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Madhu Vashishta

Inspirational

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Madhu Vashishta

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सफेद रंग (सरलता और शांति)

सफेद रंग (सरलता और शांति)

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अभी एक महीना पहले ही मां को वेंटिलेटर पर शिफ्ट कर दिया गया था उनके मल्टीपल औरगैन्स ने काम करना बंद कर दिया था। डॉक्टरों की बहुत मेहनत के बाद वह घर तो आ गई थी लेकिन अभी भी अपना काम करने में असमर्थ थी। उनके लिए एक फुल टाइम अटेंडेंट लगा दी गई थी।क्योंकि आजकल ऑनलाइन क्लासेस चल रही थी और छठी में पढ़ने वाला बंटी जो कि अपनी दादी के बिना में रहने का सोच भी नहीं सकता था अक्सर अपनी दादी के कमरे में ही बैठा रहता था। खाली समय में वह दादी को रामायण भागवत इत्यादि सुनाता रहता था।


मैं एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम करता था इसलिए सुबह निकलता शाम को ही घर आता था। मेरी पत्नी विनीता का नजदीक ही अपना अपना बुटीक था और वह भी सुबह निकल कर शाम को ही घर आती थी। बड़ी बेटी शिखा जो की 12वीं क्लास में थी अक्सर अपनी पढ़ाई में ही व्यस्त रहती थी। बंटी अपनी दादी का सबसे लाडला पोता था वह अक्सर अपनी ऑनलाइन पढ़ाई भी उनकी कमरे में ही बैठकर करता रहता था। जब से वह हॉस्पिटल से वापस आई है तब से उनकी कमजोरी बढ़ती ही जा रही थी कभी बीपी लो हो जाता, कभी अस्थमा का अटैक आ जाता । हालांकि अटेंडेंट ऑक्सीमीटर से हर वकत चेक करती रहती थी और मैं भी दिन में दो या तीन बार अपनी मां का हाल अटैंडेंट से पूछ लेता था। हम सब मां के लिए बहुत फिक्रमंद थे। वैसे सच पूछो तो मां से भी ज्यादा फिकरमंद हम बंटी के लिए हो जाते थे कि यदि मां को कुछ हो गया तो हम बंटी को कैसे संभालेंगे।


दो-तीन दिन से मां का खाना भी बंद हो गया था। हालांकि एक महीना पहले ही मां को हॉस्पिटल में ब्लड भी चढ़ा था लेकिन रिपोर्ट के अनुसार उन का हिमोग्लोबिन भी कम हो रहा था और एनीमिया भी बढ़ रहा था। आज जब मैं ऑफिस में था तभी मां की अटेंडेंट का फोन आया की मां की तबीयत खराब है। आज सुबह से मां किसी से बोली भी नहीं थी। मैंने घर जाकर जल्दी से डॉक्टर को बुलवाया और डॉक्टर के जवाब से मैं संतुष्ट न होने के कारण अपनी माता जी को फिर से अस्पताल ले जाने की तैयारी करने लगा ।


तभी बंटी ने बोला "पापा दादी को पिछली बार भी अस्पताल जाकर अच्छा नहीं लगा। वहां हम सब से दूर दादी उन लोगों के बीच थी जिन्हें वह बिल्कुल नहीं जानती। डॉक्टर साहब ने कहा है ना कि अब सिर्फ इनकी सेवा करने का समय है कहीं कोई फायदा नहीं होगा। इसलिए आप जिद ना करो और दादी को शांति से भगवान के पास जाने दो। मैं दादी को धार्मिक किताबें पढ़कर सुनाता हूं तो उससे मुझे पता पड़ा है कि दादी के सारे दुख दूर हो जाएंगे और वह फिर से बच्चा बनकर इस दुनिया में आ जाएगी। दादी को हम सबके साथ की जरूरत है अगर आप कुछ करना ही चाहते हो तो इन्हें अस्पताल मत लेकर जाओ जब तक दादी इस दुनिया में है हम सब दादी के पास बैठे रहेंगे। मैं उन्हें ऐसे ही उनकी पसंद वाली धार्मिक किताबें पढ़कर सुनाता रहूंगा। हम उन्हें दवाइयां देंगे और भगवान से उनकी खुशी की प्रार्थना करेंगे। उन्हें अस्पताल भेजकर अस्पताल के बाहर मत बैठो अभी तो उनका हाथ पकड़कर उनके साथ बैठो।"


मैं अपने बंटी को ही देखकर एकदम हैरान था। बंटी ने मां का हाथ पकड़ रखा था और उसके चेहरे पर असीम शांति थी। मां ने भी हल्की सी आंखें खोलीं थी शायद वह भी लेटी लेटी बंटी की बात का ही समर्थन कर रही थी। इसका मतलब उन्हें अपने आसपास होने वाली हर घटनाओं का समझ आ रही थी।


मैं तो बंटी के लिए बहुत डर रहा था लेकिन मां को धार्मिक पुस्तकों का ज्ञान देते देते आज बंटी भी मुझे बहुत ज्ञानी लग रहा था। आज मुझे महसूस हो रहा था कि बच्चों को केवल पढ़ाई की पुस्तकों का ज्ञान नहीं अपितु धार्मिक पुस्तकों और नैतिक शिक्षा का ज्ञान देना भी बहुत जरूरी है।


पाठकगण, मैं मां को लेकर दोबारा अस्पताल नहीं गया बल्कि अपने दफ्तर से छुट्टी लेकर 5 दिन तक मैं और विनीता पूरे समय मां के साथ ही रहे। आपका क्या ख्याल है क्या मुझे मां को दुबारा अस्पताल ले जाना चाहिए था?



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