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Ourooj Safi

Horror

4  

Ourooj Safi

Horror

स्वांग निशा की दहशत

स्वांग निशा की दहशत

14 mins
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इंग्लैंड मे 31अक्टूबर हालौवीन की रात बहुत जोश खरोश से मनाई जाती है। वहां उस दिन लोग आपको हर तरह के भूत और चुड़ैल के रुप मे दिखेंगे। उन लोगोॅ की मान्यता है कि 31 अक्टूबर को प्रेत आत्माए ऊपर के किसी लोक से नीचे धरती पर उतरती है। इग्लैंड मे रहते हुए मुझे एक साल हो चुका था, मै यहां अपनी मास्टर्स की पढ़ाई करने आई थी। बाहर की डिग्री से अच्छी तनख्वाह वाली नौकरी कि गुंजाइश बढ़ जाती है तो इसी मंशा से मै भी बाहर आ गई। जिस शहर में मेरी यूनिवर्सिटी थी वो ज्यादा बड़ा न था। यूनिवर्सिटी शहर से बाहर की तरफ थी और हास्टल भी बिल्कुल शहर की सीमा से बाहर था, हत्ता की जंगल की सरहद हास्टल के आहाते से शुरु हो जाती थी। रात होते ही जंगली जानवरो का शोर शुरू हो जाता। उनमे से भेडियों का शोर सबसे ज्यादा होता था। सर्दियो में जब शाम चार बजे से अंधेरा हो जाता था तो न खत्म होने वाली रातें शुरु हो जाती थी। अक्सर इन लम्बी खामोश रातो में यह भेड़िए हास्टल के आहाते में आकर डरावनी आवाज निकालते। इन भेड़िये के डर से हम लोग शाम होते ही हास्टल में बंद हो जाते और बाहर निकलने कि हिम्मत किसी कि भी नहीं होती। हालौवीन आने को था मैं और मेरी दोस्ते काफी उत्साहित थी 31 अक्टूबर को लेकर। हमने तय किया कि हम भी इस रात को मनाएंगे। शहर में जगह-जगह आयोजन हो रहे थे। हम लोगों को डर महसूस करने का शौक चर्राया था, इस वजह से हमने अपनी बुकिंग शहर से दूर एक होटल में करा ली थी। इस आयोजन में हम सबको किसी भूत प्रेत, चुड़ैल या वैंपायर की शक्ल बना कर जाना था। हम तीन दोस्त थी, जिनमे से एक चारवी थी, दूसरी जीनी थी जो जार्डन से थी। चारवी साउथ इंडियन थी पर उसकी फैमिली इंग्लैंड में ही थी उसका घर लंदन शहर मे था। हम तीनों की काफी बनती थी, हम तीनों यहां मास्टर्स करने आए थे। अक्सर हम घूमने निकल जातीं और हंसी-मजाक करके टाइम बिताती। चारवी दक्षिण भारत की होने कि वजह से काफी नमकीन थी जबकि जीनी तो पूरी जिनज़ादी ही लगती थी। दूधिया गोरा रंग नीली आँखे। जार्डन के लोग वैसे ही खुबसूरत मशहूर होते हैं। बाल भी उसके बड़े सुन्दर थे। उसकी गहरी आँखे देख कर कभी कभी खौफ का अहसास होता पर असल में वो एक हंस मुख हसीना थी जो कहकहे लगा कर हंसती और भरपूर जिंदगी जीती थी। हालौवीन वाली रात हम सब को डरावनी शक्ल अख्तियार कर के पार्टी मे जाना था। चारवी ने जादूगरनी का रूप धरा और एक ओवर कोट पहन कर सर पर नुकीली टोपी लगाई। उसके साइड में एक झोला लटक रहा था।बहुत शानदार वेष बनाए हुए थी वो। मैंने लम्बे नुकीले दांत लगा कर वैंपायर का वेश धारण किया। जीनी का रुप देख कर मैं और चारवी दोनो ठिठक गए। उसने कुछ भी ऊपर से नहीं किया था, बस एक भक सफेद गाउन पहना था और मेकअप के नाम पर सुर्ख गहरी लाल लिपस्टिक लगाई थी, गहरी नीली आँखों को थोड़ा रहस्यमय बनाया था। अपने इस रूप में वो एक हसीन चुड़ैल लग रही थी। उसे ऐसे देख कर मुझे वीराना कि जैस्मीन याद आ गई जो अपने खौफनाक हुस्न से इस दुनिया से परे लगती थी।सच में उसको देख कर बदन में झुरझुरी उठ रही थी। खैर हम सब रात 8.30 बजे के आसपास निकले और तकरीबन आधे घंटे में उस मुकाम पर पहुँच गए जहां पर आयोजन था। ये जगह सुनसान थी और आबादी से दूर थी, पास में ही ढेर सारे क्रास जमीन में गढे चमचमा रहे थे शायद कोई पुराना कब्रिस्तान होगा। ये हालौवीन इस लिए भी खास था क्योंकि इस दिन पूरे चांद की रात थी ऐसी हालौवीन की रात 18-19 साल में एक बार आती है , ऐसी खास रात जब चाॅद अपने पूरे शबाब पर होता है तब धरती पर रूहानी ताकत अपने चरम पर होती है। इस रात के बारे में काफी सुन रखा था तो दिल में उत्साह था।

