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Sunita Maheshwari

Tragedy Inspirational

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Sunita Maheshwari

Tragedy Inspirational

स्वप्न

स्वप्न

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एक रात अचानक गीता स्वप्न देखते-देखते डर से काँपने लगी और जोर से चिल्लाने लगी, ”हनुमान जी की मृत्यु हो गयी। हनुमान जी की मृत्यु हो गयी” 

पास में सोये हुए उसके पति श्याम ने उसे उठाया , पानी पिलाया और प्यार से पूछा, क्यों परेशान हो ?”

पसीने से लथपथ गीता ने बताया, मुझे आज बहुत ही विचित्र सपना दिखाई दिया है। मैंने सपने में देखा कि हनुमान जी की एक विशाल मूर्ति खंडित हो गई। सभी दुखी मन से कह रहे थे, हनुमान जी की मृत्यु हो गई। हनुमान जी हम सब को छोड़ कर चले गए हैं। सभी लोगों का रो-रो कर बुरा हाल हो रहा था। मृत्यु की भयानकता चारों और पसरी हुई थी। उस कोहराम वाले वातावरण में एक शांत चित्त साधु स्वभाव का व्यक्ति आया और सबको समझाते हुए कहने लगा, “रोना बंद करो, हनुमान जी की मृत्यु नहीं हुई है, आत्मा तो अजर-अमर है। बस शरीर ही बदलता है। साधु के समझाने पर कुछ ही देर में सब लोग चुप हो गए।”


ऐसा विचित्र स्वप्न देख कर गीता का मन व्यग्र हो गया था। वह मन ही मन सोच रही थी कि आखिर इस सपने का क्या अर्थ है ? क्यों दिखाई दिया उसे यह स्वप्न ? इसका निवारण क्या हो सकता है ? वह सोच रही थी कि हनुमान जी की विशाल मूर्ति वाले किसी मंदिर में जा कर प्रसाद चढ़ा कर आए।

अचानक चैन्नई से उसके छोटे बेटे के प्रोफ़ेसर का फोन आया। उन्होंने कहा, "आपका बेटा एक सड़क दुर्घटना का शिकार हो गया है। वह अस्पताल में है। कृपया जल्दी आ जाएं ।” 

फोन सुन कर गीता और उसके पति श्याम बहुत बेचैन हो गए। उनके आँसू थम नहीं रहे थे। उनकी आँखों के सामने से अपने उन्नीस वर्षीय पुत्र का चेहरा हट ही नहीं रहा था। तरह-तरह के बुरे विचारों ने उन्हें बुरी तरह जकड़ लिया था। जल्दी से उन्होंने तैयारी की और तुरंत ही बनारस के लिए टैक्सी ली। रास्ते में पल पल वे अपने बेटे की जानकारी प्राप्त कर रहे थे। वे जब बनारस पहुँचे तो चेन्नई की फ्लाइट जा चुकी थी। अतः वे बनारस से कोलकता की ट्रेन में बैठ गए। रेनुकूट से चेन्नई की दूरी उस दिन उन्हें बहुत खल रही थी। ट्रेन में बैठ कर वे बराबर चेन्नई फोन कर रहे थे। कुछ देर बाद लोगों ने उन्हें वस्तुस्थिति से अवगत कराना बंद कर दिया। उनका दिल घबराने लगा था। अनहोनी की आशंका के काले साँप उनके हृदय को छलनी कर रहे थे।


अचानक उनके पास एक रिश्तेदार का फ़ोन आया।  वे बोले, "अब डॉक्टर के करने योग्य कुछ नहीं बचा, आयुष का लीवर पूरी तरह डेमेज हो गया था। वह हम सब को छोड़ कर चला गया। आप धैर्य रखें। आपको भाभी जी को भी संभाल कर लाना है।”      

 अपने पुत्र के निधन के समाचार से गीता और उसके पति टूट गए। वे चुपचाप एक दूसरे का हाथ पकड़ कर बैठ रहे। आँसू गालों पर आ आकर सूखते जा रहे थे। अपार पीड़ा उन्हें व्यथित कर रही थी। अचानक गीता को हनुमान जी वाला स्वप्न याद आ गया। स्वप्न में देखा, सुना वह वाक्य अधीर माता- पिता का सहारा बन गया था उस दिन।

"हनुमान जी की मृत्यु नहीं हुई है। आत्मा तो अजर अमर है।”


गीता को लगा जैसे उसका पुत्र हनुमान जी की प्रतिमा में ही विलीन हो गया है। वह रोते-रोते अपने पति को भी सांत्वना देती रही, कहती रही अपने बेटे को कुछ नहीं हुआ है। वह अजर अमर है । वह सदा हमारे साथ है।

सह यात्री भी उनके दुःख से द्रवित हो गए थे।

ट्रेन कोलकता पहुँची और फिर वे फ्लाइट लेकर अपने दिवंगत पुत्र के पास चेन्नई पहुंचे। वहां जाकर उन्होंने अपने पुत्र का अंतिम संस्कार किया।

 

 

 



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