सपनों का मोल
सपनों का मोल
सुंदर मेला सजा था। हर तरफ रंग बिरंगी और सजी हुई दुकानें। हसते मुस्कुराते चेहरे। साथ ही सर पर चढ़े सूरज से आँखें थोड़ी चौंधिया रही थी।
“क्या रे गुड्डू! आज तो तू बहुत भारी लग रहा है बाबू!” कंधे को थोड़ा सा कसमसाते हुए बाबूजी ने लाड़ से कहा। “अरे! अब मैं बिग ब्वाय हो गया हूँ न बाबा!” बाबूजी के कंधे पर बैठ मेला टहल रहे गुड्डू ने उत्साह और आत्मविश्वास भरी आवाज़ में कहा! “हाँ बड़ा तो हो गया है मेरा बचुआ। तनी और बड़ा हो कर पढ़ लिख जाये तो इंजीनियर बाबू बनके नौकरी करने लगेगा। फिर यहीं पटना में एक ठू मकान ले लेंगे और बाप पूत आराम से रहेंगे। और फिर तेरी शादी ,सुंदर सी एक ठो पतोह और फिर कुछ दिन में पोता पोती से भरा हुआ आँगन। मुझ बूढ़े को भला और क्या चाहिए होगा। और बस फिर...” बाबू जी सपने बुनते हुए बोले ही जा रहे थे की, ऊपर से चंचल गुड्डू ने टोका “न बाबू जी। न तो हमें इंजीनियर बनना है और न यहाँ पटना में रहना है। हम तो आप देखना एक दिन जहाज़ पकड़ के बड़े शहर को जाएँगे।” चमकती आँखों वाला गुड्डू हाथों को जहाज़ की मुद्रा में लहराते हुए बोला। “कहते हैं उस बड़े शहर में सबके सपने पूरे होते हैं बाबा। खूब नाम और पैसा मिलता है वहाँ। और तुम्हारा भी तो मान बढ़ेगा। है न बाबा।” नन्ही आँखों में हज़ारों सपने लिए गुड्डू को अपना भविष्य मानो सामने ही नज़र आ रहा हो।
बाबूजी ने चिंता भरी आवाज़ में उत्तर दिया “न बबुआ न! हमें न चाहिए मान सम्मान। बस तू नज़र के सामने रहे बुढौती में यही बहुत है हमारे लिए तो। वैसे भी और है ही कौन हमारा इस संसार में बाबू। भैय्या जिएँ कुसल से काम। वैसे भी महानगर मायानगर होते हैं समझा बेटा। ओह क्या कर रहा है रे गुड्डूवा? आज बहुत ही ज़्यादा मुश्किल लग रहा तुझे उठाना” बाबू जी ने उल्टे हाथ से अंगौछे से अपने चेहरे का पसीना पोछा, कंधा एक बार दोबारा से ठीक किया फिर समझाते हुए बोलना जारी रखा “तू सुन रहा है न गुड्डू बाबू! हम जैसे सीधे साधे लोग का वहाँ महानगर में कोई गुजारा नहीं है बेटा। सुना है सब गला काटने को तैयार रहते हैं वहाँ। बहुत ही निष्ठुर शहर है वो।ऊपर से तू तो वैसे भी इतना सीधा साधा..”। “ओह बाबा! बाबा! वो देखो बायोस्कोप वाला!” पिता की बातों को बीच में ही काटते हुए गुड्डू ने सहसा कंधे से छलांग लगायी और बड़े बड़े फ़िल्मी सितारों के चित्र लगे बायोस्कोप वाले की तरफ दौड़ गया।अचानक लगे झटके से बाबूजी के पाँव एकदम से डगमगा गए। उन्होंने एक हाथ गुड्डू को रोकने के लिए बढ़ाया और घिग्घी बंधी आवाज़ में चिल्लाए “रुक गुड्डू, रुक बेटा! मत जा मत जा”! तभी साथ चल रहे युवक ने लड़खड़ाते हुए बेसुध बाबूजी को पकड़ा और उनके कंधे से गुड्डू की गिरती हुई अर्थी को सम्भाला। पीछे से आवाज़ आ रही थी “राम नाम सत्य है। राम नाम सत्य है। युवा अभिनेता शशांक सिंह गुड्डू अमर रहे”