गांधारी
गांधारी
'महाभारत' देखकर वे गपशप करने लगी।
'माँ गांधारी आंटी को एक आँख धृतराष्ट्र अंकल को डोनेट कर देनी थी ..नही क्या ?'
पप्पी के इस मासूम सुझाव पर वो तीनों औरतें हँस दी
'मैं होती तो आँख पर पट्टी कभी नही बांधती .. अंधे हसबैंड को मेरी खुली आँखों की ज़रूरत जो होती ...मैं उनकी आँख बनती ' मैनी क्योर करते हुए बहू चहकी ।
सास ने बालों पर कंघी फेरते हुए धीमे से कहा ' उसकी जगह मैं भी होती तो पट्टी ही बाँधती ..सब आँख वालों को देखने के बाद ऐसे अंधे पति को देखकर कुढ़न बर्दाश्त करना मुश्किल होता '
इस बीच दादी सास उठकर दूर जा बैठी ।
'पति की नियति के साथ अपनी नियति जोड़ने का यही उपाय था ..आँख पर पट्टी बाँध लेना ..
घूँट घूँट पानी पीते हुए दादी सास ने दीवार पर टँगे बाँके बिहारी को निहारते हुए कहा ।
एक अन्य भी उस कमरे में मौजूद थी।
जो सबसे ओझल थी ..ये गांधारी खुद थी।
शांति से टहलते हुए सब सुनने के बाद उसने आत्म प्रलाप किया -
" आँख होकर भी हमे अपनी मर्ज़ी से देखने की आज़ादी कहाँ थी ?दृष्टि हमारी थी दृष्टिकोण दूसरों के थे"
उसने शो केस पर रखी गुड़िया उठाते हुए कहा " इसकी भी आँखें हैं लेकिन बोलो क्या ये देख सकती है ? गुड़िया ही तो थी मैं जिन्हें अपनी सुविधा के लिए हमारे राजा पिता ने अंधे को ब्याह दिया और मैं उफ्फ भी ना कर सकी । ..ये झूठ है पट्टी मैने अपनी मर्ज़ी से बाँधी थी ..बाँधी उन सबने मिलकर थी जो नही चाहते थे कि मैं समय के भयानक सच देखूँ और बदलाव चाहने वालों में शामिल हो रहूँ "
गांधारी का आत्म प्रलाप जारी है जबकि वे चारों सोने जा चुकी हैं ।