तीन दिन भाग 6

तीन दिन भाग 6

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तीन दिन  भाग 6

शनिवार 15 अगस्त सुबह 7 बजे

 

       कल का दिन बहुत हाहाकारी गुजरा था। लगभग सभी महिलाओं की आँखें उनके रोने और जागने की चुगली कर रही थी। सभी बड़े कमरे में एकत्र हुए और अंडाकार टेबल के इर्द गिर्द बैठ गए पर इनमें दो सदस्य नदारद थे। बादाम तो दुनिया ही छोड़ चुकी थी और झाँवर कैदी था। रमन ने चन्द्रशेखर और सुदर्शन से कहा कि वे जाकर झाँवर को ले आए तो शान्ति पूर्वक उससे बादाम की मौत और अंतिम क्रिया की चर्चा की जा सके। वे दोनों खामोशी से चले गए पर अगले ही मिनट भारी शोरगुल ने सभी को भाग कर झाँवर के कमरे में जाने पर मजबूर कर दिया। उस कमरे में पहुँचते ही सबकी आँखें विस्फारित हो गई। झाँवरमल का पलंग खाली पड़ा हुआ था। उसकी जिस चादर से उसे बांधा गया था वह वहीं भूमि पर लावारिस सी पड़ी थी और सामने की दीवार पर कोयले के टुकड़े से बड़े बड़े अक्षरों में लिखा हुआ था

                   !!अब सब × खलास!!

         डॉ कामना थर-थर कांपने लगी। मानव मिश्र ने उसे सहारा दिया और समझाने लगे। नीलोफर उधर हिचकियाँ लेने लगी। चंद्रशेखर चाहे जितने जीवट वाला व्यक्ति हो पर उसकी पत्नी सुरेखा का मन चूहे जैसा था। उसका चेहरा राख की तरह सफ़ेद पड़ गया था। वे सब बोझिल क़दमों से बाहर आ गए और फिर अंडाकार मेज के इर्द गिर्द बैठ गए। रमनसिंह ने अपना सर दोनों हाथों में पकड़ा हुआ था। बाकी लोग भी मौन थे। इस मुसीबत ने सबका दिमाग चकरा दिया था। मानव मिश्र अपनी पत्नी कामना को धीमे-धीमे कुछ समझाने का प्रयत्न कर रहे थे।  बाकी सब भी आपस में कुछ बातचीत कर रहे थे अचानक तेज हवा चली और ऊपर लगा हुआ झूमर जोर जोर से हिलने लगा मानव ने सर उठाकर ऊपर देखा तो अज्ञात भावना के वशीभूत जोर से चिल्लाते हुए एक दिशा को भागे। कामना सर झुकाये रो रही थी उसने अचकचाकर ऊपर देखा तो विशालकाय झूमर उसे अपनी ओर आता दिखाई दिया और जब तक वो हिल पाती तब तक सैकड़ों किलो का बिल्लोरी कांच का झूमर उसके चेहरे पर आ गिरा जिससे उसकी गर्दन तुरन्त टूट गई और वह निष्प्राण होकर टेबल पर गिर पड़ी। सभी भौचक्के से देखने के सिवा कुछ न कर सके। मानव तुरन्त चिल्लाते हुए पलटे और झूमर हटाने की कोशिश करने लगे। चंद्रशेखर सदाशिव और लोगों ने मिलकर झूमर हटाया और कामना को बाहर निकाल कर पलंग पर लिटा दिया। डॉ मानव ने उसकी नब्ज टटोली और दहाड़ मारकर रो पड़े। उनकी प्रिय पत्नी अब इस दुनिया में नहीं थी। कामना की प्रिय सहेली बिंदिया फूट फूट कर रोने लगी। बाकी महिलायें भी जोर- जोर से चीख चिल्ला और रो रही थी। अभी बादाम की लाश का निपटारा नहीं हुआ था तब तक कामना भी भगवान को प्यारी हो गई थी। डॉ मानव भी खूब रो रहे थे रमन ने डॉ मानव को बाहों में भरकर छाती से चिपटा लिया और खुद भी फूट-फूट कर रो पड़े। वे खुद को बहुत बड़ा अपराधी मान रहे थे। उन्होंने सभी से कहा कि किले से निकलने का कोई रास्ता जरूर होगा। हम सब रास्ता तलाश करने की कोशिश करें। यहां से निकल जाने में ही भलाई है। सबने सहमति में सर हिलाया पर मंगत राम बोले साईं! वो जो मारवाड़ी ने सबको मार डालने की धमकी दी है उसका क्या होगा? वो तो भाग गया है। अगर कहीं अँधेरे उजाले में वार कर बैठा तो मेरी नीलू का क्या होगा?

मंगत ने कुछ ऐसे लहजे में बात कही कि ऐसी अवस्था में भी कुछ को हंसी आ गई। रमन बोले कोई अकेले न घूमे और पूरी सावधानी रखे। 

           सबने दो तीन के ग्रुप बनाये और रास्ता ढूंढने चल दिए। कई घंटों तक वे रास्ता ढूंढते रहे। पर उस विशाल किले के मुख्यद्वार के अलावा उन्हें कोई और मार्ग न मिला।

कहानी अभी जारी है.....

क्या हुआ आगे? कैसी बीती इस ग्रुप के बचे हुए सदस्यों के साथ? जानने के लिए पढ़िए भाग 7


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