सफर
सफर
ज़िन्दगी के 25 बरस देखने के बाद भी मैं कभी ट्रेन में नही बैठा था, वो मेरी जिंदगी का पहला ट्रेन का सफर था सिर्फ आधे घंटे का और शायद सबसे यादगार ।
पहली बार ट्रेन में सफर कर रहा था तो दिल मे एक अजीब तरह की हिचकिचाहट थी पर जिसके साथ था वो इन सब की मास्टर थी... मैने उसे बताया कि मैंने आज से पहले कभी ट्रेन में सफर नही किया तो वो पहले थोड़ा मुस्कुराई फिर बोली कोई दिक्कत नही मैं हूं ना।
हां मैं बताना भूल गया हम दोनों जॉब करते है एक साथ , हम दोनों में बहुत अच्छी समझ है , वो मुझे अपना बहुत अच्छा दोस्त मानती है और मैं उसे दोस्त से कहीं ज्यादा पर बस कभी कहा नही ओर ना कभी उसने पूछा ... पर है अंडरस्टैंडिंग कमाल की हम दोनों में...!
ट्रेन अपने टाइम पर आने वाली थी तो हम दोनों एक साथ निकले और भगते हुए हमने ट्रेन पकड़ ही ली , पहले वो चढ़ी थी फिर उसने अपना हाथ देकर मुझे अंदर किया, लोकल ट्रेन थी भीड़ भाड़ भी बोहत थी पर उसे जगह बनानी बोहत अच्छी तरह आती है। उसने हम दोनों के लिए जगह बनाई और हम वहा खड़े हो गए गेट के पास एक कोने में क्योंकि सफर सिर्फ कुछ देर का ही था..।
ट्रेन चली और उसने अपनी रफ्तार पकड़ ली और इस बीच मैं सिर्फ उसे ही देखे जा रहा था कि कितने सरलता से उसने इतना सब कुछ कर लिया जो शायद मैं नही कर पाता...।
ट्रेन अपनी स्पीड से चली जा रही थी और वो .... हां, उसे बातें करने की बहुत आदत है ... मैं उसे देखे जा रहा था वो बोले जा रही थी ...
उसके होंठ ऐसे चल रहे थे जैसे कोई मक्खन पे छुरी चला रहा हो, उसके बाल हवा में उसके चेहरे हो छूते हुए उड़े जा रहे थे, उसका दुपट्टा उसको छोड़ कर निकलना चाह रहा था जिसे वो बार बार संभालने की कोशिश कर रही थी, उसकी आंखें सिर्फ अपनी बातों पे मशगूल थी, ओर इन सब के साथ साथ ट्रेन भी बढ़ती जा रही थी ओर शायद हमारा स्टेशन भी आने वाला था, पर मेरा ध्यान अभी भी उसी पे था....
पर शायद ट्रेन को यहीं रुकना था और हमारे सफर को भी ...!
दोनों उतरे स्टेशन से बाहर निकले दोनों ने एक दूसरे को बाय कहा और अपने अपने रास्ते पे चल दिये.......!!!

