Swati Grover

Drama Inspirational

3  

Swati Grover

Drama Inspirational

ट्रांसफर

ट्रांसफर

3 mins
172


"रीमा बहुत-बहुत बधाई हो! आज तुम्हारा सपना पूरा हो गया। तुम्हारा चुनाव आई.ए.एस. के लिए हो गया। तुम्हारा सपना पूरा हो गया। बस तुम अब सारी चिंता छोड़ दो। जहाँ तुम्हारी पोस्टिंग हो, वहाँ चली जाना और मैं भी ट्रांसफर लेकर वहाँ पहुँच जाऊँगा।" कहकर रोहन ने फ़ोन रख दिया।


फ़ोन रखते ही रीमा सोचने लगी, 'कि मेरा एक महीने पहले पथरी का ऑपरेशन हुआ था। और वह पिछले एक महीने से अपनी माँ के घर पर अपने बेटे सोनू के साथ रह रही है। उसकी बीमार माँ अपने घुटने के दर्द को भूलकर उन दोनों का ख्याल रख रही है । और रोहन ने एक बार नहीं पूछा कि वो कैसी है? या सोनू कैसा है? ऐसा नहीं है कि उसको अपने सपने पूरे होने की ख़ुशी नहीं है, पर क्या बिना अपनेपन, मान-सम्मान, प्यार-परवाह के ज़िन्दगी की ऐसी ऊँचाइयों को पाना व्यर्थ नहीं है।'


माँ भी पूरी कॉलोनी में लड्डू बाँट आई। "ले, रीमा लड्डू खा. अब तो तू अफ़सर बन गई है, मेरी बेटी जीती रह।" कहकर माँ ने रीमा को गले लगा लिया। और फिर वह रसोई में व्यस्त हो गई। और रीमा यादों की पोटली खोलकर गुज़रे हुए, हर एक लम्हे को गौर से देखने लगी। सात साल पहले रीमा का विवाह रोहन से हुआ था। और दोनों एक दूसरे को जीवनसाथी के रूप में पाकर खुश थे। सबकुछ अच्छा भी चल रहा था। शादी के बाद फिर से नौकरी शुरू की। एच.डी.एफ.सी. बैंक में अच्छी पोस्ट पर कार्यत थी। पर साथ ही साथ सरकारी नौकरी को लेने की तैयारी भी चल रही थी। रोहन भी एम.एन.सी में अच्छा कमाता है ।


"जब भी रीमा कहती कि नौकरी छोड़कर सरकारी नौकरी की तैयारी कर लो तो कहता, सरकारी नौकरी कहाँ पड़ी है, बिना नौकरी छोड़े तैयारी करती रहो।" फिर जब सोनू पैदा हुआ तो उसने नौकरी छोड़ दी और बस बच्चे और अपनी परीक्षा की तैयारी में लगी रही। कभी रोहन गुस्से में कहता "कितना खर्चा हो रहा है। कम से कम अपना खर्चा तो खुद उठा रही थी।" रोहन ने कभी भी रीमा को कोई फैसला नहीं लेने दिया था। हमेशा उसके हर कार्य में उसकी रोक-टोक बनी रहती। बाहर घूमने-फिरने पर भी बंदिशे थी । जब सांस गॉव से आती तो वह केवल उन्हीं की सुनता, ऐसी कितनी ही बातों पर दोनों का झगड़ा हो चुका था।


क्यों एक स्त्री घर का मर्द बनकर भी हमेशा कमजोर ही रहती है। या अपने अहम की पूर्ति करता पुरुष महिला को हमेशा कमजोर बनाए रखता है। रोहन ने उसे आज़ादी तो दी मगर बंदिशों का पट्टा भी बांध दिया। जैसे एक पालतू कुत्ते की तरह जिसे घर से निकाला तो जाएगा पर गले में पट्टा भी बांध दिया जाएगा, ताकि घर का मालिक उसे समय-समय पर ग़ुलामी का एहसास करता रहे।


"रीमा चल उठ थोड़ा घूम आ दोस्तों के साथ पार्टी कर सोनू को भी ले जा।" "हां! माँ जा रही हूँ। अपनी सबसे बड़ी ख़ुशी मनाने।" 


एक माह बाद रोहन का फ़ोन आया कि "मैं भी सिरसा आ रहा हूँ। नौकरी से त्याग-पत्र आज दे दूँगा। "कोई ज़रूरत नहीं हैं रोहन, तुम वही रहो। अभी मेरी ट्रेनिंग हैं, फिर नौकरी के लिए दुबारा ट्रांसफर हो सकता है। सोनू और माँ को साथ ले आई हूँ। परेशान मत होना। पर रीमा मैंने सोचा था कि अब कोई बिज़नेस शुरू करूँगा। तुम घर संभाल लेना। नहीं रोहन, तुम पुरुष हो और घर की ज़िम्मेदारी तुम्हारी है। मैं तो केवल तुम्हारा हाथ बटा रही हूँ। कहकर रीमा ने फ़ोन रख दिया। और रोहन हैरान सा फ़ोन को देखता रह गया और सोचने लगा कि क्या वह रीमा से ही बात कर रहा था?!!!



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama