Swati Grover

Others

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Swati Grover

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नसबंदी

नसबंदी

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1

आज धूप बहुत तेज़ है, चला भी नहीं जा रहा है। प्रेमलता उसका नहर के किनारे इंतज़ार कर रही होगी। यहीं सब सोचते हुए सुयश मोहन के कदमों की गति बढ़ती गई। जब नहर के पास पहुँचा तो उसने देखा कि प्रेमलता पत्थर के छोटे टुकड़े नहर में फ़ेंक रही है । उसके कदमों की आहट सुनकर वह पीछे मुड़ी और उसे देखकर बोली, "मोहन कभी तो समय से आया कर । क्या करो? तुझे तो पता ही है कि बेला की शादी है। और अम्मा ने मुझे दौड़ा रखा है।" वैसे एक बात बोलो, प्रेमलता ने उसे गौर से देखते हुए कहा । "मुझे तेरी अम्मा बिल्कुल अच्छी नहीं लगती । मेरी अम्मा को भी तू ज़्यादा पसंद नहीं है," यह कहकर वो ज़ोर से हँसा तो वह भी हँस दीं । हम ब्याह के बाद शहर चलेँगे न? कोशिश तो मेरी यही रहेंगी कि मैं दिल्ली निकल जाओ और तुझे भी अपने साथ ले चलो, बारहवीं तो मैंने जैसे तैसे कर ली है। अब किसी तरह दिल्ली के किसी कॉल सेंटर में नौकरी भी मिल जाए तो ज़िन्दगी अच्छे से कटेगी । हर महीने माँ और राजू को पैसे भेज दिया करूँगा । तू और मैं मज़े से रहेंगे। उसने प्रेमलता के गले में बाहें डालते हुए कहा । प्रेमलता शरमाई और बोली, "वाह! मोहन तूने तो सब सोच रखा है और फ़िर दोनों घंटो अपने भावी जीवन के सपने संजोते हुए, अपनी ही दुनिया में खोए रहें। तभी छिपते हुए सूरज को देखकर बोली, "मैं चलती हूँ, बापू भी खेतों से आ गए होंगे । यह कहकर प्रेमलता तो चली गई, मगर मोहन शाम के बाद चुपचाप आई रात को बहुत देर तक बैठा देखता रहा।


जब उसने कुछ लोगों का शोर सुना तो उसका ध्यान उनकी ओर आकर्षित हुआ और उसने अपने कपड़ों से धूल झाड़ी और घर की तरफ चलने लगा । गाँव में पूरे एक महीने से रौनक है, जबसे यहाँ नसबंदी कैंप वाले आए है, तबसे हर कोई उनके बारे में बातें कर रहा है । अरे ! सुयश मोहन कहाँ जा रहा है? उसने पीछे मुड़कर देखा तो मास्टरजी खड़े हैं। उसने उनके चरण छुए और उनके हाथ से थैला ले लिया । घर जा रहा हूँ। तेरी बहन का ब्याह कबका है? अगले रविवार का । उसने भारी थैले को सभांलते हुए ज़वाब दिया । क्या हुआ ? नहीं उठता क्या ? मास्टरजी उसके चेहरे को देखकर समझ गए । मैं भी क्या करो? वो नसबंदी कैंप में मेरी ड्यूटी है। मेरा जिम्मा खाने का हैं । रात सब्जियाँ आयेंगी, तभी तो कल भोजन पकेगा । मास्टरजी ने उसके कंधे पर हाथ रख दिया। तझे तो पता है, सरकार पुरुषों को नसबंदी करवाने पर 15000/-रुपए और दो कम्बल दे रही है। और अंदर की बात बताओ ! उन्होंने उसके कान के पास अपना मुँह लाकर कहा, अगर कोई नौजवान करवाए तो 30,000 से 50,000रूपए भी मिल रहे हैं । वह जोर से हँसा। कौन पागल होगा, जो करवाएगा । ज्यादा हँस मत मोहन, वक़्त सबसे बड़ा सिकंदर है। मुझे याद है, 1975 का एक ऐसा दौर भी था, जब 16 साल से 75 साल तक के बजुर्गों ने नसबंदी करवाई थीं, वो अलग बात है कि ऐसा सुनने में आया था कि कुछ के साथ जबरदस्ती भी हुई थीं । यह कहते हुए मास्टरजी खिसयानी हँसी हँसने लगें। चल थैला दें, आ गया कैंप । उसने थैला मास्टर जी को पकड़ाया और कैंप के अंदर जाते हुए मास्टरजी को देखने लगा ।

इन मास्टरजी की वजह से ही मैं बारहवीं कर पाया, इन्होंने मेरी मुफ्त ट्यूशन न करवाई होती तो मैं बारहवीं में ही रह जाता। यह सोचते हुए मोहन के मन में कृतज्ञता के भाव उमड़ आए। कैंप सुनसान है, बस दो-चार लोग नज़र आ रहे हैं। अपने गॉंव का बिरजू बनिया भी यहीं बैठा हुआ है, पाँच बच्चों के बाद इसका नसबंदी करवाना समझ में आता है । उसने कैम्प को देखकर मुँह फेर लिया और तेज़ कदमों से चलता हुआ, घर के पास जाकर रुका। दरवाज़ा खोला तो देखा, आँगन में अम्मा चारपाई पर माथा पकड़कर बैठी हैं। और उनके पास ज़मीन पर बैठी बेला मुँह छुपाए रो रही है । क्या हुआ अम्मा ? होना क्या है, जरा अपनी बहन से पूछ, इसने ब्याह से पहले, तुझे मामा बना दिया है । यह सुनते ही मोहन को इतनी ज़ोर से झटका लगा कि वह गिरते-गिरते बचा। बेला ने भाई को देखा तो उसके रोने की आवाज़ और तेज़ होती गई।


2


अब बहन को ही देखा जायेगा? या फ़िर कुछ कहेगा भी ? मोहन ने अपनी खोई हुई आवाज़ को ढूँढा और फ़िर ज़ोर से बोला, "क्यों री बेला यह सब क्या है? बच्चा किसका-----? वह अपना वाक्य पूरा नहीं कर सका और तभी माँ बोल पड़ी, उस नन्द किशोर का ही है। मोहन ने जैसे चैन की सांस ली । यह सुनकर उसकी जान में जान आई और उसने कहा कि कोई नहीं, अगले रविवार उसकी दुल्हन ही बनना है तो फ़िर क्या परेशानी। वह चारपाई पर आराम से लेटते हुए बोला । तुम दोनों भाई- बहन लपनटर हो। एक मुआ प्रेमा का आशिक है तो दूसरी ने भी चाँद चढ़ा रखे हैं । बड़बड़ाती हुई अम्मा वहाँ से चली गई। मोहन ने बेला के आँसू साफ़ किये और उसे आराम करने के लिए कहा। वह भी भाई को स्नेह से देखती हुई अंदर चली गई। मोहन आकाश के तारे देख रहा है, बेला और नन्द किशोर बचपन से साथ है । उसकी बहन का भी प्रेम विवाह है, वह भी प्रेमा को नहीं छोड़ने वाला । अब छोटे भाई राजू का न पढ़ने में मन है न ही प्रेम में, वह क्रिकेट अच्छा खेलता है। उसका सपना तो देश के लिए खेलना है । सपने में उसके सचिन, धोनी, कपिल और विराट जैसे क्रिकेटर आकर उसे आशीर्वाद देते हैं । वैसे सपने कौन सा किसी की औकात देखकर आते हैं। एक वहीं है, जिनमे हर कोई अपना राजा है। मुझे ही देख लो, जैसे-तैसे बारहवीं की है । अब थोड़े समय बाद प्रेमा से शादी करके शहर में अपना परिवार बसाऊँगा। रामानुज कह रहा था कि कॉल सेंटर वाले अच्छा कमा लेते हैं और उन्हें ज्यादा पढ़ने की भी ज़रूरत नहीं है। उंसने एक गहरी सांस ली और नींद के आगोश में चला गया।

सुबह माँ ने जगाया तो देखा कि सुबह हो चुकी हैं । वह सुबह की सैर को जाने के लिए घर से निकल पड़ा । रास्ते में उसे कुसुम अपनी गाय को घुमाती दिखी, पहले तो मन किया कि रास्ता बदल ले, मगर फ़िर अनदेखा करता हुआ निकलने लगा । मगर कुसुम तो उसे ही देखी जा रही है। उसके पास से गुजरते ही वह बोल पड़ी-


"मोहन, अब तो बेला भी चली जाएगी, तुमने का सोचा है ?"

"सोचना क्या है, प्रेमा के बापू से उसका हाथ माँग लूंगा ।"

"पर तुम्हारी अम्मा को वो पसंद नहीं है।"

"ब्याह मुझे करनी है या अम्मा को ?"


यह सुनकर कुसुम का मुँह उतर गया और वह बिना कुछ कहे आगे निकल गई । यह लड़की बचपन से मेरे पीछे हैं । मुझे पता है कि मेरे चक्कर में ही इसने बेला से दोस्ती की है। पर क्या फ़ायदा, मैं तो इसे घास ही नहीं डालता । हाँ, यह चाहे तो सपने देख सकती हैं। मोहन के चेहरे पर मुस्कान आ गई । अपने अमरपुर गॉंव का एक पूरा चक्कर लगाकर जब वह घर की दहलीज़ के पास पहुँचा तो उसे नन्द किशोर के पिता और चाचा की आवाज सुनाई दी। इतनी भारी आवाज पूरे गॉंव माखनलाल की है । मगर यह सुबह-सुबह मेरे घर में क्या कर रहे हैं? कहीं इन्हे बेला के बारे में पता तो नहीं चल गया ? यह मना करने तो नहीं आ गए है। ऐसी ही सोच के साथ जल्दी से उसने दरवाज़े पर लात मारी और अंदर आ गया। उसे देखकर माखनलाल बोल पड़ा, "आओ सुयश मोहन, हम तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहे थें ।" मेरा? पर क्यों ? क्यों तुम घर के बड़े नहीं हो । लेनदेन की बातें तो तुमसे ही होगी । मोहन को मानो किसी ने झटका दिया। अम्मा की कातर नज़रे भी उससे छिपी न रह सकी। वह पास रखी लकड़ी की कुर्सी पर बैठता हुआ बोला,बताए क्या बात है?


तुझे तो सब मालूम है कि जात बिरादरी के ख़िलाफ़ जाकर हम इस ब्याह के लिए राजी हुए हैं।

जी, मोहन का गला सूख रहा है।

अब बिरादरी वालो का मुँह बंद करने के लिए कुछ पैसे वगरैह देने पड़ेगे । यह आवाज नन्द किशोर के चाचा सोहमलाल की है।

मैं समझा नहीं।

देख , मोहन हमारी बिरादरी का बड़ा मान है, उसी मान की खातिर 30, 000 देने हैं । अब तुम लोग ब्याह से पहले पैसे दे देना ।

मोहन ने सुना तो उसके होश उड़ गए और वह माखन लाल की तरफ देखकर बोला कि ताऊ, आपको पता तो है कि बापू के मरने के बाद एक किराने की दुकान से गुज़ारा चला रहे हैं । मैं शहर जाऊँगा तो धीरे-धीरे करके आपके पैसे दे दूँगा ।

बेटा मैं सब जानो, मगर तू भी समझ अगर बिरादरी वालो का मुँह न बंद किया तो हमारा हुक्का पाणी बंद कर देंगे ।

मोहन समझ गया कि यह सब इस चाचा का किया धराया है, यह चाहता ही नहीं है कि बेला का विवाह नन्द किशोर से हो ।

अब कैं सोचने लगा ? अगर पैसे नहीं तो ब्याह नहीं। चाचा के अपना फैसला बता दिया ।

उधर बेला के रुलाई फूट पड़ी, अम्मा भी सदमे में आ गई । राजू भी घर के कोने में सिमट गया।


3


माखनलाल और उसका भाई अपना फरमान सुनाकर चले गए और अम्मा ने रोना शुरू कर दिया । बताओ, रिश्ता तोड़ने का बहाना भी सही ढूँढा है। मैं पगली बेकार में सोच रही थी कि भगवान ने हमारी सभी मुश्किल दूर कर दी, बिना दहेज़ के रिश्ता हो गया । चार कपड़ों में बेटी ले जाते तो गरीब पर एहसान नहीं हो जाता, मगर गरीब पर भगवान को दया नहीं आ रही तो इन्हें कहाँ से आएगी। मेरा बस चलता तो इस रिश्ते को न कह देती, मगर इस कुल्टा ने हमें कहीं का न छोड़ा । अम्मा ने रोती हुई बेला को ज़ोर से लात मारी तो वह दूर जा गिरी। अम्मा, क्या कर रही हो? घर गिरवी रख देते हैं, मोहन ने बहन को उठाते हुए कहा। ज़मीन बेचकर घर छुड़वाया था, इसी घर से एक छोटी सी दुकान निकाली है। जिसे अपना पेट भरता है, अबकी बार घर रखा तो कहीं के नहीं बचेंगे । तेरे उस मरे बाप ने हमारे लिए मुसीबत के सिवा कुछ नहीं छोड़ा। अम्मा ने माथा पकड़ लिया। तू चिंता मत कर, मैं करता हूँ, कुछ । कहकर मोहन घर से निकल गया और अपने इकलौते दोस्त श्याम के घर के बाहर आकर रुका । अब तक तो यह शहर से आ गया होगा । इसकी, कल रात की गाड़ी थीं । उसने यह सोचकर दरवाज़ा खटखटाया ।


शहर में भाई को गाड़ी ने टक्कर मार दी हैं। बापू वहीं गए है, उसकी छोटी बहन मनु ने बताया । मोहन बनिए के घर की तरफ़ गया, मगर उसने भी पिछले झगड़े के बारे में बोलकर अपने हाथ पीछे खींच लिए । वह परेशान सा पता नहीं, कहाँ जाता जा रहा है, तभी हरिया ने उसे देखा तो वही रक गया । मोहन क्या हुआ ? चेहरा काहे उतरा हुआ है? कुछ नहीं, अरे ! बता न ? हरिया ने ज़ोर देते हुए पूछा। बस यूँ ही, आप क्यों इतने खुश नज़र आ रहे हों । अपने बिट्टू को शहर भेजना था इसलिए पंद्रह हज़ार रुपए की ज़रूरत थीं, नसबंदी करा ली और हो गया इंतज़ाम । अब चार बच्चे बहुत है, मर्दो वाले काम तो कर ही लिए । हरिया मूँछो को ताव देकर बोला । मोहन यह सुनकर, बिना कुछ कहे आगे निकल गया। सबकी मदद कर रहे हो भगवान, मुझ ग़रीब की तरफ़ भी मुँह करो । मोहन ने मन ही मन कहा । पूरा गॉंव घूमा, मगर कहीं से भी कुछ हाथ नहीं लगा। इसी उधेड़बुन में शाम गुज़र गई और वह मुँह लटकाए वापिस घर आ गया । क्यों भाई, कुछ हुआ? नहीं रे ! राजू, कोई उधार देना ही नहीं चाहता, जिसे पैसे की ज़रूरत है, वो नस......... बोलते-बोलते वह रुक गया । चौदह साल के भाई को वह कुछ नहीं कहना चाहता था । तभी अम्मा आ गई और आँगन में रखी चारपाई पर बैठती हुई बोली, " अगर इन चार-पाँच दिनों में पैसे का इंतज़ाम नहीं हुआ तो मना कर देंगे और जो रायता इस बेला ने फैलाया है, उसे सरकारी डिस्पेंसरी में साफ़ करवा देंगे । बेला ने यह सुना तो उसकी आँखों में आँसू आ गए और हाथ पेट पर चला गया । अम्मा देखते है, कल फ़िर कोशिश करूँगा । तभी उसे प्रेमा का खयाल आया और वह मुस्कुराने लगा ।


अगले दिन फिर नहर के पास बैठा मोहन, प्रेमा का इंतज़ार कर रहा है । आज कैसे जल्दी आये? वह पास बैठती हुई बोली । उसने उसका हाथ पकड़ा और सारी बात बता दी। प्रेमा अपने बापू से बोलकर मदद करवा दें, नौकरी करके चुका दूँगा। दो-चार हज़ार की बात होती तो बापू मान जाते, मगर तीस हज़ार बहुत ज्यादा है । वो वैसे ही इस शर्त पर ब्याह के लिए माने है कि कोई दहेज़ नहीं दिया जायेगा । उल्टा वो साहूकार का बेटा कुंज बिहारी उसने तो बापू को कहा है कि अगर वो मेरा ब्याह उससे कर देंगे तो वह पाँच हज़ार और एक गाय दे देगा, मगर मैंने कह दिया कि अगर तुझसे ब्याह नहीं हुआ तो किसी से नहीं करूँगी । प्रेमा की आँखो में चमक है और मोहन की आखों में निराशा। इसका मतलब कुछ नहीं हो सकता? मोहन ने नहर में पत्थर फ़ेंकने शुरू कर दिए। सब ठीक हो जायेगा जानेमन, मैं तो कहती हूँ कि तुम बेला का रिश्ता गिरधर से कर दो। वो वैसे भी बेला को पसंद करता है, उसने मुझे बताया था। मोहन ने घूरकर प्रेमा को देखा, मगर कुछ कहा नहीं । प्रेमा उससे शहर की बातें किए जा रही है। मगर वो किसी बात का कोई ज़वाब नहीं दे रहा है। आख़िरकार, प्रेमा ने उससे विदा ली और थोड़ी देर बाद मोहन भी बुझे मन से घर की ओर मुड़ गया।


घर में एक अज़ीब तरह का सन्नाटा पसरा हुआ है। अम्मा चारपाई पर आँखें बंद करके पड़ी है। राजू अम्मा के पैर दबा रहा है और बेला रसोई में खाना पका रही है। भाई को देखते ही उसने उसके सामने थाली रख दी, मगर मोहन की कुछ खाने की इच्छा नहीं हुई। बड़ी मुश्किल से उसने एक रोटी खाई और खाना छोड़ दिया। अम्मा भी अब चेतनावस्था में आ चुकी हैं । पड़ोस में लोग बातें बना रहे हैं कि पाँच दिन बाद शादी है, और घर में मातम जैसा माहौल बना हुआ है। अम्मा उन्हें हमारी इतनी फ़िक्र है, तो पैसे दे दे । राजू ज़ोर से बोला तो अम्मा ने उसे झिड़की दीं। मैं तो कहती हूँ कि एक बार नंदकिशोर से बात कर, यह बच्चा उसका भी है, वही अपने बाप-चाचा को समझा सकता है। मोहन को बात जँच गई। सही है, सबसे पहले उसी से बात करनी थीं, बेकार में इतना घूमा । यह कहते हुए वह कमरे में चला गया । अब शायद, इस मायूसी भरी रात के बाद उम्मीद का सवेरा हो। यही सोचकर उसने बत्ती बुझा दीं।


 4


अगले दिन जब वह नन्दकिशोर से मिला तो वह भी मोहन की बात सुनकर पीपल के पेड़ के पास सिर पकड़कर बैठ गया । भाई, यह सब कैसे हो गया, मैंने तो छतरी का प्रयोग किया था। मेरे दोस्त सोनू ने मुझे शहर से लाकर दी थीं । मोहन ने एक खींचकर चाटा उसके मुँह पर मारा, और गुस्से में बोला, "अगर यह कांड न किया होता तो रिश्ता कबका ख़त्म कर देते"। नन्द किशोर अपने गाल को सहलाते हुए बोला, "भाई गलती हो गई, फ़ोन में वो अंग्रेज़ो की फिल्म देखी तो .....मोहनको गुस्से में देखकर आगे बोलने की उसकी हिम्मत नहीं हुई। अब पैसे कहाँ से लाए? समझ नहीं आ रहा । भाई दो-चार हज़ार की मदद तो मैं कर सकता हूँ । पर बाकी नहीं हो पायेगा। दो चार का क्या करना है? तेरे बापू ने पूरे तीस हज़ार माँगे है, तू उन्हें समझा नहीं सकता? मोहन ने उसे घूरते हए कहा।


बहुत कहा, पर वही उनका राग, "बिरादरी से बाहर शादी कर रहे हैं, ऊपर से हल्का ब्याह है, अब वो इतना तो कर सकते हैं । हमें भी तो मुँह दिखाना है।" बात अब मेरे बस की नहीं है। देखो भाई, आप और मैं एक ही स्कूल गए, आप बारहवीं तक पढ़े और मैं दसवीं तक पढ़ा। इसलिए आप मेरे बड़े भाई जैसे हो, मगर मैं एक बात कह दो, मैं बेला से बहुत प्यार करूँ, और उसके सिवा किसी और के बारे में सोच भी न सको। नन्दकिशोर की बात सुनकर मोहन को तस्सली हुई कि चलो, मेरी बहन को यह बहुत प्यार तो करता है, उसने गहरी सांस लेते हुए कहा कि मेरी बेला का ख्याल रखियो। मैं करता हूँ, कुछ । और यह कहते हुए उसने नन्द किशोर के कन्धे पर हाथ रखा और उसने भी हाँ में सिर हिला दिया।


अब शादी को सिर्फ दो दिन रह गए है और सबका मुँह उतरा हुआ है। अम्मा ने सोच लिया है कि कल बेला को सरकारी क्लिनिक ले जाकर, यह किस्सा ही ख़त्म कर देंगी। वह रात को भीगी आखों से मोहन के पास आई और चारपाई के पास बैठते हुए बोली, भाई मैं अपनी जान दे दूँगी, मगर किसी और से ब्याह न करवाऊँगी । मोहन ने उसके सिर पर हाथ रखा और प्यार से बोला कि ऐसा कुछ नहीं होगा। जा, जाकर सो जा। अगली सुबह उसने अम्मा को सख्ती से कहा, "आप घर में ढोलक बजवाओ, बेला का ब्याह नन्द किशोर से ही होगा।


अब उसकी आखिरी उम्मीद मास्टरजी है, मगर वह अपनी माँ को लेकर शहर गए हैं। अब तो उसकी आखों के सामने अँधेरा छाने लगा। उसे बहन के फेरे से पहले रुपए उसके ससुराल वालों को देने हैं। अगर ब्याह रुक गया तो जग हसाई तो होगी ही साथ ही बेला भी तबाह हो जाएगी। अम्मा मोहन से कह रही है, पैसे लेकर मंदिर आ जाइओ। बारात आती ही होगी। हम सब वही जा रहे हैं। यह सुनकर बुझे मन से मोहन घर से निकल पड़ा और जब चलते -चलते उसने आँख उठाई तो सामने नसबंदी का कैंप नज़र आया । वह वहीं रुक गया, उसका दिमाग उसे मना करता रहा, मगर उसका दिल बेला की ख़ुशी की बात करने लगा और अपने दिल की बात मानकर, वह भारी कदमों से अंदर गया और वहीं हुआ, जो उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था। मोहन को तीस की बजाए , पचास हज़ार रुपए मिले, मगर उसे लगा कि उसकी ज़िन्दगी, उसके सपने सस्ते में बिक गए।

बेला की शादी हो गई, वह हँसी-ख़ुशी से अपने नन्द किशोर के घर गई। मगर मोहन की पूरी दुनिया ही उजड़ गई थीं । उसने सोच लिया कि वह अपनी ज़िन्दगी ख़त्म कर देगा क्योंकि अब जीने का कोई औचित्य नहीं रह जाता है । यही सोचकर, वह नहर में कूदने के उद्देश्य से चला गया और जैसे ही उसने छलाँग लगानी चाही, किसी ने उसकी बाजू पकड़ ली और उसने पीछे मुड़कर देखा तो बिरजू खड़ा था, क्यों मोहन क्या करने जा रहा है? दिमाग बस में नहीं है, क्या? मोहन की रुलाई फूट पड़ी। और मोहन को ऐसी हालत में देखकर बिरजू ने उसे गले लगा लिया।


5


बिरजू उसका बचपन का दोस्त है। उसके पिता एक मजदूर है, वह भी मोहन के साथ शहर जाकर अपनी और अपने परिवार की ज़िन्दगी बदलना चाहता है। उसने भी मोहन की तरह बारहवीं तक पढ़ाई की हुई हैं । दिखने में सांवला, नाटा कद, भूरी आँखें और दुबला-पतला सा बिरजू मोहन को कसकर पकड़कर खड़ा रहा, बता भी दे क्या बात है? मोहन ने खुद को उससे अलग किया और वहीं जमीन पर बैठ गया। उसे समझ नहीं रहा है कि बिरजू को कैसे बतायें, मगर बिरजू बड़ी उम्मीद से उसकी तरफ़ देख रहा है। उसने हिचकी ली और उसे बताना शुरू किया ।" यार ! किसी को मत कहियो, वैसे भी मैं अपनी जान ले रहा था, तूने रोक लिया। अरे ! भरोसा रख ! ।" बिरजू ने उसे आश्वासन दिया। मोहन ने उसे एक ही सांस में सारी बात बता दी । जिसे सुनकर बिरजू के होश उड़ गए। यह क्या कर लिया तूने ? बहन तो माँ बन जाएगी, मगर तू क्या करेगा ? बिरजू ने सिर पकड़ लिया। खैर ! मरने से क्या होगा। अपनी अम्मा और भाई के बारे में सोचा है? अब जीकर क्या करूँगा, यार ! सब ख़त्म, मोहन फिर रो पड़ा। यार ! सुना है, शहर वालो ने बहुत तरक्की कर ली। वहाँ तो पता नहीं क्या-क्या गज़ब होता है। तू प्रेमा से ब्याह कर लियो, फिर कोई न कोई रास्ता निकल जायेगा । मगर प्रेमा मुझसे अब ब्याह करेगी ? क्यों प्यार नहीं करती क्या ? उसे बुला और दोनों मिलकर कोई रास्ता निकाल लेना । बिरजू ने हिम्मत बंधाई तो उसने अपनी आँखें साफ़ की। मैं प्रेमा को यहाँ भेजता हूँ, तू कुछ मत करना ।


करीब आधे घंटे बाद प्रेमा आई और उसने मोहन की ऐसी हालत देखकर सवाल किया । मोहन ने उसकी आँखों में देखकर सारी कहानी सुना दी और प्रेमा को काँटो तो खून नहीं। ये क्या कर लिया तूने ? बहन की ख़ातिर, हमारी बलि क्यों चढ़ा दी ? अब क्या होगा ? अब सब ख़त्म । उसने रोना शुरू कर दिया। देख ! प्रेमा, मैं परसो शहर जा रहा हूँ, चार-पाँच महीने बाद वापिस आऊँगा और हम शादी कर लेंगे। फ़िर शहर में रहेंगे, कोई न कोई रास्ता निकल जायेगा । मोहन ने उसे समझाते हुए कहा। प्रेमा कुछ नहीं बोली, फिर सोचकर कहने लगी," यह आसान नहीं है, तुझे कोई कुछ नहीं कहेगा, सब मुझे कहेगे कि कमी मुझ में है। यह ज़िन्दगी भर का रोना है, समझा।" मोहन ने उसका चेहरा घुमाते हुए कहा कि परसो मैं स्टेशन पर तेरा इंतज़ार करूँगा, अगर तू आई तो मैं समझूंगा, तू मेरे साथ है। और अगर नहीं आई तो अपने रास्ते अलग हो गए । प्रेमा को यह कहकर भारी मन से मोहन वहाँ से चला गया।


परसो माँ और भाई से विदा लेकर मोहन स्टेशन पहुँचा तो बिरजू गाड़ी में सीट ढूंढ़ने लगा और मोहन वही स्टेशन पर प्रेमा की राह देखता रहा। दिल्ली की गाड़ी छूटने में सिर्फ दस मिनट है। बिरजू, ट्रैन के दरवाजे पर खड़ा मोहन को देख रहा है। जैसे ही मोहन ने गाड़ी के जाने की आवाज़ सुनाई दीं । बिरजू ने उसे बुलाया, मोहन ने एक बार फ़िर स्टेशन की तरफ देखा तो उसे प्रेमा नज़र नहीं आई। वह बुझे कदमों से ट्रैन पर चढ़ा और दरवाज़े पर खड़ा रहा और फ़िर प्रेमा की राह देखने लगा कि शायद वो आ जाए, मगर प्रेमा का कोई अता-पता नहीं था। गाड़ी उसके गॉंव से आगे निकलती जा रहीं है और वह पीछे छूटती हुई, सभी चीजो को देख रहा है, उसे मालूम हो चुका है कि अब ज़िन्दगी के सफर में प्रेमा भी कहीं छूट गई है । उसने गीली आँखों को साफ़ किया और बिरजू के पास आकर बैठ गया।


ट्रैन ठीक अपने समय पर नई दिल्ली स्टेशन आ लगी। दोनों ने रिक्शा किया और अपने दोस्त श्याम के किराए के मकान पर पहुँच गए। चोट लगने के कारण श्याम अभी भी गॉंव में है । श्याम भी एक कॉल सेंटर में काम करता है। उसने अपने दोनों दोस्तों की नौकरी की बात भी वहीं कॉल सेंटर में कर रखी है। आज रविवार है, कल उन दोनों को वहीं जाना है। मोहन और बिरजू जमीन पर रखे बिस्तर पर लेट गए और दोनों की कब आँख लगी, उन्हें पता ही नहीं चला। मोहन ने देखा कि अँधेरा हो चुका है, उसने समय देखा तो रात के आठ बज रहे है, मगर सड़क पर इतनी रौनक है कि जैसे अभी भी दिन हो। वह कमरे के साथ, बनी छोटी सी रसोई में गया और खाने-पीने की चीजों को टटोलने लगा तो उसे कुछ नज़र नहीं आया। उसने बिरजू को उठाया और बोला,आज बाहर जाकर कुछ खा लेते हैं। उसने पैसे देखें तो वह सिर्फ़ 5000 रुपए लेकर शहर आ गया है। जिसमे से 200रुपए खर्च भी हो चुके हैं। मगर फिलहाल तो बाहर से खाना खाने के अलावा कोई और उपाय भी नहीं है। दोनों कमरे को बंद करके बाहर निकल गए। उनका कमरा पहली मजिल पर है। सीढ़ियों से उतरते वक़्त उसने देखा कि दो लड़कियाँ हँसती हई ऊपर से नीचे उतर रही है। पहली मंजिल पर कोई मजदूर का परिवार रहता है। शायद तीसरी या चौथी मंजिल पर ही ये दोनों रहती होगी। श्याम ने बताया था कि संकरी गली होने के कारण मकान का किराया भी कम है। दोनों बाहर रोड की रौनक को बड़े ही हैरान होकर देख रहे हैं। फ़िर रोड के किनारे खड़ी एक रेहड़ी के पास पहुँच गए। दाल-रोटी के लिए बोलकर, वहीं पास खड़ी ख़राब स्कूटर पर बैठ गए । यार ! कैसे होगा? घर में सिर्फ चावल है, और हम दोनों के पास कुल मिलाकर सिर्फ़ 7000 हज़ार रुपए है। बिरजू की आवाज़ में चिंता है।


