सूरदास की भक्ति
सूरदास की भक्ति
एक प्रसंग याद आता है। एक बार सूरदास "कृष्ण-नाम" संकीर्तन करते हुए किसी पथ से जा रहे थे। सामने एक सूखा कुआँ था। दृष्टि बाधित सूरदास गिर पड़े। एक ओर मदद के लिए गुहार लगाते थे तो दूसरी ओर "कृष्ण -कृष्ण" पुकारते थे। भगवान से भक्त की यह दशा देखी न गई। दौड़े चले आए और सूर को कुएँ से बाहर निकाला। सूरदास समझ गए, यह और कोई नहीं मेरा कन्हैया है। हाथ कसकर पकड़ लिया। कृष्ण बोले, "हाथ छोड़ो!" "बड़ी कठिनाई से पकड़ में आए हो, ऐसे कैसे छोड़ दूँ?" सूर बोले। कृष्ण मुस्कुराए और हाथ छुड़ाकर भाग गए। इसके बाद जो सूरदास ने कहा उससे सुंदर भला क्या कुछ हो सकता है। ?
सूरदास बोले " हाथ छुड़ाए जात हो, निर्बल जान के मोहे।
हृदय से जब जाओ तो, सबल जानूँ मैं तोहे।।" हाथ तो छुड़ा लोगे माधव, इस हृदय से कैसे जाओगे..?
