मन बनाने लगे। और उन्होने सायरा जी को शादी के लिए प्रपोज भी किया था।
इनकी कोई संतान नहीं है और अभी उनकी बीमारी में सायरा जी उनकी सेवा बहुत शिद्दत से करती हुई नजर आती है।
राज कपूर और दिलीप कुमार अच्छे दोस्त और अच्छे फुटबॉल खिलाड़ी थे। राज कपूर जी ने भी इन्हे फिल्मों में आने की सलाह दी थी।
दिलीप कुमार ने एक बार इंग्लैंड में काउन्सलिन्ग और कोचिंग ली थी और वही उन्हे ये सजेस्ट किया गया था कि वे अपनी छवि ट्रेजेडी किंग से बदलकर कॉमेडी में स्थापित करे।
दिलीप कुमार बॉलीवुड के ऐसे पहले अभिनेता है जो पाकिस्तान से संबंध रखते है।
1960 के दशक में आई इनकी फिल्म मुगले आजम साल 2008 तक हिन्दी सिनेमा में दूसरे नंबर पर सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म थी।
लव अफेयर भी कम नहीं रहि
अधिकतर फिल्मी सितारों की तरह दिलीप जी के भी कुछ प्रेम संबंध रहे है, जो कि इन अभिनेत्रियों के साथ थे –
कामिनी कौशल – दिलीप जी सबसे पहले इस खूबसूरत लड़की के प्रति आकर्षित हुये थे और उन्होने यह बात मानी भी थी। परंतु कामिनी ने कभी मीडिया के सम्मुख यह बात स्वीकार नहीं की, पर उनके फिल्म के कुछ साथी यह बताते है कि ये भी दिलीप जी से आकर्षित थी और उनके साथ रहने के लिए कुछ भी कीमत दे सकती थी। परंतु कामिनी ने अपनी स्वर्गवासी बहन से वादा किया था कि वे उनके पति से शादी कर उनके बच्चों का ध्यान रखेंगी और उन्होने ऐसा ही किया और यह संबंध टूट गया।
मधुबाला – जब इनकी मुलाकात मधुबाला से हुई, जिनसे उन्हें गहरा प्यार हो गया। दिलीप जी उनसे शादी भी करना चाहते थे, लेकिन मधुबाला के पिता इस बात के सख्त खिलाफ थे। इसका कारण ये माना जाता है कि मधुबाला अपने परिवार में एकलौती कमाने वाली थी, उनके चले जाने पर परिवार के खाने पीने के लाले पड़ जाते। दिलीप कुमार व मधुबाला को साथ में बहुत से डायरेक्टर्स लेना चाहते थे, लेकिन जब मधुबाला के पिता को उनके प्यार के बारे में पता चला, तो उन्होंने दिलीप जी के साथ उनके काम करने में पाबंदी लगा दी। दोनों ने साथ में मुग़ल ए आजम जैसी महान फिल्म भी की थी, ये वो दौर था जब दोनों के प्यार के चर्चे जोरों पर थे, लेकिन पिता की मनाही की वजह से दोनों अलग हो रहे थे।
दिलीप कुमार को सांस लेने में तकलीफ होने के चलते मुंबई के हिंदुजा अस्पताल में भर्ती कराया गया जहाँ उनकी इस तकलीफ के चलते, 98 साल की उम्र में 7 जुलाई 2021 को सुबह निधन हो गया।