एक काम करते हैं, आटा और दाल खरीद लाते हैं। अब महीना खत्म होने में पंद्रह दिन रह गए हैं । अगर पंद्रह दिन बाद वेतन मिला तो थोड़ा सहारा हो जायेगा। मोहन ने उसे तसल्ली दी। खाना खाकर कोई स्टोर देखा और सबसे सस्ते दाल, आटा , ब्रेड, चायपत्ती खरीद लाए । दाल से अच्छे से कंकड़ निकाल लेना, क्योंकि तुमने बड़ी ही हल्की दाल ली है। दुकानदार ने उसे समझाते हुए कहा। दोनों दस बजे के करीब घर पहुचे। रात को मोहन को अजीब बेचैनी हो रहीं है, उसे नहर, गॉंव और प्रेमा की बड़ी याद आ रही है । उसने आँखें बंद की तो उसे प्रेमा नज़र आने लगी । और वह मुस्कुराने लगा। अब उसे लग रहा है कि ज़िन्दगी से बेहतर यह सपने ही हैं।


6


सुबह दोनों समय से उठे और अपनी नई नौकरी के लिए निकल गए । उनका कॉलसेंटर घर से आधे घंटे की दूरी पर है। दोनों ने देखा कि ऑफिस के नाम पर एक बड़ा हॉल है और उस हॉल को लकड़ी के डिब्बे लगाकर विभाजित किया गया है। उन्होंने अपना नाम बताया और वहाँ के मालिक ने उन्हें उनकी बैठने की जगह दिखाई और काम समझाने के लिए किसी को भेज दिया। यह कॉल सेंटर इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद ज़ेरोक्स के बारे में लोगों को बताने के लिए है। पंद्रह दिन की ट्रेनिंग और फ़िर पक्की नौकरी । जैसे-जैसे दिन बीतने लगे, दोनों दोस्तों में बदलाव आने लगा। बिरजू ने अपना नाम बिरजू से बृज रख लिया । कॉल सेंटर में छह लड़कियाँ और सात लड़के हैं, वह सबसे हँस-हँसकर बोलता है । उनके साथ अब वह सिगरेट और थोड़ी देसी शराब भी पीने लगा है। मगर मोहन अपने में सिमटा रहता, वह लड़कियों से नाम-मात्र की बात करता और लड़कों से भी उसकी मतलब की बातचीत होती। दोनों दोस्तों के पैसे मिलाकर चौदह हज़ार रुपए बनते थें । मोहन घर का सारा हिसाब किताब रखता, 3500/- किराया देने के बाद घर का राशन और फ़िर दो-ढाई हज़ार घर भी भेजता।


दोनों सुबह दस बजे निकलते और रात आठ बजे आते। रात के बाद सुबह और वहीं दिनचर्या, ऐसे करते-करते पाँच महीने गुज़र गए। और श्याम भी ठीक होकर वापिस शहर आ गया । श्याम के आने के बाद, मोहन अब कुछ पैसे अपने लिए भी बचाने लगा। वह बड़ी ही मेहनत से काम करता और अब उसको इंसेंटिव के नाम पर दो-तीन हज़ार ज्यादा मिलने लगे थें । मगर बिरजू का वेतन अब भी उतना ही है। इस कॉल सेंटर की थकी-हारी ज़िन्दगी ने उसे'इतना व्यस्त कर दिया कि वह अब पिछली बातें भूलने लगा है । उसे प्रेमा की तब आती, जब वह चौथी मंजिल पर रहती रेशमा को देखने लगता । उसकी हँसी बिलकुल प्रेमा जैसी है, उसके साथ रहती जूही को श्याम पसंद करता है। दोनों अक्सर साथ निकल जाते ।


आज मोहन के मालिक ने उससे कहा कि अगर वह इस नौकरी के साथ रिपेयरिंग का काम सीख लेगा तो वह उसे लोगों के घर प्रोडक्ट की सर्विस के लिए भी भेजना शुरू कर देंगा। और इसमें उसे ज़्यादा पैसे मिलने लगेंगे। उसने काम सीखना शुरू कर दिया और अब वह सर्विस देने के काबिल भी बन गया। उसने अपने मालिक के कहने पर फर्स्ट ईयर के फॉर्म भरकर पत्राचार से पढ़ाई करनी शुरू कर दीं । अब दिवाली भी आ गई तो तीनों गॉंव चल दिए। 


आज पूरे ग्यारह महीने बाद मोहन गॉंव आया है। उसकी बहन का बेटा भी हो चुका है। वह बहुत ख़ुश है। छोटा भाई ज़िले की 

 क्रिकेट टीम का हिस्सा बन चुका है। अम्मा अपने नाती के लिए स्वेटर बना रही है। वह उनके पास रखी चारपाई पर आकर लेट गया । उसने उसके सिर पर हाथ फेरा और प्यार से बोली, कितना दुबला-पतला हो गया है। उसने भी माँ के स्पर्श को महसूस करते हुए कहा कि अब हफ्ता, यहाँ रहूँगा तो मुझे खिला-पिलाकर मोटा कर देना । यह कोई कहने की बात है, बिल्कुल करूँगी। कल बेला के घर जाकर दिवाली दे आना, पहली दिवाली है, भाई को देखेंगी तो खुश हो जायेगी । माँ ने फ़िर उसे प्यार किया। अच्छा एक बात बता कि वो बेला की शादी के पैसे कहाँ से आये थें, माँ तुझे बताया तो था कि एक दोस्त से उधार लिए थें और उसे अब काफ़ी लौटा भी चुका हूँ। कहते हुए उसने मुँह फेर लिया। उसकी आवाज़ में गुस्सा और झुंझलाहट है।


सुबह बहन के घर गया तो वहाँ उसके ससुराल वालों ने उसका अच्छे से स्वागत किया। वह शहर से सबके लिए चीजों के साथ फलो और मिठाई का टोकरा भी लाया है, जिसे देखकर सभी उसे हाथो-हाथ ले रहे हैं । बहन के बेटे को उसने गोद में उठाया और उसे बड़े प्यार से देखने लगा । भैया, यह आपकी वजह से इस दुनिया में है, बेला की आँख भर आई । नहीं पगली, जो होना होता है, वो होकर रहता है। उसने आह! भरकर कहा तो बेला उसकी आखों में उभर आए दर्द को महसूस करने लगी, मगर समझ नहीं पाई । शाम को लौटते वक़्त उसे कुसुम दिखी। अरे ! मोहन तुम यहाँ ?


हाँ, दिवाली पर घर आया था।


तुम्हें पता है, मैं अपनी मौसी के घर रहकर पत्राचार से कॉलेज कर रहीं हूँ।


अच्छी बात है, मैंने भी शहर में फ़िर से पढ़ाई शुरू की है


बहुत अच्छे ! अब हम दोनों कुछ न कुछ ज़रूर बन जायेगे।


बिलकुल और तुम्हें कोई अपने जैसा अच्छा लड़का मिलेगा, जो तम्हें बहुत प्यार करेंगा। यह कहकर वह कुसुम का जवाब सुने बिना, वहाँ से चला गया। कुसुम उसे रोकना चाहती थीं, मगर चाहकर भी रोक न सकी।


नहर की तरफ जाते हुए, उसे वहीं नसबंदी का कैंप दिखा और उसने गुस्से और ग्लानि से मुँह फेर लिया। पता नहीं, अब कौन मज़बूरी का मारा, यहाँ आएगा। वह नहर के पास बैठा सोच रहा है कि प्रेमा से भी मिलना चाहिए । क्या पता, अब भी कोई उम्मीद बची हों । तभी उसे पायल की आवाज सुनाई दी और उसने मुड़कर देखा तो प्रेमा खड़ी है ।



7


प्रेमा को देखकर उसे लगा कि कोई खोई हुई चीज़ उसे मिल गई है। वह बड़ी देर तक उसे निहारता रहा और प्रेमा भी उसे बिना पलकें झपकाएँ देखती रहीं। फ़िर प्रेमा उसके नज़दीक आई और उसका हाथ पकड़कर उसके पास बैठ गई।


कैसे हो तुम ?

जी रहा हूँ, तुम्हारे बिना

ऐसे क्यों कहते हो? शहर जाकर कितना बदल गए हों।

मुझे लगता है कि मैं गौव से निकलकर ज्यादा बदल गया हूँ । मोहन ने गहरी सांस ली । और फ़िर प्रेमा को देखते हुए बोला कि अब भी देर नहीं हुई है । मुझे आज भी तुम्हारा इंतज़ार है । इन दस-ग्यारह महीनों में, मैं पंद्रह हज़ार से ज्यादा कमा रहा हूँ । आगे भी पढ़ाई कर रहा हूँ । किस्मत से मेरे आसपास अच्छे लोग है, जिन्होंने मुझे सही रास्ता दिखाया है।

मैं तुम्हारे लिए खुश हूँ, मोहन। 

मैं तुम्हारे साथ खुश रहना चाहता हूँ, कहते हुए मोहन ने प्रेमा के होंठो को छू लिया और इतने दिनों बाद मोहन का स्पर्श पाकर प्रेमा बेचैन हो उठी और उसने भी मोहन को चूमना शुरू कर दिया। दोनों के दरमियाँ एक दीवार खींच गई थीं, जो टूटती गई । वह दोनों एक दूसरे को आज पा लेना चाहते थें । नहर के पास एक टूटी -फूटी झोपड़ी थीं, जो कहते है कि किसी बुढ़िया की थीं। दोनों वहीं चले गए और अपनी उमड़ती भावनाओं को एक दूसरे पर उड़ेलने लगे। मोहन की साँसों को महसूस करती, प्रेमा आज चरम सुख का अनुभव कर रहीं है। जब दोनों को एक दूसरे को पाकर संतुष्टि हो गई तो मोहन प्रेमा के बालों में हाथ फेरने लगा। तुझे डर तो नहीं लग रहा? किस बात का? वहीं, जो अभी हमारे बीच हुआ। नहीं, तू कौन सा मुझे, माँ बना देगा। प्रेमा ने हँसते हुए कहा तो मोहन के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई।


इस बारे में बात करना इतना मुश्किल भी है मोहन ने मन ही मन सोचा । तू कहे तो तेरे बापू से तेरा हाथ माँग लो । तुझे भी अपने साथ ले जाऊँगा। प्रेमा ने यह सुना तो मोहन से अलग होकर उठकर बैठ गई । माँ गुज़र गई थीं, तेरे जाने के दो-महीने बाद, अब सवा साल तक तो घर में कुछ उत्सव नहीं मनेगा । और मोहन मेरी हिम्मत नहीं होती कि तेरे बारे में बात करो । देख ! प्रेमा उसने उसे समझाते हुए कहा कि मैं तेरे सारे सपने पूरा करूँगा । शहर में हर चीज की आज़ादी है । दोनों बड़ी आसानी से इस मुश्किल से भी निकल जायेंगे । प्रेमा ने अपने कपड़े ठीक किए और झोपड़ी से बाहर निकल गई प्रेमा इस रविवार को मैं तेरा स्टेशन पर इंतज़ार करूँगा। मुझे पूरी उम्मीद है कि तू ज़रूर आएगी । मोहन जाती हुई प्रेमा को देखकर बोला।


इस रविवार वह फ़िर स्टेशन पर खड़ा है । बिरजू पहले ही शहर के लिए निकल चुका है । उसे दूर से आती प्रेमा दिखी, वह खुश हो गया । दौड़कर पास गया तो देखा कि ,वह कोई ओर लड़की है । वह निराश हो गया। गाड़ी के जाने का समय हो गया है। और एक बार फ़िर मायूसी साथ लिए प्रेमा के बेगैर शहर पहुँच गया ।


समय अपनी गति से चल रहा है । मोहन ने अब कॉल सेंटर की नौकरी छोड़ दी । वह किसी इलेक्ट्रॉनिक कंपनी में सर्विस टीम में लग गया । उसका वेतन भी बढ़ गया । मोहन अब अलग मकान लेकर रहना चाहता है, मगर वह बिरजू और श्याम को भी नहीं छोड़ना चाहता । अब कुछ दिनों से देख रहा है कि रेशमा उसमे कुछ ज्यादा ही रूचि दिखाने लगी है, बहाने से उनके फ्लैट में आना। मोहन के साथ घूमने का प्रोग्राम बना लेना और तो और उसके पसंद की चीजें बनाकर लाना। बिरजू और श्याम ने भी रेशमा का झुकाव मोहन की ओर देखा है । मैं तो कहता हूँ कि प्रेमा के किस्से पर अब मिट्टी डाल । पूरे दो साल हो चुके हैं, रेशमा के बारे में सोच। बिरजू ने कहा। मुझे लगता है कि वो पैसे की वजह से तेरे साथ चिपकी हुई हैं । तू उस पर खर्चा करता है । जूही का बाप कुछ करता नहीं। उसकी सारी कमाई तो घर जाती है । अपने शौक तेरे से पूरे करवाती है । श्याम ने सिगरेट पीते हुए कहा । कोई लड़की मेरे साथ नहीं रहना चाहेगी और तुम्हें पता है,क्यों ? उसने दोनों को गौर से देखा । बिरजू चुप हो गया और वहाँ से खिसक गया । श्याम भी उसके कंधे पर हाथ रखकर एकतरफ़ा हो गया ।


आज रेशमा का जन्मदिन है । उसने सभी दोस्तों को बुलाया है । मोहन ने उसके लिए एक ड्रेस खरीदी है, जिसे वह खरीदना चाहती थीं,मगर पैसे की कमी के कारण खरीद नहीं पाई। सब मस्ती कर रहे हैं । नाच-गाना , खाना पीना सब उसके फ्लैट में हो रहा है । रेशमा उसे द्वारा दी गई नीले रंग की ड्रेस में बेहद सुन्दर दिख रही हैं। रात के ग्यारह बजे रहे हैं, सब रेशमा के घर से निकल गए, उसकी सहली जूही भी श्याम के साथ निकल गई। जैसे ही मोहन जाने को हुआ तो रेशमा ने उसका हाथ पकड़कर उसे सोफे पर बिठा लिया । मोहन को यह उम्मीद नहीं थीं, रेशमा उसके पास आकर बोली, " मैं तुम्हे पसंद करती हूँ। उसके मुँह से यह सुनकर मोहन को कोई हैरानी नहीं हुई। वह भी रेशमा को पसंद करता है। और उसे लगता है कि रेशमा शहर में रहती है, उसे समझ लेगी । वह अभी यह सोच ही रहा था कि रेशमा न उसके गालो को चूम लिया । तो मोहन भी उसके होंठो की तरफ़ झुक गया। तभी कुछ सोचकर उसने कहा कि कल बात करेंगे। मोहन यह कहकर, वहाँ से चला गया। उसके फ्लैट से नीचे उतर कर जब सड़क पर पहुंचा तो उसने देखा कि बिरजू को कुछ लोग बुरी तरह मार रहे हैं । वह ज़ोर से चिल्लाया और उन्हें हटाने लगा। उन लोगों ने उसे भी मारना शुरू कर दिया। श्याम ने जब देखा देखा कि दोनों दोस्त मार खा रहे हैं तो वह दौड़कर वहाँ से भाग गया। और सड़क पर किसी को ढूँढने लगा जो उसकी मदद कर सकें । पुलिस को देखकर उसने सोचा कि उनसे मदद ली जाए इसीलिए उन्हें बुलाकर वहाँ ले आया। पुलिस को देखकर वे लोग भाग गए, मगर पुलिस ने मोहन और बिरजू को पकड़ लिया पर पैसे देने पर ज़्यादा पूछताझ नहीं की । 


8


कौन थें ये लोग ? खामखाह पुलिस को 5000 रुपए देने पड़ गए, ये पैस मुझे गॉंव भेजने थें । मोहन न अपने जख्मों पर दवाई लगाते हुए कहा । बता भी बिरजू, कौन थे ये लोग? श्याम भी चिल्लाया। यार ! सट्टा खेला था, हार गया और उधारी चढ़ गई। कितनी उधारी ? मोहन ने भी चिल्लाते हए पूछा? यही कोई दो-तीन लाख के आसपास है। बिरजू की नज़रे झुक गई। दोनों दोस्तों न सिर पकड़ लिया। तुझे क्या ज़रुरत थीं इन कामों में पड़ने की ? ये लोग तुझे छोड़ने वाले नहीं है, देखा नहीं हम न आते तो यह तुझे मार ही डालते । श्याम ने गुस्से में कहा तो बिरजू बोल पड़ा । यार ! ऐसी बात नहीं है, बस इन्हें पैसा मिल जायेगा तो ये अपने आप मेरा पीछे छोड़ देंगे। अच्छा ! पर इतने पैसे आएँगे कहाँ से? यार! तुम लोग, मेरी कुछ मदद करो तो मैं इस मुसीबत से बाहर निकल सकता हूँ । बिरजू ने गुज़ारिश की। मेरे पास इतने पैसे नहीं है, उस एक्सीडेंट में ही इतना खर्चा हो गया । बाकि फ़िर घर में भी तो देने होते हैं और अब मैं जूही के साथ घर बसाने की सोच रहा हूँ। तो मुझसे तो कोई उम्मीद मत ही रख । यह सुनकर उसने बड़ी उम्मीद से मोहन की तरफ़ देखा, और मोहन भी उसके हाव-भाव को देखकर समझ गया और बोल पड़ा, मैं तो पहले ही तेरी इतनी मदद कर चुका हूँ।


 कितने महीनों से तूने किराया नहीं दिया और तो और घर का राशन भी ज़्यादा, मैं ही भरता हूँ। पिछले महीने तूने मुझसे पैसे लेकर अपने घर पर भेजें थें। याद है, या भूल गया। नहीं यार ! मैं तो तेरा एहसान मानता हूँ इसलिए कह रहा हूँ कि इस बार भी मेरी मदद कर दें। कैसे कर दो ? मैंने जो पैसे बचाएँ है, उससे मुझे भाई की क्रिकेट अकादमी की फीस भरनी है। कुछ पैसे घर भेजूँगा और अब अलग किराए का घर लेने की सोच रहा हूँ। मोहन ने एक ही सांस में बता दिया, जैसे यह बात बतानी सबसे ज़रूरी थीं। अलग घर, उसकी क्या ज़रूरत है ? बिरजू ने श्याम को देखा, मगर उसने उसे ऐसे देखा कि जैसे उसे यह बात पहले से पता हों। सालों ! तुम दोनों के मन में चल क्या रहा है? बिरजू ने मोहन का कॉलर पकड़ा तो श्याम ने उसे पीछे खींचते हुए कहा। मैंने ही उसे कहा है, समझा ? मतलब? मतलब यह कि आज से ठीक पंद्रह बाद, हमें यह घर खाली करना है। मैं किसी और कॉलोनी में किराए का घर लूँगा और जूही मेरे साथ रहेंगी । यानि शहर की हवा लग ही गए गॉंव के बिल्ले को, हाँ लग गई, खुश । मैं तो कुछ समय बाद जूही से वैसे भी शादी करने वाला हूँ। कम से कम साथ रहेंगे तो एक के किराए की पैसे बचेंगे, जो हमारे काम आयेंगे और मोहन भी यहीं करने वाला है। बिरजू ने मोहन को देखा, भाई तुझे क्या हों गया । तू प्रेमा को भूल गया। तू मुझे छोड़कर जाने के लिए तैयार हो गया? बिरजू ने फिर उसे पकड़ लिया । यार चार साल हो गए हैं, शहर आए हुए । अब जिन्दगी में तरक्की भी करनी है । रेशमा मुझसे सच्चा प्यार करती है। और प्रेमा तो अब कबकी आगे बढ़ चुकी होंगी । यह कहते हुए मोहन की आवाज़ में टीस है।