इंग्लैंड में अक्टूबर भी ठंडा रहता है सो हवा की ठंडक और हल्का गिरता कोहरा माहौल में सनसनी पैदा कर रहा था। होटल के बाहर एक लम्बा रास्ता था, जहां लाईट नहीं मशाले जल ही थी, कुछ गाड़िया बाहर पार्क थी। दरवाजे पर दो भूत जैसे आदमियों ने हमारे पास चेक किए और हमें अंदर जाने दिया। भीतर का मंज्रर बड़ा भयानक था, एक से एक डरावने चेहरे थे। कुछ ने तो मास्क भी लगा रखे थे जो दिल में खौफ पैदा कर रहा थे। हम लोग एक टेबल पर जा कर बैठ गए। हम को ड्रिंक दी गई और खाने के लिए कुछ छोटा मोटा नाशता मिला। हम लोग बैठे माहौल का जायज़ा लेते रहे, फिर थोड़ी देर में डरावनी धुनों पर नाच शुरू हो गया। कुछ गेम्स भी खेले जा रहे थे, उन के जीतने पर ईनाम भी थे। चारवी ने अपने दोस्त को बुलाया था और वो हम दोनो को छोड उसके साथ लग गई थी। मस्त संगीत की आवाज पर मेरा दिल नाचने का चाहने लगा और मैं डांस फ्लोर पर चली आई, जीनी से भी आने को कहा मगर उसे डांस इतना पसंद न था तो वो वहीं बैठी रही। मैं जल्ती बुझती रौशनी के बीच शैतानियत से भरी धुनों पर न जाने कब तक थिरकती रही। मेरा ध्यान तब भंग हुआ जब मेरी नजर जीनी पर पड़ी, वो डांस फ्लोर के पास आ कर मुझे बुला रही थी। मैंने इशारे से पूछा क्या बात है तो वो खुद भी हाथ के इशारे से मुझे कुछ बताने लगी, मैंने रंग में भंग न डालते हुए ठीक है में सर हिला दिया वो मुझे अंगूठा दिखाते हुए हट गई। काफी देर नाचने के बाद जब मैरे पैर जवाब दे गए तो मैं वापस टेबल पर आ गई, ताजा होने के लिए जूस पिया फिर टाइम देखा तो साढ़े बारह बजने को थे, अब वापसी की तैयारी करनी थी। चारवी का तो अपने दोस्त के साथ ही जाने का प्लान था। मैंने जीनी को ढूंढने के लिए नजर उठाई तो मुझे कहीं ना दिखी। मैं उठ खड़ी हुई और उसे ढूंढने लगी। इन भूत प्रेतो के बीच में किसी को ढूंढना सजा से कम ना था। मुझे याद आया वह मुझे कुछ कह रही थी वैसे भी उसका दिल बंद जगह घबराता था कहीं बाहर ना हो यह सोचते हुए मैं बाहर आ गई। अंदर जितना शोर था बाहर उतनी ही खामोशी थी। आसमान में चांद सुर्खी माईल पीला था, ठंढ बढ़ गई थी मुझे कंपकंपी लग रही थी, मैंने जीनी को इधर उधर देखा लेकिन वह मुझे कहीं दिखाई नहीं दी तभी मेरे पीछे से एक औरत आई और मुझसे पूछने लगी क्या मुझे मदद की जरूरत है। उस औरत को देखकर मुझे बहुत अजीब लगा उसने जो अपना रूप रचाया था उसे देखकर अच्छे-अच्छो को उल्टी आ जाए। बरअक्स डरावने रूप के उसने बेहद गंदा रूप बनाया था। बाल ऐसे कि सालों से शायद उन्हें धोया ना गया हो गंदी चीकट लटें उसके कंधों पर झूल रही थी चेहरा भी मटमैला सा था और दांत इतना अंधेरा होने के बाद भी पीले चमक रहे थे। कपड़ो के नाम पर उसने बोरे नुमा चौंगा पहना था और उन कपड़ो से बहुत खराब बदबू आ रही थी। भारत में तो मांगने वालिया भी इस से अच्छे हुलिए में रहती थी। किसी तरह सांस रोक कर मैंने अपनी दोस्त का बताया, उसके पास से आ रही बदबू बर्दाश्त करना मुश्किल था इसी वजह से सांस रोकनी पड़ी। अंदर जब मैं डांस कर रही थी तो ये औरत सामने बैठी थी। उसने मुझसे फौरन पूछा कही सफेद कपड़ो वाली खूबसूरत लड़की तो नही। मेरे हां कहने पर उसने उस जगह इशारा किया जहा क्रास गढ़े थे। मैं पार्किंग लाट से होती हुई उधर पहुँची तो देखा घुटने में सर रखे जीनी वहां बैठी थी। मेरे पुकारने पर उसने सर उठाया और बड़ी गहरी नज़रो से मुझे देखा, पता नहीं उन नज़रो में ऐसी क्या था कि मैं कांप कर रह गई। खुद पर जल्द काबू पा कर मैं बड़े दोस्ताना अंदाज में उसको सुनाने लगी कि मैडम यहां बैठी हैं और मैं हर जगह तलाशती फिर रही हूं। जवाब मे वो कुछ न बोली बस मुस्करा कर खड़ी हो गई। अब वापस जाना एक मसला था। सन 2001 में मोबाईल इतना आम न था। मेरे और जीनी के पास तो मोबाइल था ही नही। जीनी को वही छोड़कर मैं अंदर चारवी के दोस्त से कैब बुक कराने चली गई। हम कैब का इंतजार करने लगे। न जाने जीनी को क्या हुआ था वो बात नहीं कर रही थी बस हूं हां मे जवाब दे रही थी। कैब आ गई थी हम उस में बैठ गए पर मेरी ये सोच कर जान निकल रही थी कि अगर हास्टल के आसपास भेड़िए हुए तो हम कैसे बचेंगे, कैब तो गेट पर उतार कर चली जाएगी पर मरता क्या न करता अंदर तो जाना ही था। हास्टल आ गया था, मैं जीनी के साथ अंदर आ गई। शुक्र था उस समय वहां कोई भेड़िया नहीं था। जीनी के कमरे से पहले मेरा कमरा पड़ता था सो वो मेरे कमरे में आ गई। कमरे की रौशनी जलाते ही मेरी नज़र जीनी पर गई तो वो मुझे कुछ अजीब सी लगी। उसके चेहरे के तास्सूरात बेहद पुरअसरार लग रहे थे। खुबसूरत चेहरे पर सख्ती थी और नीली आंखो में वहशीपन सा था, मैं एकटुक उसे देखे जा रही थी । मेरे ऐसे देखने पर पहली बार उसने खुद से बात की और मुझसे पूछने लगी कि क्या वो थोड़ी देर मेरे कमरे मे ठहर सकती है। मैंने हां में सर हिला दिया और खुद कपड़े बदलने चली गई। जब वापस आई तो वो ऐसे ही बैठी थी। इतनी देर में कमरे में भेड़ियों का शोर आने लगा। लगता था अहाते में सब इकट्ठे हो गए हो। धीरे धीरे इनका शोर बढ़ने लगा। मैंने खिड़की से बाहर झांका तो देखा कम से कम 30...40 लंबे तगड़े भेड़िए मुंह ऊपर करें आवाज निकाल रहे थे। भेड़िए यहां आते थे पर इतने बड़े झुंड में कभी नहीं आए मैं बड़बड़ाते हुए जिनी से बोली अब सोना मुश्किल होगा यह इतना शोर कर रहे हैं। जीनी मेरी बात सुनकर उठ खड़ी हुई और खिड़की पर आई, उसके खिड़की पर आते ही भेड़िए और जोर से चिल्लाने लगे। जीनी ने मेरी तरफ देखा और मुझसे पूछने लगी क्या मैं इन्हे चुप कराऊं मैंने तंजिया अंदाज में कहा बिल्कुल शौक से कराओ। वह वहीं खड़ी रही और मैं कॉफी बनाने कामन किचन की तरफ चल दी। थोड़ी देर में जब काफी लेकर वापस आई तो जीनी वहां नहीं थी। अब भेड़िए पहले कि तरह नहीं चिल्ला रहे थे पर फिर भी थोड़ी-थोड़ी देर में उनकी आवाज आ रही थी। मैंने तजस्सुस से नीचे झाका तो मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई। सामने का मंज़र होश उड़ा देने वाला था, नीचे भेड़ियों के झुंड के बीचोंबीच जीनी खड़ी थी। मेरी धड़कन तेज़ी से धड़कने लगी अगर कहीं भेड़ियों ने उस पर हमला कर दिया तो क्या होगा। जीनी मेरी दोस्त थी पर नीचे जाकर उसे बुलाने कि हिम्मत मुझ में नहीं थी, जानते बूझते वो वहां गई क्यों पर मेरी हैरत की इंतेहा तब हुई जब मैंने देखा कि जीनी उन भेड़ियो को सहला रही है और वो उस के आगे सर झुकाए, दुम हिलाते खड़े थे। ऊपर काले आसमान में पूरे आब-ताब से चमकता सुर्खी माईल पीला चांद और नीचे भेड़ियो से घीरी सफेद पोशाक में जीनी बिल्कुल किसी तिलिस्म की तरह था जो आज भी मुझे खौफ में मुब्तिला कर देता है। मैं बुत बनी नीचे देख रही थी कि तभी जीनी ने ऊपर देखा वो उस वक्त इतनी भयानक लग रही थी कि मैं फौरन खिड़की से हट गई। अब अब मुझे उसे कमरे में नहीं बुलाना था इसीलिए मैंने कमरा अंदर से लॉक किया और मोटे पर्दे खिड़की पर गिरा कर बेड पर बैठ गई। आंखों से नींद गायब हो चुकी थी, दिल बुरी तरह घबरा रहा था कुछ समझ में नहीं आ रहा था। इस समय जितनी दुआएं मंत्र मुझे याद थे सब पढ़ रही थी और खुद को कोस रही थी कि मैं पार्टी में क्यों गई। लगभग आधा घंटा बीतने के बाद दरवाजे पर खटखट हुई पर मैंने दरवाजा नहीं खोला चुपचाप बैठी रही। मुझे पता था यह जिनी ही थी मेरा दिल तो बहुत चाह रहा था की खिड़की से झांक कर देखूं पर डर से मेरे पर बंध गए थे मेरी हिम्मत जवाब दे गई थी। जिंदगी में पहली बार ऐसे हालात का सामना किया था दो-तीन बार खटखटाने के बाद खामोशी छा गई। मैं बेड पर ऐसे ही बैठी रही फिर शायद सो गई। सुबह काफी चढ़ गई थी जब मेरी नींद खुली,रात का वाक्या याद आते ही मेरी हालत गैर हो गई। लेकिन चीजों का सामना तो करना ही था उठकर फ्रेश हुई और किचन की तरफ गई वहां जिनी पहले से ही मौजूद थी। वो गर्म जोशी से मेरी तरफ बढ़ी और मुझसे रात का पूछने लगी।इस वक्त मुझे उससे बहुत डर लग रहा था मैं उसे गौर से देखे जा रही थी अब उसके चेहरे पर कल वाली ठंडी सख्ती नहीं थी बल्कि चेहरे पर नरम जिंदा दिल मुस्कुराहट थी। वो बात करते हुए बताने लगी कि वहां पार्टी में उसे जॉर्डन की एक दोस्त मिल गई थी और वह उसके साथ ही वापस आई( वैसे भी जीने को पार्टी वगैरह का ज्यादा शौक नहीं था बस मेरे जोश को देखते हुए उसने वहां जाने की हामी भरी थी )।मुझसे शिकायत करते हुए कहने लगी कि मैं डांस में इतनी मग्न थी कि 1 मिनट उसकी बात सुनने के लिए भी नहीं आई। उसके इस इंकिशाफ से मैं भौंचक्की रह गई। पता नहीं क्यों मुझे उसकी बात पर यकीन नहीं आ रहा था। अगर वो वापस आ गई थी तो फिर मैं किसके साथ वापस हुई थी? कल जो वह इतनी डरावनी हरकतें कर रही थी वह सब क्या था? क्या वह स्वांग था या फिर कुछ और? मैंने जीनी से कुछ नहीं कहा और ना ही चारवी से कोई जिक्र किया। दिल और दिमाग दोनो बहुत परेशान थे। खौफ ऐसा था जो समझाया नही जा सकता। किसी चीज में मेरा मन नहीं लग रहा था। जीनी पर गुस्सा भी आ रहा था कि वो ऐसी हरकत क्यो कर रही थी, क्यो मुझे डरा रही थी। मगर मैं उस से क्या कहूं कैसे अपनी भड़ास निकालू। बहुत सेचने पर मेरे दिमाग मे एक तरकीब आई कि क्यो न मै हास्टल का सी सी टी वी देखूं। सारी बात साफ हो जाएगी कि जीनी मेरे साथ आई थी या नहीं। ये सोचते हुए मैं केयर टेकर के आफिस गई और उस से बहाना बनाया कि रात कैब में मैं अपना कुछ सामान भूल गई हूं, मुझे कैब का नंबर देखना है। उसने मुझसे टाइम पूछ कर फुटेज लगा दिए। कैब का फुटेज देखकर मै दहल उठी, खौफ का ऐसा अहसास पहले कभी न हुआ था। कैब से मैं अकेली ही उतरी थी...मेरे साथ जीनी तो क्या उसकी परछाई भी नहीं थी। फुटेज देख कर मैं किसी तरह कमरे में वापस आई। डर मेरे अंदर समा गया था , तनाव अपने चरम पर था। ऐसी कंपन हुई कि लग रहा था बेहोश न हो जाऊं। कमरे में आते ही मैं बेड पर गिर गई। दोपहर तक पूरा बदन बुखार में जल रहा था। मैं गुनूदगी में चली गई थी , होशो हवास से बेगाना। याद नहीं किसने मुझे दवा दी, कौन मेरे साथ था। तीन दिन के बाद बुखार कुछ कम हुआ मेरे होश ठिकाने आए। सारी चीज़े याद आने लगी। ये एक ऐसी घटना थी जिसका जिक्र मैं किसी से नहीं कर सकती थी। बस अंदर ही अंदर घुट रही थी। ये ते ऊपर वाले का अहसान था कि अब मुझे इंग्लैंड में ज्यादा नहीं रुकना था। मेरा मास्टर्स पूरा हो गया था, मैंने जल्द ही वापसी की राह पकड़ी और भारत आ गई। इंग्लैंड में आखिर के दिन बड़े तनावपूर्ण थे। रातों को मैं सो नहीं पाती थी। रात गए तक मैं टीवी रूम में बैठी रहती। जीनी से तो मैं बहुत ज्यादा दूर रहती थी। अब बस किसी तरह वापस लौटना था। मैं खैर से वापस लौट आई, उस दिन के बाद कुछ भी ऐसा वैसा नहीं हुआ सब ठीक-ठीक चलता रहा, मुझे रह रह कर वो रात याद आती थी फिर थोड़ा डर का दौरा पड़ता मगर खुद ठीक हो जाती। वक्त बीता फिर वही हालौवीन की रात आई, दिन में तो सब सही रहा पर रात होते ही एक बदबू के झोंके से मेरी आंख खुल गई। ये बिल्कुल वही बदबू थी जो उस दिन उस गंदी औरत के पास से आ रही थी। वो गंध मेरे दिमाग से कभी नही निकल सकती थी। थोड़ी देर तक वो गंध आती रही फिर खुद ही बंद हो गई, लेकिन उस के बाद मैं दोबारा सो नहीं पाई। तब से यह हर हालौवीन की रीत बन गई है, इस दिन या तो मुझे सफेद गाउन पहने किसी कि छाया दिखेगी या फिर वही बदबू आएगी। एक दो बार मैंने घर में और दोस्तों को बताने की कोशिश की पर उन्होंने मुझे फेंकूँ का खिताब दे दिया और मेरा मज़ाक बनाया, उसके बाद फिर कभी मैंने किसी को बताने कि हिम्मत नही की। आज इतने सालों बाद मैं यहाँ ये किस्सा लिख रही हूं क्योंकि अब के आने वाला हालौवीन पूरी चांद की रात का है और न जाने इस रात को क्या हो। इस हालौवीन का ख्याल आते ही जिस्म में सर्द लहर दौड़ जाती है, बस ये दुआ है कि आने वाला पूर्ण मासी का हालौवीन खैरियत से गुज़र जाए और मैं उस बुरे साए से महफूज़ रहूं।



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