मीराबाई
मीराबाई
मीराबाई का जन्म 1498 ई. में हुआ था। बाल्यकाल में एक बारात को देख मीरा ने अपनी माता से पूछा कि “मेरा दूल्हा कौन बनेगा ?” इस पर मीराबाई की माता ने उपहास में ही श्रीकृष्ण की मूर्ति की तरफ़ इशारा करते हुए कह दिया कि “यही तुम्हारे दूल्हा हैं”।
यह बात मीराबाई के बालमन में समा गई और वे कृष्ण की पूजा करने लगी। मीराबाई ने यौवन काल में ही श्री कृष्ण को अपना पति मान लिया था। लेकिन 1516 ई. में मेवाड़ के महाराणा सांगा के ज्येष्ठ पुत्र भोजराज के साथ मीराबाई का विवाह कर दिया गया।
विवाह के एक साल बाद ही खानवा के युद्ध में, मीरा के ससुर राणासांगा व पति भोजराज की मृत्यु हो गई। अपने पति की मृत्यु के बाद मीराबाई श्री कृष्ण की भक्ति में डूब गई। जो उनके देवर विक्रमसिंह विक्रमादित्य राणा को पसंद नहीं आई।
विक्रमसिंह ने मीरा पर अत्याचार किए और सर्प छोड़कर मीरा को मारने का प्रयास किया, लेकिन मीरा के समक्ष वो सर्प फूल माला बन जाते थे। इसके बाद मीराबाई 1539 ई. में मेवाड़ को छोड़कर वृंदावन में रूप गोस्वामी से मिलीं।
वे कुछ समय तक वहां रहकर सन् 1546 ई. के पूर्व ही द्वारिका चली गईं। 1547 ईस्वी में मीराबाई की मृत्यु रणछोड़दास के मंदिर में हुई। माना जाता है कि मीराबाई मंदिर के अंदर गई थी और फिर कभी उस मंदिर से बाहर नहीं आई।
धन्य है इस नारी ,जिसको आज भगवान के परमभक्त के रूप में गिनती की जाती है।
जय श्री राधे कृष्णा ।