अगर तू चाहे तो यहीं रह सकता है । श्याम ने यह कहकर कमरे की बत्ती बुझा दी और सोने के लिए मुँह फेर लिया। मगर बिरजू की आँखों में कहाँ नींद थीं। उसने पंद्रह दिन बहुत कोशिश की वो मोहन को पैसे देने के लिए मना लें । मगर मोहन ने अपने भाई की फीस भर दीं । रेशमा को साथ लेकर नया मकान भी ढूँढ लिया और पंद्रह दिन ख़त्म होने से पहले दोनों ने खुद ही किराया दे दिया। और मोहन ने 5000 रुपए बिरजू के हाथ में पकड़ाएँ, और फ़िर घर से निकल गए। बिरजू अकेला रह गया, उसके मन में गुस्सा, चिढ़ और नफ़रत भर गई । उसे यह याद रहा कि दोनों दोस्तों ने मना का दिया है, पर यह याद नहीं रहा कि अगर यह दोनों दोस्त न होते तो वह इस शहर में कैसे रहता।

मोहन और श्याम ने नई अपनी ज़िन्दगी शुरू की। रेशमा के साथ मोहन बहुत खुश है, उसे रेशमा में अपनी प्रेमा नज़र आती हैं, और यह उसके जीने के लिए काफ़ी हैं। बहुत दिनों से देख रहा है कि रेशमा कुछ परेशान है, उसने रेशमा को करीब लाकर पूछा कि क्या बात है? कोई बात है तो बताओ , मैं तुम्हें ऐसे परेशान नहीं देख सकता। रेशमा ने उसकी आँखों मे अपने लिए फ़िक्र देखकर कहा, नहीं कोई बात नहीं है, वो मेरा भाई मुझसे पैसे माँग रहा हैं, क्या करो, कुछ समझ ही नहीं आ रहा है। कितने पैसे चाहिए? यहीं कोई 40,000 के क़रीब, यह बोलती हुए उसकी जबान झिझक रही है। पैसे तो ह, मेरे पास पर मैंने अपनी दुकान ख़रीदनी है, उसके लिए पैसे जोड़ रहा हूँ । मेरा भाई वापिस कर देगा । ठीक है , कहते हुए उसने अलमारी के लॉकर से पैसे निकाले और रेशमा को दिए । तभी उसे ख्याल आया कि कई महीने हो गए बिरजू से मिलना चाहिए । यही सोचकर वो अपन काम से लौटकर वहीं पुराने मकान की तरफ़ चला गया।


वहाँ जाकर पता चला कि वह उन लोगों के जाने के कुछ दिनों बाद ही वहाँ से चला गया था । उसने श्याम से मिलने की सोची तो वह उसकी तरफ हो लिया। श्याम ने उसे खुश होते हुए बताया कि वह और जूही अगले महीने शादी करने की सोच रहे हैं, यार ! अच्छी बात है। पर बिरजू का कुछ पता है? हाँ, यार ! मुझे लगता है कि वो गॉंव चला गया है, दरअसल वो लोग, उसे ढूंढते हुए ऑफिस पहुँच गए थें, फिर क्या अगले दिन से उसने ऑफिस आना बंद कर दिया । तुझे कैसे पता? तूने तो ऑफिस छोड़ दिया था न ? उसके ऑफिस में काम करने राजेश ने बताया । तभी जूही बाहर से आई, उसको देखकर वह मुस्कुराई और बोली, कैसे हो आप दोनों ? "अच्छे हैं, रेशमा को भी ले आते, वो कह रही थीं कि उसका भाई आने वाला है, घर पर। भाई ? उसका तो कोई भाई नहीं है ।! जूही ने हैरान होते हुए कहा। हो सकता है, कि दूर का रिश्तेदार हो। श्याम बोल पड़ा । इतने साल से मेरे साथ है, मैंने तो आज तक किसी को नहीं देखा। हो सकता है, उसे तुम न जानती हूँ अबकि बार मोहन ने सफ़ाई दीं और वहाँ से चला गया। रेशमा ने उससे झूठ क्यों बोला ? आख़िर उसके मन में चल क्या रहा है--?


जैसे ही वह घर पहुँचा उसके कदम दरवाज़े पर ही ठिठक गए, अंदर से दो लोगों के बोलने की आवाज़ आ रही हैं।

रेशमा अब उस मोहन को छोड़कर मेरे साथ चलो ?

हाँ, मैं सोच रहीं थीं कि उससे और पैसे ले लो ? उसने अपनी दुकान के लिए काफ़ी पैसे जोड़े हुए हैं ।

मुझे वो इतना बेवकूफ नहीं लगता कि आसानी से पैसे दें देंगा । 

उसकी चिंता तुम मत करो, मैं अपन तरीके से निकलवा लूँगी ।

दो महीने बाद तुम्हारा पेट दिखने लग जायेगा, फ़िर मुश्किल हो जायेगी । इसलिए अगले हफ्ते ही निकल लो, यहाँ से।


यह सुनते ही मोहन के पैर के नीचे से जमीन खिसक गई, उसने गुस्से में दरवाजा पूरा खोल दिया। दोनों उसे देखकर हैरान हो गए। उसने लड़के का कॉलर पकड़ लिया । रेशमा ने छुड़ाने की कोशिश की, मगर कोई फ़ायदा नहीं हुआ। उसने उसे धक्का दे दिया । अब दोनों तरफ़ से गाली-गलोच और मारपीट होने लगी। मोहन को आपे से बाहर जाते देख, रेशमा ने उसके सिर पर बेलन मारा और वो लड़खड़ा गया। तभी उसने मोहन की जेब में से अलमारी के लॉकर की चाबी निकाली और उसमे रखे 100000/-रुपए निकाले और दोनों घर का कुछ सामान लेकर भाग गए। मोहन वहीं बेहोश होकर गिर गया।

दो घंटे बाद, उसकी आँख खुली तो देखा कि पुलिस उसे घेरकर खड़ी है, उसे लगा कि कहीं उससे कुछ गलत तो नहीं हो गया। आप हमारे साथ चले, जब वह पुलिस स्टेशन पहुँचा तो देखा कि श्याम पहले से ही वहाँ मौजूद है। दोनों को लेकर पुलिस अंदर गई और एक लाश की तरफ ईशारा करके बोली कि क्या इसे आप पहचानते हैं? दोनों ने देखा तो वह बिरजू हैं, उसके शरीर पर बहुत घाव है। दोनों के होश उड़ गए। मोहन की तो रुलाई फूट पड़ी, श्याम ने उसे सम्भाला । कोई एक लाख रुपए के लिए किसी की जान भी ले सकता हैं, एक लाख? मिस्टर मोहन, आपके दोस्त के ऊपर कई लाखों का कर्जा था। उसने किसी माफ़िया के ड्रग्स चुराए थें, और उन लोगों ने ही उसे मार डाला। इसका मतलब अपना कर्जा चुकाने के लिए उसने, यह हरकत की और मारा गया । दोनों को उसकी मौत का सख्त अफ़सोस है। हमें उसे छोड़कर नहीं जाना चाहिए था, रोते हुए उसने रेशमा वाली बात भी श्याम को बता दीं।

यार ! मैं भी कुछ ख़ास नहीं हूँ, पुलिस स्टेशन से निकलकर बताता हूँ। दोनों ने एक रजिस्टर पर हस्ताक्षर किये और पुलिस स्टेशन से बाहर निकल गए। जूही के घरवाले जात-पात के चक्कर में पड़कर, हमारी शादी से खुश नहीं है। दो दिन पहले, उसका भाई तो मुझे धमकी भी देकर गया है, और जूही को भी अपने साथ ले गया हैं। अब मैंने सोचा है कि यहाँ से कहीं दूर चले जायेंगे । कम से कम कुछ महीनों तक तो हम दूसरे शहर में ही रहेंगे। उसने एक लम्बी गहरी सांस लेते हुए कहा । 


तूने, जूही से बात की ?


हाँ, उसके कहने पर ही यह प्लान बनाया हैं। कल वो मुझे स्टेशन पर मिल रहीं हैं।


ठीक है, अपना ध्यान रखियो। कहते हुए उसने श्याम को गले लगा लिया।


9


वक़्त फ़िर पंख लगाकर उड़ रहा है, मोहन ने कर्ज लेकर अपनी दुकान खरीद ली। अब उसकी दुकान भी अच्छी चल रही हैं । वो अपनी दुकान पर ही बैठा सोच रहा है, बिरजू और श्याम को गए पाँच महीने हो चुके हैं। कहाँ हम तीनो एक साथ इस शहर में आए थें और कहाँ अब सिर्फ़ मैं अकेला रह गया हूँ । जूही के घरवाले अब भी श्याम और जूही को ढूंढ रहे हैं । दोनों एक शहर से दूसरे शहर भागते फ़िर रहे हैं, मैं समझता था सिर्फ मेरे साथ ही दिक्क़ते हैं, मगर मेरे दोस्त भी कौन सा सुखी हैं। तभी किसी ग्राहक ने मोहन का ध्यान अपनी तरफ खींचा तो वह फ़िर काम में उलझ गया। घर पहुँचा तो माँ का फ़ोन आ गया।

हाँ, माँ सब ठीक है?

हाँ, बेटा वो तेरी शादी की बात चलाई है।

माँ, अभी रुक जाओ बताऊँगा आपको। फिलहाल नहीं, पहले छोटे को काम पर लग जाने दो।

लेकिन बेटा, लड़की अच्छी है , एक बार .........।

माँ आवाज़ नहीं आ रहीं, आपसे बाद में बात करता हूँ। कहकर उसने फ़ोन काट दिया ।

माँ भी न, कैसे समझाओ । यही सब सोचते हुए, उसे नींद आ गई ।

सुबह जब उसने दुकान खोली तो साथ वाली दुकान पर काम करने वाले रौनक को देखा, जो उसे देखकर हँस रहा है । वह अपने साथ दो-चार लड़के और लेकर खड़ा था, जब मोहन से रहा नहीं गया तो उसने पूछ ही लिया, क्यों बे क्या बात है? क्यों दाँत दिखा रहा है?

मोहन भाई, एक बात तो बताओ कि वो ऑप्रेशन करवा लेने के बाद तुम ठीक से कर पाए ?

क्या बकवास कर रहा है? उसने उसे धक्का दिया ।

इतना बुरा लग रहा है तो अपने कारनामों की वीडियो क्यों बनवाई?

क्या मतलब?

यह देखकर मोहन के पसीने छूट गए, उसने देखा कि जब उसने रेशमा को सब सच बताया था और उसके बाद जो हमारे बीच हुआ उसकी का यह वीडियो है। वह दिन उसे याद आने लगा।

रेशमा मैं, तुम्हें कुछ बताना चाहता हूँ?

क्या ?

यहीं कि कुछ मज़बूरी और पैसे की ज़रूरत चलते मैंने ऑपरेशन करवा लिया था ।

मैं समझी नहीं, मोहन ने उसे सारी बात विस्तार से बता दीं ।

रेशमा हैरान हुई और कुछ सोचकर बोली, "मुझे तुम्हारा प्यार चाहिए। हम मिलकर कोई रास्ता निकाल लेंगे । यह कहते हुए उसने मोहन के होंठो को चूम लिया। और मोहन भी उसकी आँखों में अपने लिए प्यार देखकर, उसे बेतहाशा चूमने लगा और फ़िर जो कुछ हुआ इस वीडियो में नज़र आ रहा है । सबको अपनी ओर हँसते देखकर, वह शर्मिंदा सा दुकान में घुस गया । और अपने फ़ोन पर रेशमा का नंबर तलाशने लगा।

जैसे ही रेशमा ने फ़ोन उठाया, उसके बोलने से पहले ही वह बोल पड़ी ।

और मोहन कैसी रहीं?

तुझे शर्म नहीं आती, ऐसी घिनौनी हरकत करते हुए, मेरे नहीं अपने बारे में तो सोचा होता ।

तूने ध्यान से देखा नहीं, कैसे मैंने इंटनेट के कमाल से अपना चेहरा ढक लिया है । उस दिन गलती से यह वीडियो बन गया था, दरअसल मुझे टिकटॉक पर अपनी वीडियो बनाने का शौक है, उस दिन मैं कोई वीडियो बना रही थीं कि यह ऑन कैमरा रह गया था । और सच कहो, मैंने बाद में जब यह वीडियो देखा तो इस वीडियो को हटाने का मन नहीं हुआ । और जब पैसे की ज़्यादा ज़रूरत थीं तो मैंने इसे किसी को बेच दिया । और देख, लोग देखना चाहते हैं कि तेरे जैसे लड़के भी कोई टैलेंट रखते हैं।

इससे पहले मोहन गाली देता, उसने फ़ोन काट दिया । चार पाँच दिन वो अपने घर स नहीं निकला। मगर यह वीडियो पूरी तरह पूरे देश में वायरल हो रहा है। कोई भी आहट होती तो वह डर जाता, उसे लगने लगा कि उसके आसपास के लोग उसके घर पर पत्थर फ़ेंक रहें हों । मोहन की हालत खऱाब हैं, उसे लग रहा है, अब ज़िंदगी में कुछ नहीं बचा । उसने यही सोचकर अपने खाते के पैसे भाई के अकाउंट में डाले, और रात के दो बजे घर से निकल पड़ा । उसने सोच लिया है, हाईवे पर जाकर गाड़ी के सामने आकर जान दे देगा ।


हाईवे पर लगातार चलती गाड़ियों को देखकर उसे डर तो बहुत लगा, मगर अब उसे जिंदगी से ज्यादा डर लग रहा है, जब गॉंव से शहर आया था तो सोच रहा था कि प्रेमा के बिना ज़िन्दगी कैसे कटेंगी। मगर किस्मत ने उसका साथ दिया और वह ज़िन्दगी के साथ अब कुछ बेहतर कर रहा है। और जब रेशमा उसे मिली तो उसे लगा उसे भी सपने देखने का हक़ है। मगर वह फ़िर से शून्य पर पहुँच गया, जहाँ से उसने शुरू किया था, अब उसे नहीं जीना, बस बहुत हुआ। यह सोचकर, वह गाड़ी के सामने आ गया, और फ़िर सबकुछ ख़त्म। चारों तरफ़ हल्का शोर है, उसे लगा कि वह प्रभु की नगरी में आ गया है, उसके पैरों में बहुत दर्द है, शायद उसके कर्मो के लिए उसे बहुत मर पड़ी है, तभी उसे एक हाथ अपने माथे पर महसूस हुआ, आप ठीक है? उसने यह सुना और धीरे से आँखें खोली, उसे सफ़ेद कपड़ों में एक लड़की नज़र आई, मगर यह क्या यह तो नर्स है, मैं यहाँ कहाँ कैसे गया? अभी वह यह सोच ही रहा है कि उसकी नज़र उसके सामने खड़ी एक लड़की पर पड़ी। उसने उसकी आँखों में उठे प्रश्न को समझ लिया और कहने लगी। अभी तुम आराम करो, अस्पताल से छुट्टी मिले तो मेरे घर आ जाना, उस लड़की ने एक परचा उसके पास रखी टेबल पर रख दिया। मोहन ने आँखें बंद कर ली और सोचने लगा अब यह सब क्या है, चैन से मरने भी नहीं देते।

पंद्रह दिन बाद मोहन उसी पते पर पहुँच गया । उसके चेहरे और बाजू पर अब भी चोट के निशान है । उसने देखा घर ज़्यादा बड़ा नहीं है, मगर छोटे से बगीचे से सजा बहुत सुन्दर लग रहा है। उसने घंटी बजाई और दरवाज़ा उसी लड़की ने खोला । उसे देखकर वो मुस्कुराई और बाहर बगीचे में रखी कुर्सियों पर बैठने का ईशारा किया । वह थोड़ा संकुचित सा वहीं कुर्सी पर बैठ गया, वह थोड़ी देर बाद आकर उसके पास बैठ गई और गौर से देखते हुए बोली-

मरना क्यों चाहते थें ?

मोहन नज़रे नीची करके बोला, आपको पता नहीं है कि मेरे साथ क्या हुआ है?

मुझे सब पता है, पिछले एक महीने से नेटिज़ेंस तुम्हारे बारे में ही बात कर रहे हैं, तुम्हारा वीडियो, हर कोई हर सोशल प्लेटफॉर्म पर शेयर कर रहा है । उस लड़की ने अपना फेसबुक दिखाया, मोहन ने देखा कि उसकी वीडियो के ऊपर लिखा हुआ था, "नसबंदी पुरुष भी ले सकता है, सेक्स का आनंद, तो आप क्यों नहीं " यह पढ़कर मोहन फूट-फूटकर रो पड़ा । थोड़ी देर रोने के बाद, लड़की ने उसे पानी दिया और एक घूँट पीकर, उसने अपनी सारी कहानी उसे सुना दीं । मुझे तुमसे हमदर्दी है, पर इससे तुम्हें कुछ फ़ायदा नहीं होगा। अब अगर बच गए हो तो कुछ ऐसा होना चाहिए, जिसे तुम्हें भी फ़ायदा हो और मुझे भी । मोहन उसकी बात को समझ न सका और उसके चेहरे की तरफ ताकने लगा। चेहरे से तो समझदार और सुलझी हुई लगती है, पर शरीर की संरचना से पता नहीं चलता कि इसकी क्या उम्र होगी, कोई कम उम्र की नहीं है, मगर बड़ी भी नहीं लगती। मोहन उसे देखते हुए बोला, "आप कहना क्या चाहती हैं"?


10

पहले मेरे बारे में थोड़ा जान लो, मेरा नाम निवेदिता है। मैं पिछले 5 साल से महिलाओं और बच्चों का एक स्वास्थ्य संबंधी एनजीओ चला रही हूँ । मैं हर मंच पर महिलाओं और बच्चों के खराब स्वास्थ्य को लेकर बात करती हूँ । कितने बच्चे कुपोषण का शिकार हो रहे हैं, किस तरह महिलाओं को शादी के बाद होने वाली स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं जैसे अनियमित पीरियड गर्भपात मोनोपॉज वगैरह- वगैरह मेरे मुद्दे होते हैं।

मैं आपके लिए क्या कर सकता हूँ। मैं तो खुद ही हताश हूँ। मोहन ने अपनी नज़रे झुकाते हुए कहा।

मैं चाहती हूँ कि तुम अपनी आपबीती लोगों को बताओ, हमदर्दी हासिल करो। और पुरुषों को नसबंदी के लिए प्रेरित करो।

आपका दिमाग ठीक है, मुझसे जिया ही नहीं जा रहा है और आप मुझे तिल-तिल कर मारना चाहती हैं।

तुम हमेशा मरने की ही बात क्यों करते हो? तुम्हारी जिंदगी में क्या कोई नहीं है?

यह सुनकर मोहन की आंखों के सामने प्रेमा का चेहरा आ गया और उसकी आंखें भर आई। मगर वह कुछ नहीं बोला। निवेदिता ने फ़िर बोलना शुरू किया "मुझे कहीं से पता चला है कि कुछ महीनों के बाद जनसंख्या संबंधी कानून आने वाला है, अगर तुम साथ दोगे तो मैं अपने एनजीओ के जरिए औरतों के पक्ष में बोलूंगी और उनकी हमदर्दी हासिल करूंगी। और मुझे लगता है, मेरा सपना जरूर पूरा होगा निवेदिता के चेहरे पर चमक है।

मैं तो आपको अच्छा समझता था, पर आप तो अपने ही बारे में सोच रही है।

तुम्हें पता है, मोहन हमारे देश में सिर्फ 10% प्रतिशत पुरुष नसबंदी करवाते हैं और महिलाओं की इस ऑपरेशन के चक्कर में कितनी सेहत खराब होती है। कितनी तो मर जाती हैं। मैरिटल रेप का नाम तो सुना ही होगा तुमने। 2015 से यह केस कोर्ट में है और अभी भी कोई नतीजा नहीं निकला है और अगर कल को मैं राजनीति में आऊँ तो इन औरतों के लिए कुछ करने की इच्छा भी रखती हूं। निवेदिता ने मोहन के चेहरे को पढ़ने की कोशिश की। मैं अपने गांव लौट जाऊंगा। मोहन जाने को हुआ। वहां तुम्हारा कोई भविष्य है, आगे तुम्हारी मर्जी है। निवेदिता ने भी उसे रोकना जरूरी नहीं समझा।

मोहन उसके घर से बाहर निकला और सोचने लगा अगर मेरे साथ ऐसा कुछ हो गया है तो इसमें मेरी कोई गलती नहीं है। फिर गांव जाकर करूंगा क्या, अब तो प्रेमा भी नहीं होगी। अकेले यह सब सोचकर और पागल हो जाऊंगा। अगर भगवान मुझे मारना नहीं चाहते थे, तो वह आखिर चाहते क्या है। मोहन के जाने के बाद निवेदिता सोचने लग गई, 'क्या डरपोक आदमी है। मेरा साथ उसका भी भला हो जाता, मगर यह तो है गँवार ही‌ निकला।


तभी घंटी बजी जरूर नंदा आई होगी, मैंने उसे कहा था कि समता पार्टी के अध्यक्ष से मेरी मीटिंग करवा दे। यही सब सोचते हुए उसने दरवाजा खोला तो सामने मोहन को देखकर हैरान और खुश हो गई।


 मोहन को शुरू में हिचकिचाहट महसूस हुई, पर जब उसे लगा जिंदगी ने यही रास्ता उसके लिए छोड़ा है तो उसने बिना किसी झिझक के लोगों के सामने बोलना शुरू किया। उसने अपनी मजबूरी के साथ-साथ औरतों की सेहत की बात लोगों को समझाई। मोहन ने समाज के पुरुषों को बताया कि नसबंदी कराने में झिझक कैसी। हम भी अपने परिवार की बेहतरी के बारे में सोच सकते हैं। और हमेशा से सोचते आए हैं। अगर आज आदमी अपनी पत्नी के साथ जाकर बच्चों के जन्म के लिए अपनी कमी का इलाज करवा सकता है तो बच्चों के पैदा होने के बाद परिवार नियोजन के लिए मदद भी कर सकता है। उसकी इन सभी बातों ने अनेक लोगों को प्रभावित किया। निवेदिता ने हर सोशल साइट पर मोहन की वीडियो डालने शुरू कर दी। लोग जुड़ते गए और कारवां बनता गया।


आखिरकार निवेदिता के एनजीओ 'मानव कल्याण' का नाम भी दुनिया के सामने आने लगा। उसकी संगत में इजाफा हुआ और उसने लोगों को भावी जनसंख्या कानून से जोड़ना शुरु कर दिया। उसकी पहल देखते हुए देश की समता पार्टी ने उसे टिकट दिया और अब निवेदिता को पूरे 2 साल हो चुके हैं, विधायक बने हुए। और मोहन को भी नगर निगम का मेयर बना दिया गया है। आज तीन साल बाद मोहन दिवाली पर अपने गांव जा रहा है, और उसकी बहन को दूसरा बेटा भी हो गया है। उसके छोटे भाई को अंडर-19 क्रिकेट टीम में चुन लिया गया है। पर उसकी मां बेटे की नसबंदी का सदमा सहन ना कर सकी और हमेशा के लिए दुनिया छोड़ कर चली गई। अगर आज मां होती तो देख पाती, मैंने खोनें के साथ-साथ पाया भी बहुत कुछ है। मैंने अपने गांव में रोजगार के साधन लोगों को दिए हैं । आज उसके गांव में बच्चों और औरतों के बेहतर स्वास्थ्य के लिए योजनाएं चलाई जा रही हैं। पुरुष भी बढ़-चढ़कर नसबंदी कैंप का हिस्सा बन रहे हैं। लोग उसकी बहुत इज्जत करते हैं। उसे अब रेशमा से भी कोई शिकायत नहीं है। उसका दोस्त श्याम जूही के साथ सुखी सुख से रह रहा है।

वह भी पार्टी का स्टार प्रचारक बन चुका है।

तभी ट्रेन स्टेशन पर रुकी और उसकी सोच को भी विराम लग गया। स्टेशन पर गाड़ी और ड्राइवर उसका इंतजार कर रहे हैं। गाड़ी सीधा उसके बंद पड़े घर के आगे रुकी। फिर उसने भारी कदमों से दरवाजे पर लगा ताला खोला और अंदर आ गया। सामान उसका ड्राइवर रखकर चला गया। उसने पूरे घर को देखा, उसे मां की याद आ गई और उसकी आंखें नम हो गई। वह चारपाई बिछाकर आंगन में लेट गया और उसने आंखें बंद कर दीं। और जब आंखें खोली तो उसके सामने उसकी बहन खाना लिए खड़ी है। बेला, तू कब आई ? बस अभी आई। खाना खा लो, भैया। अभी मन नहीं है तू रसोई में रखा जा। बेला, मैं कल शाम की गाड़ी से वापस जा रहा हूँ। आए हो तो थोड़े दिन रुक जाओ। नहीं, बस घर के हालत देखनी थी। यह खाली पड़ी दुकान, तेरे नाम कर दी है। बाकी, कभी कुछ और चाहिए तो बताना, कहकर उसने बेला के सिर पर हाथ रख दिया। और बेला उसे लिपटकर रो पड़ी।

वह नहर के पास बैठा है और घड़ी में शाम के 5:00 बजे हैं। इस समय वह सिर्फ प्रेमा को भी याद कर रहा हैं काश! हम साथ होते, तभी उसे पानी में किसी की परछाई दिखीं तो उसने पीछे मुड़कर देखा तो प्रेमा खड़ी है। उसकी आंखों को विश्वास नहीं हुआ, उसने उसे छूने की कोशिश की तो वह सिहर गई। प्रेमा तू! तू तो, दूसरे गांव बस गई थी। तेरा घरवाला कैसा है? सब एक सांस में ही पूछ लेगा। नहर के पास बैठ गई और वह भी उसके पास बैठ गया। और नहर की तरफ देखते हुए बोली, घरवाला मजे में है, पूरे 6 महीने हो गए, मायके आए हुए। बाबा उससे बात करने गए हैं। शायद एक-दो दिन में यहां से चली जाओ।


क्या हुआ, उदास लग रही है।

तेरी बद्दुआ लगी है।

तेरा बुरा सोच कर मैं जिंदा नहीं रह सकता।

ब्याह नहीं करवाया? अब तो बड़ा नेता बना फिरता है ।

तेरे जैसे एक मिली थी, मगर वह सचमुच तेरे जैसी निकली, छोड़ कर चली गई।

मार ले ताना, हक बनता है तेरा।

अब दिल की बात भी ना बताऊं।

दिल तो तू ही ले गया था, मोहन अब तो पिंजर ही रह गया है, यहां पर। बापू ने अपनी बिरादरी में शादी करा दी। शादी के बाद पता चला कि उसमें कुछ कमी है और वह मुझे बांझ बनाने पर तुला हुआ था। बहुत लड़ाई झगड़े हुए, वापस घर आ गई। उसके मां-बाप ने उसके देसी इलाज करवाए। तब कहीं जाकर शादी के 3 साल बाद बच्चा हुआ। कुछ महीने ऐसे ही गुजर गए। फिर वही गाली गलौच। फिर वापस बापू के घर आ गई। आज बाबू उससे बात करने गया है। हमेशा ऐसे ही होता है, कई कई महीने मायके में पड़ी रहती हूं। पता है, जब उसने पहले जूता मारा था, तब लगा था कि इससे अच्छा तो तेरे साथ रहकर दुनिया की बातें सुन लेती। तब तेरी बहुत याद आई, मोहन। कहते हुए प्रेमा की आंखों में आंसू आ गए।

अब क्या सोचा है?

सोचना क्या है वहीं वापस जाओ और झेलो।

मेरे साथ चल, कुछ नहीं रखा इस रिश्ते में। मैं कानूनी तरीके से तुझे उससे अलग करवा दूंगा।

पागल हो गया है क्या, दो ढाई साल की बेटी है मेरी। और लोग क्या कहेंगे, वैसे भी मैं तेरे लायक नहीं हूं। लोग क्या कहेंगे, यही सोचकर तो तुमने हम दोनों का ऐसा हाल कर दिया।

अगर तुझे लगता है कि तूने मुझे कभी प्यार किया है तो अपनी बेटी को लेकर कल शाम स्टेशन पर आ जाइयो। मैं तेरा इंतजार करूंगा। कहकर मोहन प्रेमा को बिना देखे चला गया। और प्रेमा चिल्लाती रही, "मैं नहीं आऊंगी मोहन मैं नहीं आऊंगी।"

मोहन स्टेशन पर खड़ा है। गाड़ी जाने वाली है। मगर प्रेमा का कहीं कुछ पता नहीं। आखिर हारकर वह गाड़ी में चढ़ गया। गाड़ी ने गति पकड़ी, तभी उसे एक आवाज सुनाई दी । मोहन! मोहन! उसने दरवाजे के पास जाकर देखा तो प्रेमा हाथ में बच्चा और थैला लिए भागती आ रही है उसने गाड़ी की चेन खींची ओर लपककर गाड़ी से उतर गया। प्रेमा! प्रेमा! कहकर उसकी तरफ दौड़ा और उसे गले लगा लिया मैं तुझे बहुत प्यार करती हूं। बहुत प्यार। कहते हुए, मोहन के गले लग गई।


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