STORYMIRROR

Sushma Tiwari

Drama Classics Inspirational

4  

Sushma Tiwari

Drama Classics Inspirational

स्वाद

स्वाद

2 mins
172

उस भिक्षुक की हथौड़े की तरह बातों से बड़ी अकधक सी मची हुई थी सेठाइन के दिलों दिमाग में। रह रह कर मस्तिष्क और हृदय के बीच घोर युद्ध मच रहा था। निकम्मेपन के चरम सीमा पर बैठे ये लोग अब मुझे प्रश्न करेंगे ?

" माताजी! तुम चख लिया करो जरा, दाल में नमक रोज ही तेज हो जाता है " 

इन निठल्लों को मैं इस सर्दी में अपने ऐशो आराम छोड़ भोजन कराने दौड़े चली आई और इन्हें स्वाद की पड़ी है। पिछले पांच सालों में एक दिन भी नहीं छोड़ा इन्हें भोजन कराना , घर पर इतने नौकर चाकर है पर इनका भोजन खुद अपने हाथों से बनाती हूं। पुण्य की बात ना होती तो बताती इन्हें।

यही सोच सोच कर अभी सेठाइन को बड़ी कचोट मची हुई थी। गऊशाला से काम निपटा सोफ़े पर जा पसरी। गाये भी रंभा रही थी, आज सब विद्रोह में खड़े हैं क्या, उसे भी स्वाद ना आया घास में ? कुसुम को आवाज लगाई और अपना भोजन लगाने को कह कर पाट पर बैठ गई। पहला निवाला मुँह में डालते ही मुँह कसैला हो गया।

"अरे ओ कुसुमिया! तुझे आज कौन सा बैर है मुझसे ? सारे जहां का काम मैं सम्भाले हुए हूं, तुझसे एक भोजन ना बन रहा.. स्वाद देख! मुँह में ना पड़ता।"

"क्या हुआ माताजी ? माफ़ कर दो, मैंने जो दाल बनाई थी ना छोटे भैया दुकान पर ले गए डब्बे में भर कर, उन्हें पसंद आई थी..खत्म हो गई तो ये आपने बनाई थी ना.. वो ही वाली दाल दे दी मैंने आपको। मैं अभी बनाती हूं दूसरी.. "

" रहने दे " बोल कर सेठाइन ने ग्लास का पानी पूरा गटक कर स्वाद की चाहत को भुलाने की कोशिश की।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama