Sunita Maheshwari

Tragedy

3.3  

Sunita Maheshwari

Tragedy

मेरी प्यारी चारु

मेरी प्यारी चारु

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364



मनोरमा बहुत खुश थी । उसकी बेटी मीनल अपने बेटी चारु के साथ उसके घर जो आई थी । सारे दिन नानी -नानी की आवाजें सुनकर मनोरमा की खुशियाँ सातवें आसमान में मचल रहीं थी । मीनल और चारु के लिए वह क्या कुछ नहीं करना चाहती थी । एक दिन चारु बोली , “नानी चलो, मुझे आपके साथ स्कूटर पर बैठ कर आइसक्रीम खाने जाना है ।”


 मनोरमा तुरंत ही तैयार हो गयी । उसने अपना हेलमेट पहना और चारु को आइसक्रीम खिलाने ले गयी आइसक्रीम खा कर जब वे लौट रही थीं , तब अचानक एक कार ने उन्हें टक्कर मार दी । मनोरमा और चारु दोनों जोर से गिरीं और डिवाइडर से जा टकराईं ।


मनोरमा के हाथ से खून बह रहा था । वह स्वयं संभली और उसने जल्दी से चारु को देखा । चारु को देख कर उसकी ऊपर की साँस ऊपर और नीचे की साँस नीचे ही रह गयी । चारु के सिर पर गहरी चोट लगी थी । खून तेजी से बह रहा था । उसकी ड्रेस खून से लथपथ हो गयी थी । आसपास भीड़ जमा हो गई थी  । 


रोती, घबराती, कांपती मनोरमा के मुँह से निकला , “ अरे कोई, जल्दी अस्पताल ले चलो । बचालो बच्ची को । क्या मुँह दिखाउंगी मैं अपनी बेटी दामाद को ? मैंने तो हेलमेट पहना हुआ था , इसलिए मैं स्वयं तो बच गयी । पर मेरी प्यारी चारु…...काश उसने भी हेलमेट पहना होता ।”




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