तीन दिन भाग 13
तीन दिन भाग 13
तीन दिन, भाग 13
रविवार 16 अगस्त, शाम 4 बजे
नीलू की आत्महत्या से सब दुखी थे। मानव के हत्यारे होने की बात ने भी सभी को हिला कर रख दिया था पर संदेह के बादल छंट जाने से अब सब एक दूसरे से बोल बतिया रहे थे और किसी तरह रात के बारह बजने की प्रतीक्षा कर रहे थे जब श्रीवास्तव आकर किले का दरवाजा खोलता और उन्हें इस नर्क से मुक्ति मिल जाती। दो दिन पहले यही लोग कैसे हँसते खिलखिलाते यहां आये थे और अब इनकी दुनियाँ कैसे बदल चुकी थी।
बिंदिया बहुत दुखी थी। कभी की उसकी पक्की सहेली नीलू की मौत का उसे बहुत दुःख हो रहा था। उसे लग रहा था कि अगर वो नीलू से इतने बुरे ढंग से पेश न आई होती तो नीलू आत्महत्या न करती। इसी तरह के विचार एक और व्यक्ति के मन में उमड़ रहे थे। जो बिंदिया के प्रति प्रतिशोध की भावना से भर चुका था। सुबह जब मानव वहां से भागा तो थोड़ी ही देर में लौटकर बाहर ही छुप गया था और उसने अपनी आँखों से नीलू की आत्महत्या का दृश्य देखा था। उसे भी लग रहा था कि नीलू की मौत की जिम्मेदार बिंदिया ही है। वह दबे पाँव जाकर एक नुकीला वजनी पत्थर ले आया था और उसे मुट्ठी में दबाये उचित अवसर की प्रतीक्षा कर रहा था जब वह बिंदिया पर हमला करके अपने कलेजे की आग ठंडी कर सके। कुछ समय में ही उसे अवसर मिल गया। शाम का धुंधलका छाने लगा था। बिंदिया कुर्सी पर बैठी ऊँघ रही थी। बाकी सब भी अपने अपने ढंग से आराम कर रहे थे। अचानक आंधी तूफ़ान की तरह मानव हॉल में दाखिल हुआ और झपट कर बिंदिया की ओर गया। वह जोर-जोर से बिंदिया को गालियाँ दे रहा था जिसकी वजह से उसकी प्रेमिका को अपनी जान देनी पड़ी थी। बिंदिया ने घबराकर उठने की कोशिश की तो उसकी साड़ी कुर्सी में फंस गई और वह मुंह के बल गिरी पर इसी बात ने उसकी जान बचा दी। मानव ने उसकी कनपटी को निशाना बनाकर जो हाथ घुमाया था वो वार खाली गया और वह अपने ही वेग से त्यौरा कर भूमि पर गिर पड़ा। और इस बीच चंद्रशेखर की जबरदस्त लात भी उसकी कमर पर पड़ चुकी थी जो चीते की तरह झपट कर वहाँ पहुँच गया था। डॉ मानव इस डबल झटके को संभाल नहीं पाया और ऐसी अवस्था में गिरा कि उसके हाथ का नुकीला पत्थर उसकी ही कनपटी में बुरी तरह घुस गया। उसकी आँखें उलट गई और वो भूमि पर गिरकर तड़पने लगा।
सभी दौड़कर उसके पास पहुंचे और उसे घेर कर खड़े हो गए। बिंदिया भी सहमती हुई आई जो जान से जाते बाल बाल बची थी। चंद्रशेखर ने मानव का सर गोद में लिया और बोला, मानव! आखिर तूने ये सब क्यों किया?
मानव ने एक बार आँखें खोली और फिर मूँद ली।
रमन बोले, मानव! अब तू मर रहा है सच बता दे!
मानव ने फिर आँखें खोलकर मिचमिचाइ जिसमें खून बहकर घुस रहा था। वो बोला, मैं और नीलू एक दूसरे को बहुत चाहते थे जब झाँवर को बादाम की हत्या का आरोपी मान कर कैद कर लिया गया तब मेरे मन में एक विचार आया और मैंने रात को झाँवर के कमरे में जाकर उसके सर पर वार करके बेहोश कर दिया और उसके कपड़े और चैन वगैरह उतार लिए फिर उसे रस्सी से अच्छी तरह बाँध कर खिड़की से बाहर कबाड़ पर फेंक दिया और दीवार पर चेतावनी लिख दी ताक़ि झाँवर पर सबका शक पक्का हो जाये। उसने मुझे हमला करते देख लिया था पर मुझे परवाह नहीं थी क्यों कि मुझे पूरा विश्वास था कि इतना दुर्बल झाँवर अधिक देर तक इस झटके के बाद जिन्दा नहीं रहेगा लेकिन वो जिन्दा रहा। इतना बोलकर वो हांफने लगा।
क्या कामना के मरने में भी कोई साजिश थी? गुंडप्पा ने पूछा।
हाँ! मानव बोला, बिना कामना और मंगत के मरे हम दोनों मिल नहीं सकते थे तो मैंने झाँवर को फेंकने के बाद ही ऊपर गैलरी में जाकर झूमर का नट ढीला कर दिया था और जब झाँवर के गायब होने की खबर फैली और सब बाहर आये तो मैंने जानबूझकर कामना को ले जाकर चालाकी से उस कुर्सी पर बैठा दिया जो झूमर के बिलकुल नीचे था पर मेरी नजर ऊपर ही थी इसलिए जैसे ही झूमर गिरने लगा मैं दूर भाग गया और कामना मारी गई।
मंगत को तुमने कैसे ख़त्म किया? चंद्रशेखर ने पूछा
मैं, सदाशिव और सुदर्शन टीम बनाकर झाँवर को ढूंढ़ रहे थे। मैंने दूर से ही मंगत को थक कर पेड़ के नीचे लेटे हुए देखा तो मेरी बांछें खिल गई। सदा और सुदर्शन एक तरफ झाँवर को तलाश कर रहे थे मैं पेड़ों के बीच से मंगत की ओर बढ़ा। झाँवर की सुनहरी रेशमी शर्ट बड़ी आसानी से फोल्ड होकर मेरी पतलून की जेब में आ गई थी वो मैंने निकाल कर ओढ़ ली और दूसरी जेब से सोने की चैन भी निकाल कर पहन ली फिर मंगत के सर पर वजनी पत्थर पटक कर वापस भाग कर सुदर्शन और सदाशिव की ओर आने लगा। मेरी सावधानी काम आई और तुमने दूर से मुझे देखकर झाँवर ही समझा। पेड़ के पीछे पहुंचकर मैंने शर्ट और जेवर वहीँ एक कोटर में छुपा दिए और आगे आकर थक कर बैठ गया और सुबकने लगा। फिर सुदर्शन और सदाशिव मुझे समझाने लगे तब तक तुम आ गए। शोभा बोली, "क्या नीलू को भी इन सब बातों को जानती थी?"
हाँ! मानव बोला। हमने मंगत और कामना की मौत की बाबत पहले ही चर्चा कर ली थी पर पत्थर से मैं उसे मारूँगा यह मैं भी नहीं जानता था इसलिए मंगत की ऐसी दर्दनाक मौत देखकर नीलू हिल गई थी।
शोभा बोली, तभी तुम कामना की चिता जलाते वक्त पत्थर की तरह बेहिस थे। तुम्हारी आँखों में एक बूँद आंसू नहीं था।
हाँ! मैं तो उलटे खुश था पर जब नीलू पर मेरी नजर पड़ी तब उसने आँखों ही आँखों में मुझे इशारा किया तब मैं फूट फूट कर रोने का अभिनय करने लगा।
लेकिन तुमने सदाशिव को क्यों मार दिया? पहलवान ने पूछा।
मेरे हॉस्पिटल में उसी की मजदूर यूनियन है। उसने मेरे कर्मचारियों को भड़काकर मेरा बहुत नुकसान किया था तो उसी का हिसाब चुकाना था। पर ललिता भाभी खामखाह जान से गई। मेरी जेब में झाँवर की चैन का एक टुकड़ा था जो उसे मारने के बाद मैंने बाहर फेंक दिया और चुपचाप भीतर आ गया। उस समय तक सब की नजर में झाँवर ही कातिल था तो मेरी ओर किसी का ध्यान तक नहीं गया।
अगर झाँवर होश में आकर तुम्हारा नाम बक देता तब क्या होता? रमन सिंह बोले।
वो तो बक ही रहा था, मानव हांफते हुए बोला। जैसे ही उसकी चेतना लौटी उसने बार-बार डॉक्टर डॉक्टर कहा जिसे सबने समझा कि वो डॉक्टरी सहायता मांग रहा है जबकि वो मुझे अपनी हालत का जिम्मेदार बताना चाह रहा था। वो बार-बार मेरा हाथ भी पकड़ रहा था! तब मैंने बहाने से शोभा को गरम पानी लेने भेज दिया और फ़ौरन नाक दबाकर झाँवर की सांस घोट दी और जैसे ही वो मरा मैं उसे मुंह से सांस देने का अभिनय करने लगा। इतना कहते हुए मानव की सांस बुरी तरह उखड़ने लगी। शायद उसकी खोपड़ी के भीतर भयानक रक्तश्राव होने लगा था।
बादाम को किसने मारा? बताओ? गुंडप्पा बोला।
मैंने नहीं मारा! कहकर डॉ मानव ने एक हिचकी ली और उसके प्राण पखेरू उड़ गए।
सभी कातर दृष्टि से एक दूसरे को देख रहे थे। अचानक किले के दरवाजे की ओर से चरर-मरर की आवाज़ आई। सबने चौंक कर घड़ी देखी तो बारह बज चुके थे। श्रीवास्तव दरवाजा खोलकर अंदर आया तो थमक कर खड़ा रह गया। मानव की लाश देखकर उसकी हालत खराब हो गई। आगे और सब किस्सा सुनकर तो गनीमत हुई कि वो मर न गया।
बाद में बोझिल क़दमों से बिना किसी से कुछ कहे सुने सब गाड़ियों में बैठे और रोते सुबकते वहाँ से रवाना हो गए। पीछे उनके कुछ मित्रों की लाशें रह गईं जिनका निपटारा करने के लिए कुछ फोन कर दिए गए थे। सारे रहस्य तो सुलझ गए थे पर बादाम बाई की मौत का रहस्य नहीं सुलझ सका कि वो दुर्घटना में मरी थी या झाँवर ने उसे धक्का दिया था।