स्वभाव
स्वभाव
हम जानेंगे आज स्वभाव के बारे में, स्वभाव को कहते हैं कोई दवा नहीं वह ला इलाज है। कहते हैं, यह स्वभाव नैसर्गिक होता है। इसे हम बदल नहीं सकते, लेकिन हम कहते हैं यह यकीन के साथ बदल सकता है। हम अपना स्वभाव पूरी तरह बदल सकते हैं। यह बात हम सब को समझनी चाहिए। कुछ लोग बैठकर संकुचित विचारों का परिचय देते हैं। इन के मन में शंका कुशंका का संचय रहता है, लेकिन यह तो उनके विचारों का दोष है। वृत्तीका दोष है, इस वजह से उन्हें दूसरों के अच्छे कार्य या अच्छे गुण धर्म या अच्छी सोच दिखाई देती नहीं है। वह लोग सिर्फ नकारात्मक सोच रखते हैं। और वह वह खुद को बेहतर समझते हैं। वह खुद को ही को ही बुद्धिमान एवं कर्तृत्ववान समझते हैं। इस जग में मेरे सिवा कोई लायक, होशियार नहीं हैं ।ऐसा उन्हें लगता है ,इस बात में उनका खुद का ही नुकसान होता है। सबके पास अच्छे बुरे दोनो ही गुण होते, लेकिन वह इस बात को समझ नहीं पाते। उन्हें इस बात का एहसास नहीं होता है। उन्हें यह विचार छूता तक नहीं है। यह कोई इसका रहस्य नहीं है। ऐसे व्यक्ति हर इंसान में बुराई देखते हैं। इस कारण से नज़दीक के लोग उनसे दूर भागने लग जाते हैं। इस बात का जवाब भी उनके पास में होता है,लेकिन वह अच्छे लोगों से दूर हो जाते हैं।
इसके विपरीत जो लोग दूसरों में अच्छे गुण ढूंढते हैं या उनका गुणगान करते हैं। उन्हें कुछ नया सीखने को मिलता है। वह अनेक लोगों को जोड़कर रखते हैं। इस वजह से वह लोकप्रिय होते हैं। ऐसे व्यक्तित्व में बहुत ज्यादा अंतर होता है। फिर क्या होता है, एक नकारात्मक व्यक्ति के पास में दूसरे नकारात्मक लोग जाकर जमा होते हैं। वह उन्ही की तरह एक जैसा सोचते हैं। इसके विपरीत सकारात्मक व्यक्ति के पास अच्छे विचारों वाले लोग आकर्षित होते हैं।"ऐसे विचारों में बहुत बड़ी शक्ति होती है। हम कैसा विचार करते हैं यह बात हमारा भविष्य निर्धारण करता है। इस एक बात पर हमारा भविष्य अवलंब करता है।
एक बात याद आ रही है, एक नया मेहमान एक छोटे गाँव में गया था, तब उससे पता नहीं था कि उसे कौन से रोड पर जाना है। तो उसे यहां एक व्यक्ति दिखाई दिया, उससे उसने पूछा। एवं गाँव की जानकारी ली, वहां के गाँव के लोगों की भी जानकारी ली। वह व्यक्ति बताने लगा, कि हमारे गाँव का रास्ता इधर है वह ठीक नहीं है। बहुत पथरीला है और हमारे गाँव के लोग बहुत खराब है। जहां नहीं वहां नाक खूपसते है। एवं पहले नंबर के राजनीति करने वाले हैं। इस गाँव में एक भी व्यक्ति का स्वभाव ठीक नहीं है। इन लोगों को किसी का सुख देखा नहीं जाता, और दूसरों के सुख में जहर मिलाने के अतिरिक्त कुछ भी दिखता नहीं, उस व्यक्ति से बात करके मेहमान आगे बढ़ गया।
थोड़ा आगे जाने पर उस मेहमान को दूसरा व्यक्ति मिला, मेहमान ने उस व्यक्ति से भी जानकारी ली,
वह व्यक्ति बताने लगा, हमारे गाँव के लोग बहुत अच्छे और सज्जन हैं, हमारे गाँव में बहुत तरक्की हुई है। अभी तो सड़क भी सुंदर हो चुकी है। वाकई में सड़क ठीक थी।
हमारे गाँव के लोग एक दूसरे की मदद करने के लिए बहुत तत्पर रहते हैं। सब लोग बहुत अच्छी तरीके से हिल मिलकर रहते हैं। यहां कोई झूठ बोलता नहीं, एवं कोई किसी की निंदा या बुराई करता नहीं है। सब लोग सगे संबंधियों की तरह रहते हैं।
यहां एक उम्दा उदाहरण है, कि समाज में दो तरह के लोग होते हैं। कोई भी व्यक्ति बुरा होता नहीं, लेकिन सोचने का दृष्टिकोण बुरा या अच्छा होता है। दोष वह व्यक्ति का नहीं होता, अच्छाई को अच्छाई ही दिखती है, यहां व्यक्तित्व का दोष विचार अविचार का होता है। स्वभाव तो नैसर्गिक होता है, हम स्वभाव बदल सकते हैं।
सर्वप्रथम हमको यह बात स्वीकार करनी चाहिए, और हमे हमारे स्वभाव पर चिंतन मनन करना चाहिए,
खुद को समय देकर समझना चाहिए, हमारे मन में किस प्रकार के विचार आते हैं, पहले जान लेने की कोशिश करें, हमें कौन सी बातों से घृणा एवं चिढ़ है। अगर हम समझ जाए तो मन को एकाग्र करके सजग हो जाए। जिस चीज का हम तिरस्कार करते हैं, हम किस चीज से विचलित होते हैं, उस विचार को मन से दूर करना चाहिए।
एवं अच्छी बातों पर ध्यान देकर अपना और परेशान करने वाली बातों का चिंतन करे। हमें खुद को ही पूछना पड़ेगा की हम सच में आनंद में हैं या दुख में है, मुझे दूसरों में ही दोष क्यों नजर आते हैं मैं दूसरों के दोष क्यों गिनवाता हूं, फिर अगले व्यक्ति में बुराई ही है तो मुझे खुशी क्यों नहीं होती? एवं मुझे बुरा ही क्यों दिखती है, क्या मैं खुद बुरा व्यक्ति हूं, यहां खुद चयन कर ले,तो हम हमारी मदद कर सकते हैं, अतह: हमारे प्रश्नों का उत्तर हमें मिल जाएगा। वह हमें ही करना पड़ेगा, दूसरा कोई हमारी मदद इस बात में नहीं कर सकता।हम दिल में जैसा विचार लाते हैं वैसा ही होता है। इसीलिए अच्छी बातें सोचना चाहिए।
दूसरों के गुण ही देखना चाहिए। इसमें हमारे जीवन में बदलाव ज़रूर आएगा। उसका हमें फायदा ही होगा। और ना कुछ सीखने को भी मिलेगा। और हम हमारी प्रतिष्ठा भी कायम रख सकते हैं। अगर हमें अगले जनों से मान सम्मान की अपेक्षा है तो खुद भी वैसा ही रहना पड़ेगा या सोचना पड़ेगा।"हमारे ताले की चाबी हमारे ही जेब में रहती है। ना कि दूसरों के जेब में।
हम खुद को आनंद देने के लिए, हम मन में सिर्फ एक ही विचार लाए हम बहुत सुखी एवं आनंद में है।अगर हम आनंद में रहे तो हमारे आसपास के लोग भी आनंद में रहेंगे। खुद को ही आनंदित प्रफुल्लित करें।