सूक्ष्म कथा :चु...
सूक्ष्म कथा :चु...
१)
जंगल के मीठे झरनों का पानी कड़वा होने लगा था ।
पेड़ और परिंदों में अजब सा डर घर कर रहा था ।
जानवरो में बैचेनी बढ़ती जा रही थी ।वे बात बात पर लड़ने -झगड़ने लगे थे और उनमें अपने पराये का मूर्खतापूर्ण भेदभाव बढ़ता जा रहा था ।
मानो फागुनी नशीली हवा में जहर सा घुल चला था ।
जंगल से लगी बस्ती में चुनावी युद्ध उठान पर था ।।
२)
जंगल के सब चिरैया-चुनूगुन , जंतु-जनावर झापन लेकर जमा हुए थे ।
ज्ञापन का मसौदा कुछ इस तरह से था कि उनकी जंगली संस्कृति बिगड़ती जा रही है । उनके बच्चे लोक-लज्जा और छोटे-बड़ो का की मर्यादा भूलकर अमर्यादित आचरण सीख रहे हैं ।
सच और झूठ का फर्क खत्म हो गया है और जो अपने फायदे में है सिर्फ उसे ही सच बताया जा रहा है ।
ज्ञापन में इस बात की प्रार्थना की गई थी कि ऐसा पड़ोस की बस्ती के टीवी चैनल और सोशल मीडिया में चुनावी दंगल के प्रभाव से हो रहा है ।
ज्ञापन में इस बात की प्रार्थना की गई थी जंगल को बस्ती होने से बचाने के लिए जंगल मे इन टीवी चैनल और सोशल मीडिया की सेवाओं को तत्काल प्रभाव से रोका जाये ।
३)
जंगल मे उन दिनों एक सर्कस जोरो पर था सर्कस के आइटम तो पुराने थे लेकिन पात्र बदले हुए थे ।
शेर-चीता-भेड़िये या तो पिंजरे में बंद रहते है या रिंग मास्टर के इशारे पर नाच रहे थे अब रिंग मास्टर कोई नही जंगल के इसमें भेड़-बकरी-मेमने-खरगोश थे सियारों ने एनाउंसमेंट की ज़िम्मेदारी सम्भाली हुई थी ।
'सर्कस के बाद इनका क्या होगा ?'
मैंने बूढ़ा बंदर से पूछा
" क्या होगा ?..खेल खत्म ..रिंग मास्टर हज़म .."
बूढ़ा बन्दर खिखिया कर हँसा ।।