सोच

सोच

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अभी ही कॉलेज से आयी थी अनुपमा, बहुत परेशां थी, पता नहीं क्यों ? कुछ सोच रही थी इतने में घर वालों ने कुछ खाने को बुलाया पर वो नहीं गयी। उसने सोचा थोड़ा पढ़ लूँ, उसने पढ़ने का प्रयास किया पर ध्यान नहीं लग रहा था फिर से वो कुछ सोचने लगी। इस तरह वो सोचते ही जा रही थी, उसे कॉलेज का बहुत कार्य लिखना था जिसे वो लिखे बिना ही बैठी थी।

समय निकलता ही जा रहा था वो भी ये बात जानती थी की उसे कालेज का कार्य लिखकर बाद में सोचना चाहिए पर वो लिख ही नहीं पा रही थी।

इतने में रमा उसके घर आयी और अनुपमा से बात करने लगी। रमा कॉलेज का लिखित कार्य अनुपमा के साथ करना चाहती थी और उसने भी अपने पुस्तक लाये थे। इस तरह रमा के कारण अनुपमा को भी कॉलेज का लिखित कार्य उसके साथ करना पड़ा।

रमा लिखती रहती और बातें भी करती रहती थी अनुपमा का मन इससे थोड़ा बदलने लगा वो अपनी सोच से जिससे वो परेशा थी बहार निकलने का प्रयास करने लगी और वो भी रमा के साथ थोड़ी बातें करने लगी। दोनों ने कॉलेज के बारें में बहुत सारी बातें की और बातें करते हुवे दोनों लिखते ही गए। अब तो अनुपमा का ध्यान भी लिखने में लगने लगा। इस तरह पता नहीं कब लेकिन दोनों का कॉलेज का लिखित कार्य पुरा हो गया।

अब अनुपमा के पास सोचने के लिए बहुत समय था,लेकिन इस बार वो अपनी सोच के बारे में रमा के साथ बात करने बैठ गयी थी। अनुपमा जो भी बोलती उसे रमा सुनने लगी। अनुपमा को अब थोड़ा अच्छा लगने लगा था क्योंकि उसकी बातें सुनाने के लिए रमा जो थी।


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