Pooja Jha

Abstract

4.6  

Pooja Jha

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"स्वाभिमान"

"स्वाभिमान"

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दो पंक्षी और नीला आसमान

चाहत उनकी स्वछंद ऊड़ान;

फिर चलते चलते गगन में

उन्नत सपनो के मग्न में,

प्रथम पंक्षी को भाया स्वामी का जंजीर


मीठी वाणी, फल ओ अंजीर;

दूजा पंक्षी रूककर;

होता थोड़ा शर्मिंदा हैं

बिन पंखोवाला ये, जाने कैसा परिंदा हैं,

बिन आजादी,ये इस पंक्षी जीवन की निंदा हैं,

मेरा स्वाभिमान अभी जिंदा हैं

मेरा स्वाभिमान अभी जिंदा हैं।


मैंने कहा,

थक जाओगे, देखो दूर वितान

तप्त धूप हैं, जलता यह रेगिस्तान।

फिर स्वाभिमान का सिक्का,

 कुछ यूँ वो खनकाता हैं,

दूजा पंक्षी; बस इतना ही कह जाता है,

"मैं ऊड़ता जाऊँगा, ऊड़ता जाऊँगा,

जब तक इन पंखो में जान।


मैं अकेला नही गगन में , 

मेरे संग मेरा

स्वाभिमान"।।

"स्वमान का अर्थ, पंक्षी वो सिखा गया,

 ऊड़ कर जाने कहाँ गया............"

 


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