तलाश
तलाश
एक दस साल की बच्ची कुछ ढूँढ रही थी। इधर से उधर रास्तों पर भटक रही उस बच्ची ने हर किसी से मदद की गुहार लगाई लेकिन कोई भी मदद के लिए आगे नहीं आया। थोड़ी ही दूर खड़ी हुई दिव्या ये सब देख रही थी।
जब उससे यह सब देखा नहीं गया तो वो उस बच्ची के पास गई और उससे पूछा- “क्या ढूँढ रही हो बेटा?”
उस बच्ची ने बड़े ही भोलेपन से कहा- “मैं अपनी मासूमियत ढूँढ रही हूँ। आपने देखी है कहीं पर?”
“नहीं बेटा, मैंने तो अपनी भी मासूमियत नहीं देखी। वैसे क्या नाम है आपका?”
“मेरा नाम है- दिव्या............।” इसी आवाज के साथ दिव्या की नींद टूट गई क्योंकि उसे बिकना था एक बार फिर ज़िंदगी के बाज़ार में और तलाश करनी थी अपनी मासूमियत कुछ टूटे हुए सपनों में।