Anil Anup

Inspirational

3  

Anil Anup

Inspirational

जहां की नालियां भी गुलाब और चम

जहां की नालियां भी गुलाब और चम

5 mins
171


कन्नौज भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का एक ऐतिहासिक शहर है। गंगा नदी के किनारे बसा यह शहर प्राचीन हथियारों और अन्य शिल्पकृतियों का एक समृद्ध संग्रह माना जाता है। यह नगर कई शासकों की राजधानी रह चुका है। यहां कई राजवंश जैसे कन्नौज-मोखारी वंश, नंद साम्राज्य, राष्ट्रकूट, पाल राजवंश, प्रतिहार राजवंश, चौहान, सोलंकी आदि का शासन रहा है। इसके अलावा यह नगर विदेशी यात्रियों का भी केंद्र बिन्दु रहा है। फा हिएन और ह्यूएन त्सांग नाम के दो विदेशी यात्रि कन्नौज का दौरा कर चुके हैं।

कन्नौज का इत्र पूरी दुनिया में इसलिए प्रसिद्रध है क्योंकि यह प्राकृति के गुणों से भरपूर होता है। इसमें अल्कोहल का प्रयोग नहीं किया जाता। यहां के इत्र को लोग बेचैनी और तनाव से बचने के लिए भी खुशबू लेते हैं। यहां पर सबसे महंगा इत्र 'अदरऊद' है। इसे असम की खास लकड़ियों से तैयार किया जाता है। इसके एक ग्राम इत्र की कीमत 5000 रुपये है।

कन्नौज का उदय भारतीय मानचित्र पर गुप्तोत्तर काल में महान शासक हर्षवर्धन की राजधानी के रूप में हुआ था। ये ऐतिहासिक और खुश मिजाज शहर गंगा नदी के किनारे बसा हुआ है और कानपुर से 80 किलोमीटर दूर है। इसे भारत की इत्र नगरी का उपनाम दिया गया है। प्राचीन साहित्य में यथा वाल्मीकि रामायण और महाभारत में कन्नौज की विभिन्न नामों से चर्चा मिलती है जैसे कि महोदय, कुशस्थली,कान्यकुब्ज और गांधिपुरी। कन्नौज की पहचान पाल-प्रतिहार-राष्ट्रकूट त्रिदलीय संघर्ष के लिए भी है। कन्नौज वर्तमान में इत्र आसवन उद्योग के लिए विख्यात है। साथ ही यहाँ तम्बाकू, इत्र और गुलाब जल का मुख्य बाजार है। ये भारत का सबसे बड़ा प्राकृतिक गंध(इत्र) का निर्यातक नगर है।

भारत देश सभ्यताओं और संस्कृतियों का देश है। यहां की हर गली और हर शहर की अपनी एक कहानी है। आज हम आपको देश के जिस शहर की बात बताने जा रहे हैं उसे खूशबू या इत्र का शहर भी कह सकते हैं। हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के कन्नौज जिले की। गंगा नदी के किनारे बसा यह शहर प्राचीन हथियारों और अन्य शिल्पकृतियों का एक समृद्ध संग्रह माना जाता है। यह नगर कई शासकों की राजधानी रह चुका है। यहां कई राजवंश जैसे कन्नौज-मोखारी वंश, नंद साम्राज्य, राष्ट्रकूट, पाल राजवंश, प्रतिहार राजवंश, चौहान, सोलंकी आदि का शासन रहा है। इसके अलावा यह नगर विदेशी यात्रियों का भी केंद्र बिन्दु रहा है। 

इत्रों का है ये शहर

कन्नौज शहर अपने इत्र के व्यापार के लिए देशभर में जाना जाता है। दशकों से इस शहर में फूलों के बने शुद्ध इत्र का उत्पादन और व्यापार किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि कन्नौज के इस इत्र को मुग़ल सम्राटों तक भी पहुंचाया जाता था। बड़े पैमाने पर इत्र के उत्पादन के चलते इस शहर को भारत के इत्रों का शहर भी कहा जाता है।

मिट्टी से भी बनाया जाता है इत्र-

कहा जाता है कि जब बारिश की बूंदें कन्नौज की मिट्टी पर पड़ती हैं, तो यहां की मिट्टी से भी खास तरह की खुशबू निकलती है. खास बात यह है कि यहां मिट्टी से भी इत्र बनाया जाता है. इसके लिए तांबे के बर्तनों में मिट्टी को पकाया जाता है. इसके बाद मिट्टी से निकलने वाली खुशबू को बेस ऑयल के साथ मिलाया जाता है. इस तरह से मिट्टी से इत्र बनाने कि प्रक्रिया चलती है. 

खास है कन्नौज का इत्र-

खास बात यह है कि दुनिया का सबसे महंगा इत्र कन्नौज में बनता है. यहां के इत्र की लोग बेचैनी और तनाव से बचने के लिए भी खुशबू लेते हैं. कन्नौज का इत्र पूरी तरह से प्राकृति के गुणों से भरपूर होता है. इसमें अल्कोहल का इस्तेमाल नहीं किया जाता.

कन्नौज में दुनिया के सबसे सस्ते इत्र से लेकर सबसे महंगे इत्र बनाए जाते हैं, जिनमें सबसे महंगा इत्र 'अदरऊद' है. इस इत्र को असम की खास लकड़ी से तैयार किया जाता है. इस एक ग्राम इत्र की कीमत लगभग 5000 रुपये है.

रिपोर्ट के मुताबिक, कन्नौज के इत्र की सप्लाई यूके, यूएस, सउदी अरब, ओमान, इराक, इरान समेत कई देशों में की जाती है. इत्र का इस्तेमाल कॉस्मेटिक के साथ गुटखा और पान मसाला बनाने में भी किया जाता है.

इत्र नगरी के रूप में शहर को देश-विदेश में ख्याति दिलाने वाला यहां का प्रमुख उद्योग ही उपेक्षा का शिकार है। यहां लगे इत्र कारखानों की हालत दिन-ब-दिन दयनीय होती जा रहा है। इन्हें शहर से कच्चा माल तक उपलब्ध नहीं हो रहा है। हालात यह हैं कि इन्हें कच्चा माल दूसरे जनपदों से मंगाना पड़ रहा है। इत्र कारखानों को संजीवनी देने के लिए योजनाएं तो कई बनाई गई हैं, किंतु अफसर इन पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। यही हालात रहे तो वह दिन दूर नहीं, जब इत्र नगरी की पहचान ही गुम हो जाएगी।

बेला, चमेली, गुलाब और जेट्रोफा, खस, स्टेविया, एलोवीरा, पचौली और गुरीच जैसी फसलों को बढ़ावा देने के लिए मनरेगा के तहत जीवन ज्योति और जीवन शक्ति जैसी स्कीमें चल रही हैं। कोई भी व्यक्ति इनकी खेती कर सकता है। राष्ट्रीय सुगंध और सुरस संस्थान कन्नौज के निदेशक शक्ति विनय शुक्ला ने बताया कि जनपद में इत्र से संबंधित फसलों का रकबा घट रहा है। इस कारण सुगंध और सुरस में लगे 500 उद्योगों को स्थानीय कच्चा माल उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। मजबूरी में इन उद्योगों को दूसरे जनपदों से कच्चा माल महंगे दामों पर मंगाना पड़ रहा है। विकास भवन कार्यालय के उपायुक्त श्रम रोजगार राजेंद्र कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि मनरेगा के तहत सुगंधित फसलों को बढ़ावा देने की योजना है। कोई भी व्यक्ति इसकी खेती कर सकता है। किसान पूरी फसल का स्टीमेट तैयार कर विभाग को भेजें। इच्छुक किसानों को इनका लाभ दिया जाएगा। जिला उद्यान अधिकारी ने बताया कि सुगंधित और औषधीय खेती को बढ़ावा देने के लिए विभाग की ओर से कई कार्यक्रम चलाए जा रहे थे। इसमें फूलों की खेती और औषधीय पौधों की जानकारी और प्रशिक्षण की व्यवस्था थी लेकिन अब शासनिक मंशा के आधार पर विभाग पूरी तरह से हट चुका है।

परियोजना निदेशक एके सिंह कुशवाहा ने बताया कि मनरेगा के तहत इत्र उद्योग से जुड़ी खेती का प्रावधान है। जो स्कीमें पहले चल रहीं थीं, वे अब भी हैं। लेकिन शासन के निर्देशानुसार अभी सुगंधित और औषधीय पौधों पर अधिक काम नहीं हो पा रहा है। अभी इसको बढ़ावा देने के लिए कोई समुचित कार्ययोजना भी तैयार नहीं हो सकी है। ऐसी फसलों की खेती में सबसे बड़ी समस्या भूमि की है। इन फसलों की खेती के लिए समुचित रकबा न होना भी योजना के शिथिल होने की वजह है। जनपद का कोई भी किसान यदि खेती करने का इच्छुक है तो कार्यालय आकर पूरी जानकारी हासिल कर सकता है।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational