स्पर्श
स्पर्श
आज एक पुराना दोस्त मिल गया। और पुराने दोस्त के संग कि हुई चर्चा का लुफ्त ही कुछ और होता है !
“वो नशा ही कुछ और है जो तेरे संग चढ़ा , बाकी पैमाने तो कई खाली कर चुके !”
हॉं तो हम ये कहे रहे थे कि चर्चा का दौर शुरू हुआ। "हर इंसान की फितरत होती है कि वह शब्द से शुरू कर, रिश्ते को स्वर और स्पर्श तक ले जाना चाहता है।"
उसने अपना मंतव्य प्रस्तुत किया।
"तो क्या इंसान सिर्फ रूह से महसूस नहीं कर सकता ? क्या उसे शब्दों की स्वर की स्पर्श कि मदद लेना जरुरी होता है ?" कहीं से यह प्रश्न भी उठा।
"सब असर पर निर्भर करता है।" मैंने डरते डरते कहा। डरते हुए ? हाँ भाई मेरे सामने बड़े बड़े लेखक बैठे थे, मुझे डरना ही था !
"वह कैसे ? ज़रा हमे भी बतलाओ !" हमारी मूर्खता पर दया दिखाते हुए उन्होंने पूछ ही लिया।
"शब्द से गहरा असर होता है स्वर का ...और स्वर से गहरा स्पर्श का। इसीलिए शायद ये इंसानी रिश्तों की फितरत है कि वह बातों से आगे बढ़कर छूने तक जाते हैं।"
"अच्छा हो या बुरा। असर तो होता ही है। मौन ज्यादा असरदार होता है। कभी लिखे हुए शब्द तो कहीं बोले हुए शब्द और जहाँ दोनों कि गुंजाइश न हो, वहाँ सिर्फ स्पर्श का असर होता है।
कई मूकबधिर होते हैं जो सिर्फ स्पर्श या शब्द को पढ़ सके।
स्पर्श सबसे ज्यादा असरदार होता है क्यूँकि वह सीधा आत्मा तक पहुँचता है। उसे दिमाग से गुज़रना नहीं पड़ता।
सब असर पर निर्भर करता है। हमें क्रोध दिखाना हो या प्यार, घृणा या प्रशंसा, सब के लिए अलग अलग माप दंड होते हैं। असर कि गहराई चाहते हुए हम नाप तौल के शब्द, स्वर या स्पर्श का उपयोग करते हैं।"
मैंने अपने शब्दों के तीर संभल कर छोड़े। तभी उसने आके मेरे कंधे पर अपना हाथ रख दिया मानों वह स्पर्श से ही मेरी बात के साथ सहमति दर्शा रहा था !
दोस्त, दुनिया मैं सबसे प्यारा स्पर्श वही होता है जो हमारे बचपन में सर पर, युवा अवस्था में कंधे पर, और बुढ़ापे मैं दिल पर होता है ! आखिर ज़िन्दगी है भी क्या ? संगम इस मौन, शब्द, स्वर और स्पर्श का !