Upendra Pratap Singh

Drama

5.0  

Upendra Pratap Singh

Drama

अम्मा का बक्सा

अम्मा का बक्सा

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दोनों बेटे और बहुएं अम्मा के कमरे में थे।अम्मा को गुजरे १४ दिन हो चुके थे। कमरे को खाली कर किराएदार रखने की योजना थी। बाकी सामान देखने से पहले सबकी उत्सुकता उस लोहे के बक्से को खोलने में थी जो अम्मा की खाट के नीचे रहता था। अम्मा ने इसी खाट पर आखिरी सांस ली थी। बहुत पुराना बक्सा था जिस पर बड़ा सा ताला लगा कर रखती थीं अम्मा।

ये बक्सा उन्हें शादी में मायके से मिला था।कभी किसी को छूने भी न देती थीं। कोई पूछे कि अम्मा है क्या इसमें जो इतना सम्भाल कर रखती हो, तो कहती थीं जीवन भर की पूँजी।

गुजरने से कुछ दिन पहले से रोज कमरा बंद करके बक्सा खोलतीं, जाने क्या करती फिर बंद कर ताला डाल देतीं।शायद उन्हें अंत समय की आहट हो गयी थी।बड़ा बेटा हथौड़ी से ताला तोड़ने की कोशिश करने लगा।

बहू बोली "हो सकता है अम्मा ने अपने कुछ जेवर रखे हों"। छोटा बेटा बोला "नहीं भाभी जेवर तो हमारी पढ़ाई के लिए बेच दिए थे अम्मा ने, पर हाँ कुछ कीमती ही होगा इसमें जो अम्मा इतना सम्भाल कर रखे थीं।"

तभी खट्ट की आवाज़ से ताला टूटा और बक्सा खुला। देखा गया तो बक्से में अम्मा की वो साड़ी थी जिसे पहन वो विदा हो कर इस घर आयी थीं। एक तस्वीर जो उन्होंने बाबूजी के साथ मेले में स्कूटर पर बैठ कर खिचवाई थी। 

दोनों बेटों के बचपन के कपड़े, झबले और लंगोटियां, छोटे छोटे जूते। काजल की डिब्बियां, कुछ खिलौने, कार और रेल गाड़ी। बेटों के प्राइमरी स्कूल की कॉपियां जिन पर किसी ने उन्हें हाथ पकड़ कर अक्षर लिखवाये थे। एक स्लेट जिस पर एक आम बना था और कुछ रंगीन चाक। सब निकालने के बाद बाबू जी के हाथ का लिखा एक पन्ना था जिस पर लिखा था "पूत सपूत तो का धन संचय, पूत कपूत तो का धन संचय।"


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