Nitu Mathur

Inspirational

4.5  

Nitu Mathur

Inspirational

स्वयं की खोज

स्वयं की खोज

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"फ़िर से स्वयं की खोज

पार कीजिए हर बाधा"


एक दिन दोपहर में अचानक मोबाइल की तेज आवाज सन्नाटे को चीरती हुई बजने लगी, तभी जो कि मटर छील रही थी, , वत्सला तुरंत बेडरूम की तरफ़ भागी, ये सोच के की उस आवाज़ से उसकी बेटी" माही" जो कि दोपहर की मीठी नींद में सो रही थी, उठ ना जाए। तुरंत फ़ोन लेते हुए वो बैठक में फ़ोन सुनने आ गई, .. हैलो!! .. दूसरी ओर से भी वही आवाज आई, " बधाई हो" .मिस्टर शर्मा  आपका लिटल शेपर्ड स्कूल में होम टीचर के लिऐ चयन हो गया है।आपको २ दिन के अंदर स्कूल आ के अपना प्रस्ताव पत्र लेना है," उसे एक बार वत्सला से पूछना था, जो की बहुत चुप थी,अभी ठीक से समझ नहीं पा रही थी, और उसकी आंखों से आंसू टपक रहे थे। वो बहुत खुश थी की उसका चयन हो गया, उसके अपना आभार व्यक्त किया और हां भर दी। सारी बातचीत अब बस बच्चों के ऊपर ही केंद्रित सी हो गई, फिर वही बातें , और सीमित सी सोच उसके दिमाग़ में जैसे भरती चली गईं 


फोन रखने के बाद वो सोफे पे बैठ गई, उसे ये सब सपना सा लग रहा था, उसने ख़ुद को चूंटी भरी की ये सच है या नहीं । उसके सामने उसकी जिंदगी के गुजरे ११ साल एक फिल्म की तरह सामने चलने लगे। वत्सला ने अपनी बेटी मेहर और माही को पालने, बड़ा करने के लिए, अपने निखरते हुए मीडिया मार्केटिंग के कैरियर को कैसे छोड़ दिया था।


क्योंकि मुंबई में परिवार का कोई सदस्य उसकी सहयता के लिए नहीं आ सकता था, तो इसीलिए उसके पति और ससुराल वालों को यही निर्णय उचित लगा। रातों रात वत्सला की जिंदगी बोर्डरूम मीटिंग्स, टूर्स , क्लाइंट प्रेजेंटेशन से .. बच्चों के साथ बिना सोए, उनका खाना पीना, और डायपर बदलने में तब्दील हो गई। वो अपनी बेटियों के लिऐ एक पूर्णत: समर्पित मां थी, क्युकी वो दोनों ही इसके जीवन का लक्ष्य थी, अनेकों खुशियों भरी सौगात । मेहर और माही वत्सला की जान थी।

परिवर, दोस्त और सभी जानने वाले उसे मेहर और माही की मां कह के ही बुलाते थे, जैसे वही उसकी पहचान हो।

इसी उत्साह और पहचान के बीच , उसकी खुद की पहचान मानो ऐसे खो रही थी जैसे बंद मुट्ठी से मानो रेत फिसल रही हो।.. शुरू शुरू में तो वह आपने सहकर्मियों के साथ काफ़ी बातचीत करती थी, लेकिन जल्दी उसे खालीपन का अहसास होने लगा जैसे रेगिस्तान में कोइ पानी ढूंढ रहा हो।

जब भी कभी वो अपने पुराने दोस्तों ,या साथ पढ़ने वालों से मिलती तो, खुद को उनसे नीचे समझने लगी, उसकी बातो में वो खुद को सकुचाई सी और निम्न महसूस करने लगी।

लेकीन आज के समाज समाज का यही मापदंड है की , स्त्री अपने परिवार एवम बच्चों के लिए अगर अपने सपनों, महत्वकांक्षा का बलिदान करे, तो वो ही सर्वोपरि है, फिर चाहे उसे इस कार्य के लिए प्रशंसा या ईनाम मिले या न मिले, उसकी सफलता उसके इसी पद से मापी जाती है , यही उसकी पूंजी है.... कैसी विडंबना है आ ये..!!


वत्सला वो सब याद करने लगी कि किस तरह वो अपनी कार्य कुशलता से अपना ऑफिस का काम करती थी , लेकिन अब जैसे उसके धैर्य, क्षमता पे सवाल सा उठने लगा हो. क्या वो ये सब फिर से कर पाएगी? उसके अन्दर बार बार ये सवाल दर्द दे रहा था लेकीन वो उसे नही दबा पा रही थी, और समझ नही पा रही थी कि किस तरह अपनी बेटियों को अच्छा सा बचपन दे पाए। उसके काम पे फिर से लौटने की इच्छा, एकदम खत्म सी हो गई थी, जब उसके रिश्तेदारों कऔर पड़ोसियों के चुभने वाले ताने सुनने लगी, जैसे कि वो लोग उसके पुलिस बनकर उसकी गलती सुधार रहे हों। 


समाज के अविचारणीय दबाव और एक" सफल मातृत्व " 

का प्रमाण देने हेतु कई अग्निपरीक्षा से गुजरना पड़ता है. 

