सुनहरा पल...
सुनहरा पल...
एक सरसराहट सी हुई और एक गुदगुदी ने मुझे अपनी बाँहो में भर लिया, जब मैं उस रास्ते से निकली तो। एक जानामाना सा एहसास हो रहा था, हर नुक्कड़ कुछ याद दिला रहा था मानो बहुत गहरा रिश्ता हो उनसे। काफी बार गुजरी हो उन राहो से। वो सुहाना मौसम, चेहरा सहलाती मंद मंद ठंडी हवा , रोम - रोम आकर्षित कर रही थी और मैं यादों में डूबती सी जा रही थी।
हर एक मोड़ पर अपने बीते कल के निशान खोजती सी आगे बढ़ रही थी। वो घने घने पेड़ सड़क के दोनों किनारे , बिखरे हुए वो पीले फूल मेरी आँखों में बसते जा रहे थे कि अचानक एक हवा के तेज़ झोंके से बहुत सरे पीले फूल पेड़ों से झड़ने लगे जैसे मुझ पर फूलो की बरसात हो रही थी। मेरे कदम रुक ही नहीं पाए और मैं झूम कर, बाँहे फैला कर हवा के साथ नाच रही थी।
इस बार इस नज़ारे को मैं कहीं कैद करना चाहती थी कि अचानक मुझे कोई दिखा, कुछ जाना पहचाना सा, तो मैंने उसे अपना फ़ोन देते हुए मुझे उस नज़ारे के साथ एक विडिओ में कैद करने को कहा। मैं इस पल को खोना नहीं चाहती थी। मेरे कदम तो रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। मैं बहुत खुश थी मानो किसी और दुनिया में हो।
फिर आगे बढ़ती हूँ घर की तरफ तो लगा जैसे बचपन लौट आया हो। लग रहा था जैसे वक़्त खुद को दोराहा रहा हो। ५ रुपए की ऑटो की टिकट लेकर घर जा रही थी, पर ये क्या घर तो पीछे रह गया। ऑटो वाला रफ़्तार से ऑटो आगे बढ़ा ले गया, तो मैं जोर से चीखी, भैया! घर तो पीछे रह गया। ऑटो रुकता है और मैं घर की तरफ ,जो की कुछ कदम दूर पीछे छूट गया था, बढ़ रही थी।
एक सुकून का एहसास हो रहा था। बेहद ख़ुशी का एहसास था ,सोच रही थी कि घर जाकर मम्मी को सब बताऊँगी और उनकी बाहों में सिमट जाऊँगी जैसा हमेशा होता है। कहीं से आती हूँ तो मम्मी मुझे एक प्यारी सी झप्पी देती हैं और मैं सब भूल जाती हूँ। सारी चिंताओं से मुक्त होकर उनके प्यार भरे एहसास में खो जाती हूँ। उस पल के करीब ही थी , पर ये क्या, एक अनचाही सी चेतना ने मुझे घेर लिया। मैं अपना कोमल बिस्तर महसूस कर पा रही थी। आँखें खुली तो मेरी छोटी बच्ची मेरे पास सो रही थी। मातृ सुख खोज रही थी, बचपन जीना चाह रही थी, बीता कल देख रही थी, पर आने वाला कल मेरे पास मासूमियत भरी नींद ले रहा था।
