छोटी बहन

छोटी बहन

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अनिकेत ने आज का असाइनमेंट खत्म कर लम्बी सांस ली और अपनी ईमेल देखने लगा ।

बीच मे एक ईमेल अनुराधा की दिखी , वो थोड़ा ठिठका माथे पर जरा बल पड़ा और याद आते ही कि कल रक्षाबन्धन है बल गायब हो गया ।

वही राखी भेजने की बात होगी ..और क्या ? उसने मन ही मन कहा और मेल खोले बगैर टेबलेट बन्द कर बिस्तर पर चला गया ।

सोनम के बगल में उसने चादर खींची और सोने की कोशिश करने लगा ।

'मेल पढ़ लेनी थी ..आखिर अनुराधा छोटी बहन ही तो है '

मन से आवाज़ आई ।

'हाँ मगर अब ज्यादा ही सयानी बन रही है ' मन ने मन को समझाया ।

अनिकेत ने करवट बदली ।

और साढ़े तीन कमरों का रेल के डिब्बे सा प्रतापगढ़ का किराये का मकान दिखना शुरू हुआ । धीरे धीरे कमरे खुलने शुरू हुए जिनमे

अनुराधा भैया भैया कहते पीछे दौड़ती दिखी ।

भैया तुम्हारे मौजे ...भैया तुम्हारा नाश्ता ..भैया ये शर्ट गन्दी हो गयी उतारो ..भैया ये लो मिठाई और उसने अपनी मुट्ठी आगे खोल दी जिसमे बूंदी का पसीजा हुआ एक लड्डू था जिसे वो दौड़कर सड़क पार माता की चौकी से लेकर आयी थी ।

दिन रात भैया के पीछे पीछे दौड़ते रहने पर माँ चिढ़कर कहती 'इसका नाम अनुराधा रख दिया तो ये भाई ही की अनुगामनी हो गयी '

लेकिन इन तानो का अनुराधा पर उल्टा असर हुआ और उसकी घड़ी भैया से शुरू होकर भैया पर खत्म होती रही ।

एक बार जब पढाई में कम नम्बर आने पर पापा ने डाँटा कि भैया फर्स्ट आता है और तू फिसड्डी ही रह गयी तब पहली और आखरी बार अनुराधा ने रोते हुए कहा था कि उसे तो आपने फादर वाले स्कूल में डाला और मुझे मास्टर जी वाले में ..मै तो फिसड्डी ही रहूंगी ।

पापा तब चुपचाप बाहर चले गए थे ..उन्हें अपने क्लर्क होने का अफसोस हुआ होगा जो कम तनख्वाह में अपने दो बच्चो को कान्वेंट में नही पढ़ा सकता था ।

शायद ...अनिकेत ने फिर करवट बदली ।

कॉलेज खत्म करते ही उसे चेन्नई में जॉब मिल गयी जहां आज वो अपनी कम्पनी का रीजनल मैनेजर है ।

अनुराधा भी प्रायमरी स्कूल में मास्टरनी बन गई और अपने ही साथी मास्टर से शादी करके प्रतापगढ़ में बस गयी ।

पापा रिटायरमेंट के बाद प्रतापगढ़ से सुल्तानपुर चले गए उन्हें वहाँ के अपने भाई-भतीजों , संगी-साथियों और पुरखो की दो चार बीघा पुश्तैनी जमीन ने मोह लिया था ।

रिटायरमेंट की पूरी कमाई लगाकर एक दुमंजिला मकान बनाया और नीचे किरायेदार रखकर ऊपर माँ के साथ अपना बुढापा बिताने लगे ।

अनिकेत के कहने पर एक-दो बार माँ के साथ चेन्नई आये ज़रूर लेकिन 'हवा-पानी देह को नही लगता' कहकर हफ्ते-दो हफ्ते में वापस सुल्तानपुर चले गए ।

अनिकेत और उनका सम्पर्क अब फोन तक था लेकिन अनुराधा ने उनकी जिम्मेदारी उठा रखी थी फोन से गैस का नम्बर लगाने से लेकर महीने महीने बिजली का बिल जमा करने के सब काम उसके जिम्मे थे ।

