Sunita Maheshwari

Drama Romance Inspirational

4.2  

Sunita Maheshwari

Drama Romance Inspirational

मोहे अपने ही रंग में रंग दे

मोहे अपने ही रंग में रंग दे

9 mins
397



“निकिता, शाम को तैयार रहना। मूवी देखने चलेंगे।”

कहता हुआ नितिन ऑफिस चला गया था। निकिता बहुत उमंग में थी, क्योंकि उसके पति नितिन ने एक लम्बे अरसे बाद उसे सिनेमा ले जाने की बात कही थी। वह ऑफिस से जल्दी अपना काम पूरा कर के घर आ गयी थी। उन्हें नौ बजे का शो देखने जाना था। नितिन के आने की प्रतीक्षा में वह दरवाजे पर आँख लगाए बैठी थी।

घड़ी में साढ़े नौ बज रहे थे, उसे चिंता होने लगी थी। उसने नितिन से बात करने के लिए मोबाइल उठाया ही था कि नितिन वापस आ गया। वह बोली , “अरे क्या हुआ! आज तो आपको बहुत देर हो गयी। सब ठीक तो है न ? मैं तो कब से तैयार बैठी हूँ।”

नितिन दिन भर के काम से बहुत थका हुआ था। वह कुछ नहीं बोला और सीधे कमरे में चला गया। निकिता उससे पूछती रही , “आखिर क्या बात है , कुछ तो बताओ।”

नितिन ने छोटा सा उत्तर दिया , “कुछ नहीं।”

निकिता का उत्साह पूरा ठंडा हो चुका था। फिल्म के टिकट भी बेकार हो चुके थे। निकिता ने खाना लगाया। दोनों ने चुपचाप खाना खाया और फिर सोने चले गए। दोनों एक दूसरे की तरफ पीठ कर के सोने का नाटक करते रहे।

निकिता की आँखों से आँसू गालों को भिगोते हुए तकिये पर गिरते जा रहे थे। उसके मन में नितिन की उदासी तीर बन कर चुभ रही थी। यह कोई एक दिन की बात नहीं थी, यह तो रोज की आदत बन चुकी थी। बढ़ती हुई ऑफिस की जिम्मेदारियों और परेशानियों एवं धन कमाने की तीव्र लालसा के कारण नितिन और निकिता के बीच दूरियाँ बढ़ती जा रही थीं। नितिन ने धन एवं सुख-वैभव के साधनों को अति शीघ्र जुटाने में अपने आपको झोंक दिया था। वह एकदम थक कर घर लौटता फिर अपने लैपटॉप को लेकर बैठ जाता। निकिता भी अपने ऑफिस में व्यस्त रहती। दोनों के बीच कुछ नया न होने की वजह से जिंदगी में नीरसता ने अपने तीखे पंजे फैला लिए थे। शारीरिक आकर्षण भी दिन प्रतिदिन कम होता जा रहा था।

उन दोनों का प्रेम विवाह हुआ था। वह सोच रही थी,

“शादी के पहले तो नितिन न जाने कैसे मेरे सपनों को अपनी आँखों से देख लेते थे और मेरे सारे अरमान मेरे कहने से पहले पूरे कर देते थे, पर अब उन्हें ऐसा क्या हो गया है कि अब वह मेरी तरफ देखते भी नहीं।”

उसे पुराने दिन याद आने लगे जब नितिन उसको बिना देखे एक दिन भी नहीं रह पाते थे।

शादी से पहले उसने नितिन से एक बार कहा था, “तुम मुझे दुनिया घुमाओगे न ?”

तब नितिन ने तुरंत ही दोनों के लिए अमेरिका से एम.बी.ए. में प्रवेश लेने के लिए कार्यवाही शुरू कर दी थी। जब फॉर्म भरने लगे तो निकिता ने अपने माता-पिता को बताया था। नितिन ने उन्हें भी बड़ी आसानी से अमेरिका में रह कर पढ़ाई के लिए तैयार कर लिया था। माता-पिता के पास धन की कोई कमी नहीं थी, इसलिए कोई परेशानी नहीं हुई। उसके बाद दोनों ने अमेरिका से एक साथ एम.बी.ए. किया था। हर पल आनंद से लबालब भरा हुआ था।

शादी के बाद भी दिल्ली में दो साल बहुत ही प्यार और मस्ती भरे बीते पर उसके बाद न जाने कौन सा ग्रहण लग गया। आपस में छोटी- छोटी अपेक्षाओं से ज़िन्दगी में कटुता बढ़ती जा रही थी। दोनों में से किसी को किसी की बात बुरी लगती, तो अपने मन में ही उसकी गाँठ बाँध लेता। धीरे- धीरे बढ़ती हुई कटुता जीवन की मधुरता को डसने लगी थी। दोनों मिलकर उसका कारण खोजना ही नहीं चाहते थे। चुप्पी से कैसे समस्याएँ हल होतीं। नितिन के व्यवहार में बेरुखी बढ़ती ही जा रही थी। रोज- रोज की ऐसी बेरुखी से निकिता तंग आ गयी थी। निकिता सोच रही थी ,

“जल्दी से बड़ा घर, बड़ी गाड़ी और सारे सुख साधनों को जुटाने के चक्कर में हमारे जीवन के रंगीन पल ही न जाने कहाँ खो गए। बस अब तो ई. एम. आई. की किश्त भरने की चिंता के कारण नितिन बस काम में ही व्यस्त रहना चाहते हैं। धन और प्रमोशन की लालसा ने उनके अन्दर की सरसता को जैसे मार कर ही रख दिया है।”

निकिता और नितिन अपने अपने सोच विचार में मग्न न जाने कब निद्रा की गोद में सो गए। फिर सुबह हुई और अपने अपने ऑफिस चले गए। जब शाम को निकिता और नितिन चुपचाप चाय पी रहे थे, तभी निकिता के घर से स्काइप पर कॉल आया। निकिता की माँ ने बड़े आग्रह पूर्वक कहा , “बेटा हमारी बहुत इच्छा है कि इस बार तुम और नितिन होली हमारे साथ मनाओ।”

निकिता तो माँ का प्रस्ताव सुन कर बहुत प्रसन्न हो गयी किन्तु नितिन ने कहा ,

“तुम चली जाओ। कुछ दिन सबके साथ रहोगी तो तुम्हें भी अच्छा लगेगा। मुझे तो बहुत काम है। मैं नहीं जा सकूँगा।”

निकिता की छोटी बहन मिनी ने बड़े अधिकार से कहा,

“जीजाजी, आपको होली पर आना ही है। मुझे आपके साथ होली खेलनी है। आप मना नहीं करेंगे।”

नितिन ने कहा , नहीं मिनी मुझे बहुत जरूरी काम है। मैं नहीं आ सकूँगा। प्लीज बात को समझो।”

मिनी बोली , “जीजाजी होली पर सब जगह छुट्टी होती है। काम तो होते रहेंगे पर साली का ऐसा ऑफर बार बार नहीं मिलेगा आपको।”

निकिता के पापा भी बोले ,

“बेटा, पूरा परिवार होली में साथ होगा तो बहुत अच्छा लगेगा। आ जाओ आप लोग। काम तो ज़िन्दगी भर चलते ही रहेंगे।”

पिताजी के आग्रह के बाद नितिन को निकिता के साथ उसके घर मथुरा जाना ही पड़ा।

जब नितिन और निकिता मथुरा पहुँचे तो पूरे परिवार में एक उल्लास भर गया। वैसे भी मथुरा में तो होली के त्यौहार की अलग ही धूम होती है। पूरे शहर में होली के उत्सव की निराली छटा थी।

निकिता के नीरस जीवन में होली के उत्सव ने कुछ सरस पल भर दिए थे। सब होली की तैयारी में लगे थे। निकिता वहाँ भी नितिन की चुप्पी से परेशान थी। उसने अपने कमरे में नितिन से धीरे से कहा , “नितिन प्लीज, ऐसे चुप मत बैठो, घर में सब से बात करो न। और हाँ, सबके सामने मुझसे भी वैसे ही बात करो, जैसे तुम पहले किया करते थे। तुम्हारी चुप्पी से मम्मी, पापा समझ जायेंगे कि हम लोगों के बीच कुछ अनबन है। उन्हें बहुत दुःख होगा।”

नितिन ने झुंझलाते हुए रूखा सा उत्तर दिया ,

“ठीक है, बाबा।”

तभी मिनी आ गयी और बोली ,

“चलो दीदी, जीजाजी के पास ही बैठी रहोगी या कुछ काम भी करोगी।”

दोनों बहने उठीं और आँगन में आकर रंगोली बनाने लगीं। मिनी ने दीदी और जीजाजी के बीच की लड़ाई को भाँप लिया था।

 वह निकिता से बड़े प्यार से बोली , “दीदी, क्या बात है, आप और जीजाजी खुश से नहीं लग रहे हैं?”

मिनी के प्यार भरे स्वाभाविक से प्रश्न पर निकिता की आँखों से दो मोती अनायास ही लुढ़क गए। उसने अपने आँखों के पानी को तुरंत ही पोंछ लिया। वह उत्सव के उल्लास में किसी भी प्रकार का व्यवधान नहीं बनना चाहती थी। रंगोली बनाने बाद दोनों बहनों ने पारम्परिक सुन्दर परिधान पहने। दोनों का सौन्दर्य अद्भुत लग रहा था। इसके बाद उन्होंने अपने भाई सागर के तिलक लगाया और ईश्वर से कामना की कि उनके भाई को कभी किसी की बुरी नज़र न लगे।

होलिका दहन के लिए मोहल्ले के सभी लोग एकत्रित हो गए थे। भक्त प्रहलाद की पूजा का पावन वातावरण था। ढोलक की थाप पर होली के गीत गूँज रहे थे। होलिका दहन हुआ और फिर सब मिल बाँट कर प्रसाद खाने लगे। सभी लोग बहुत खुश थे, पर नितिन मात्र दिखाने के लिए ही खुश था। ऐसे उमंग भरे वातावरण में भी उसके मन में कोई प्रेम, कोई उल्लास का भाव नहीं जगा था।

रात्रि में सभी ने बातचीत के संग स्वादिष्ट व्यंजनों का आनंद उठाया।

जीवन में सरसता लाने के लिए कुछ अवकाश और मौज मस्ती के पल भी आवश्यक होते हैं। ज़िन्दगी के दुःख-दर्द और एकरूपता को मिटा कर उत्साह एवं उमंग का संचार करने के लिए ही त्यौहार और उत्सवों की शुरुआत हुई होगी।

मिनी बार बार नितिन को रंगोत्सव की याद दिलाते हुए कह रही थी ,

“जीजाजी सुबह होली खेलने के लिए तैयार रहना।”

वह नितिन के साथ जम कर होली खेलने के लिए तैयार थी।

धुरखेल यानि रंगोत्सव का समय भी आ गया। जिसका मिनी को बहुत इन्तजार था। सुबह से ही मिनी की सहेलियों ने नितिन को घेरना प्रारम्भ कर दिया था। वे कह रही थीं ,

“जीजाजी, आज हम आपको नहीं छोड़ने वाले हैं। इतने रंग लगायेंगे कि आप परेशान हो जाएंगे।”

नटखट मिनी सबकी नेता बनी हुई थी। सागर के मित्र भी आ गये। फिर क्या था होली का रंग पूरी तरह ज़मने लगा था। नितिन होली खेलने से बच रहा था पर मिनी और उसकी सहेलियाँ उसे छेड़ छेड़ कर बार बार उकसा रही थीं। राधा- कृष्ण की पावन भूमि मथुरा में चारों ओर राधा- कृष्ण के दिव्य प्रेम के होली के गीत गाये जा रहे थे | लोग मस्ती से झूम, नाच, गा रहे थे। तरह तरह के गुलाल से वातावरण इन्द्रधनुषी रंगों से सज गया था। आँगन में टेसु के फूलों से बने रंग से एक हौद भरी हुई थी। मिनी की सब सहेलियाँ एक दूसरे को रंग लगा रही थीं ,फिर उस रंग भरी हौद में एक दूसरे को डूबा कर जीवन के अलौकिक आनंद ले रही थीं।

निकिता चुपचाप सहमी सी खड़ी थी। मिनी की सहेलियों ने मिल कर निकिता को खूब रंग लगाया और फिर उन्होंने निकिता को उठाया और उसे रंग की हौद में डाल दिया। निकिता की ऐसी हालत देख कर नितिन को हँसी आ गई। मिनी की सहेलियों तथा सागर के दोस्तों ने आँख का इशारा किया और फिर नितिन को “जीजाजी की जय” बोलते हुए पूरे जोर शोर से हौद में डाल दिया। मिनी अपनी सहेलियों के साथ जीजाजी के रंग लगाने लगी। अब नितिन को भी जोश आ गया था। नितिन ने आगे बढ़ कर मिनी के रंग लगाया वह फिर दुबारा मिनी को रंग लगाना ही चाहता था, पर मिनी ने जल्दी से निकिता को आगे कर दिया। मिनी निकिता और नितिन की दूरियां मिटाना चाहती थी।

नितिन निकिता से जा टकराया और उसके हाथ सीधे निकिता के गालों पर आ गए। होली की उस अनोखी मस्ती में, भीगे तन, मन से दोनों को प्रेम की एक नवीन अनुभूति होने लगी थी। उस मधुर, मदिर स्पर्श से नितिन के मन की जो प्रेम - बेल सूख सी गयी थी, वह फिर से हरी हो गई। दोनों के मन में फिर प्यार की मधुर कलियाँ फूट पड़ी थी।

मिनी और उसकी सहेलियाँ बहुत खुश थीं। उन्होंने नितिन और निकिता को बीच में रख कर एक गोला बना लिया। सब सहेलियाँ राधा-कृष्ण का प्रेम भरा गीत गा कर मस्ती से झूमने ,नाचने लगीं। अद्भुत दृश्य था वह।

नितिन और निकिता का तन- मन होली के रंग में पूरी तरह भीग चुके थे। वे अपनी सारी नीरसता होली के रंगों में ही उड़ा देना चाहते थे। दोनों एक दूसरे को अपलक निहार रहे थे। दोनों के मन बस यही कह रहे थे ,

“मोहे अपने ही रंग में रंग दे।”



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama