'सयानी मिटठो '

'सयानी मिटठो '

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''ए दुलारी कल तुम हमारे घर आना हम एक चीज दिखायेंगे तुमको।''आठ साल की मिठ्ठो ने अपनी हमउम्र सहेली का हाथ पकड़कर खुशी से झूमते हुए कहा।

''क्या दिखायेगी बता न ?'' दुलारी ने आंखैं फैलाते हुए प्रश्न किया।

''हमारी माई हमारे लिये लहँगा चुनरी लाई है, बहुत सुंदर सितारे लगे हुए हैं जब रौशनी पड़ती है तो बहुत चमकते हैं समझी !'' मिठ्ठो ने खुशी से झूमते हुए कहा ।

''क्यों लाई है तुम्हारी माँ तुम्हारे लिये लहँगा चुनरी अभी तो कोई उत्सव भी न है ?'' दुलारी ने आश्चर्य चकित होते हुए पूछा।ईर्ष्या के भाव भी आ जा रहे थे दुलारी के चेहरे पर ।

''उत्सव ही तो है अगले महीना हमारा विवाह जो है, बहुत सारी मिठाईयाँ बनेगी,मेहमान आयेंगे और ढोल बजेगा, मैं सजुंगी और फिर मेरा विवाह हो जायेगा बिलकुल कम्मो दीदी की तरह !''

''कम्मो मगर वो तो मर गयीं न, तू भी ऐसे ही !''''

''अरे ! हठ पगली है तू वो तो विवाह के बाद ससुराल नहीं जा रहीं थीं पढने की जिद कर रहीं थीं, इसलिये बापू ने उनका गला दबा दिया और वो और वो मर गयीं पर मैं ऐसा नहीं करूँगी नहीं तो बापू मुझे भी !''कहते हुए मिठ्ठो की आंखोँ से आँसू बह निकले और हवा के साथ तेज बालू उड़ती आई दोनो की आँखों में गिर गयी । दोनों हँसती जा रहीं थीं रामजाने रो रहीं थीं किसी को आवाज नहीं आई ।

''दुलारी तू भी विवाह कर लेना नहीं तो तुझे भी !''

''हाँ मार देंगे न !'' दुलारी ने मासूमियत से कहा।


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