माँ ने एक्यूट आर्थराइटिस के कारण खाट पकड़ ली थी और पापा फालसिफेरम के झटके के कारण बाहर के काम लायक नही रह गए थे ।अनुराधा जब भी दोनों को अपने साथ प्रतापगढ़ रहने की ज़िद करती तो उनके पास एक ही रटा रटाया जवाब होता 'हमारे कुल में बेटी-दामाद के घर पानी भी नही पीते '

हारकर अनुराधा ने प्रतापगढ़ से सुल्तानपुर अपना ट्रांसफर ले लिया और उनके साथ रहने लगी । पति ने बच्चो की पढ़ाई को लेकर लम्बी झिक झिक की अंत मे समझौता इस बात पर हुआ कि सुल्तानपुर में जल्दी ही कोई व्यवस्था बनाकर वो वापस प्रतापगढ़ ट्रांसफर ले लेगी ।

लेकिन व्यवस्था दिन ब दिन बिगड़ती गयी ।

पहले माँ चल बसी और बाद में पापा भी लगभग अशक्त हो चले ।

फोन पर सब हालचाल मिलता रहता ।

अनिकेत में फिर करवट बदली ।

'पापा को कैसे भी करके साथ में लेकर आना है ...समाज मे हमारी बड़ी थू थू हो रही है'..सोनम नफैसला सुनाते हुए बैग पैक कर रही थी ।

अनिकेत ने कम्पनी से हफ्ते भर की छुट्टी ली जिसमे दो -दो करके चार आने जाने में निकल गए और तीन पापा को राजी करने में ।

लेकिन पापा का रटा रटाया जवाब ' तुम और सोनम सुबह से अपनी कम्पनी में बिजी रहोगे ..मुझे यहीं अनुराधा के साथ ठीक रहेगा '

बातचीत के बीच एक -दो बार अनुराधा भी बोल पड़ी 'भैया यहाँ कम से कम मैं तो हूँ ..वहाँ नौकर कितना देखेंगे ?'

ये बात अनिकेत से ज्यादा सोनम को चुभी और फिर बात बिगड़ गयी ।

रात सोनम ने अनिकेत को कुछ ऐसी बाते बताई जो पहले किसी ने सुनी ना थीं ।

लौटते हुए अनिकेत ने अनुराधा को ताना दिया ' प्रापर्टी चाहिए तो ऐसे भी माँग लेती ..पापा को किडनैप करने की ज़रूरत क्या थी '

अनुराधा सन्न रह गयी ..अवाक ।

उसे सामने भैया नही बैरी खड़ा दिखाई दिया ।

अनिकेत के मुँह से सुने ये अंतिम वाक्य थे ।

आगे सिर्फ सोनम भाभी से फोन पर ज़रूरी बाते हुई जैसे पापा का बाथरूम में गिरकर हड्डी तुड़ा बैठना या लम्बी अनुपस्थिति के कारण अनुराधा की नौकरी का चले जाना '

अनिकेत के फोन कभी कभी चचेरे भाई के पास आते थे और तब अनुराधा को पता चलता था कि भैया भाभी और बच्चा आशीर्वाद लेने आ रहे है क्योंकि बच्चे की जॉब लग गयी है और वो बीबी के साथ टोरेंटो जा रहा है ।

लम्बी सांस लेते हुए अनिकेत ने फिर करवट बदली ।

'कुछ भी हो मेल पढ़ लेनी चाहिए

आखिर है तो छोटी बहन ही '

मन ने कहा ।

और मन ही मन को समझाता इसके पहले ही उसने उठकर अनुराधा की ईमेल पढ़नी शुरू कर दी -

"भैया ..पापा की तबीयत में सुधार नही है वो लगातार गिरती जा रही है ..उन्हें आरोग्य नर्सिंग होम में भर्ती किया है ..घर से चलने के पहले वकील साहब को बुलाकर मकान और नरदा पास की साढ़े चार बीघा जमीन के कागज़ पापा ने आपके नाम कर दिए हैं ..माँ के कुछ गहने जो भाभी के लिए थे ..मेरे पास रखे थे ..उन्हें भाभी की माँ के पास भदौली भिजवा दिया है जो वो भाभी की के पास पहुँचा देने को बोली हैं ।

भाभी को प्रणाम और आरव को प्यार .."

अनिकेत को स्क्रीन आगे धुंधली नज़र रही थी...।


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