उसके पास आगे की योजना की पूरी सूची तैयार थी , जिसके लिए उसके पास शीशे में देखने का, कंघी करने का या खुद को संवारने का बिल्कुल समय नहीं था। १० साल में जो बालों की सफेदी के बाद स्कूल और कॉलेज में अव्वल आने वाली वत्सला , हर कार्य में निपुण वत्सला अब उसका हल्का सा प्रतिबिंब बनकर रह गई थी। उसकी ख़ुशी दोबारा तब लौटी जब उसकी बेटी को भी वैसे ही ईनाम और प्रशंसा मिली। वो अपनी खोई हुई पहचान के लिए तरस रही थी।

इस तरह की गति से तो उसका जीवन शायद रुक सा ही जाएगा, लेकिन कहते हैं ना " कि आपका दिल जिस चीज़ को ढूंढ रहा होता है, वो तलाश वापस लौट के ज़रूर आती है" । थोड़ा बहुत जो वो जानती थी कि वो एक बार लिटल शेपर्ड स्कूल की HR प्रमुख ऑड्रे कोल्हो से संयोग से मिल चुकी थी, जहां उसकी बेटियां पढ़ती थीं, वो उसकी जिंदगी का रुख बदलने वाली थी। वत्सला की बात करने की क्षमता से, भाषा के नियंत्रित अंदाज से प्रभावित होकर उन्होने उसे साक्षात्तकार के लिए बुलाया। १० साल के लंबे अंतराल केबाद जैसे उसका आत्मसम्मान और स्वाभिमान पुन: लौट के आया हो। उसका भय, आत्म संकोच अब जैसे उसकी ख़ुशी के आगे थम गए हों। उसने मिस ऑड्रे को धन्यवाद दिया और अपने जवाब के लिए कुछ समय मांगा l


वो उत्साहित के साथ साथ चिंतित भी थी, आगे बढ़ने के साथ उसका मन पीछे की ओर जा रहा था, आपने मन में ऐसे मिले जुले विचारों के साथ वो इधर उधर घूम रही थी। उसके मन में कई तरह की बाधा चल रही थी, और उसके सपने उनके नीचे कहीं दफ़न से हो रहे थे, सबसे पहले वो अपने सपनों को आगे तक ले जाने के लिए खुद से बात करना चाहती थी। उसने अपने आप से सवाल किया, कि आगे जिंदगी में ऐसा उसकी बेटियों ( मेहर और माही) के साथ हुआ तो, उन्हे भी अगर समाज के तथाकथित तौर तरीकों के अधार पर, एक आदर्श मां बनने के लिए, आपने सपनों एवम आकांक्षा की कुर्बानी देनी पड़े तो उसे कैसा लगेगा, ..... नहीं.... उसके अंदर की चीख जैसे बाहर निकली हो। बस इसी तरह की स्पष्ट और तेज आवाज से उसने दबे साहस को जगाया, और अपने आगे के निर्णय, अपनेसपनों की उड़ान ओर पहला कदम रखा। अपनी आत्म अनुभूति की कुशलता हमें अन्दर और बाहर दोनों तरफ़ से प्रसन्न रखती है।


वत्सला ने शीशे में अपनी बिखरी सूरत को देखा, वो एक नएआत्मविश्वास से मुस्कुराई। उसने अपने बिखरे बालों को संवारा, लिपस्टिक लगाई, और अपने फोल्डर में से अपना बायोडाटा एवम सारे जरूरी दस्तावेज निकलने लगी। वो अपनी मार्कशीट देखने लगी, जो की उसकी बेहतरीन कार्यकुशलता की प्रमाण थी । उसे अब अपने निर्णय पर और भरोसा होने लगा, और उसे आगे एक नए पड़ाव की शुरआत की अंदर से ताकत मिलने लगी, उसने अपने पति से इस प्रस्ताव पर विचार विमर्श किया, जो कि उसके इस अचानक इतने बदलाव देख के आश्चर्य में थे, और उसे फिर से सोचने का कहने लगे। लेकीनवो मान गए थे, कि उसके लिए घर और काम दोनों संभालना काफ़ी मुश्किल होने वाला होगा। परिवार के बाकी लोग भी उसके इस निर्णय के खिलाफ होंगे, लेकिन किसी तरह वो अपने निर्णय पर अडिग रही । अंततः वत्सला ने अपनी अंदर की दीवार तोड़ी, जो उसे हर नकारात्मक सोच विचारों से जकड़ी हुई थीं, और उसने इस नौकरी के लिए एप्लाई किया । वो अपने खुद की ताक़त से, अपने आत्मसम्मान, अपनी सीमाओं को लांघकर , अपने सपनों को पूर्ण श्रद्धा से पूरा करना चाहती थी । पूरे एक सप्ताह की तैयारी के बाद एक नए जोश, नई उमंग, उसने पूरी शिद्दत से साक्षात्कार दिया।

वत्सला ने अपने आत्म शक्ति इतनी मजबूती से पकड़ रखा था, की आगे आने वाली कोइ भी बाधा या रुकावट उसे नहीं तोड़ सकती थी , और ना ही उसके साहस को मिटा सकती थी। अब वो आगे बढ़ने के लिए पूरी तैयार थी , एक नए गगन को छूने के लिऐ उसे पंख जो मिल गए थे। 


आप सभी महिलाएं जो सशक्त हैं , आप सभी में वो साहस जो समाज की इन रूढ़िवादी सोच को तोड़ के आगे बढ़ सकती हैं , अपने सपनों को पूरा कर सकती हैं ।रास्ते की रुकावट को तोड़िए, बाधा को पार कीजिए, और खुद को फिर से तलाश कीजिए ।


बहुत से ऐब के बावजूद आप स्वयं में अनोखी हैं, पूर्ण हैं।सदा मुस्कुराती रहिए, महकती रहिए।



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