Kameshwari Karri

Inspirational

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Kameshwari Karri

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संयुक्त परिवार (कुछ खट्टे मीठे अनुभव)

संयुक्त परिवार (कुछ खट्टे मीठे अनुभव)

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रत्ना अपने माता-पिता की छह संतानों में सबसे छोटी बेटी थी । उसने घर में रहकर ही डिग्री पूरी की । वहाँ एक छोटे से गाँव में रहती थी पर आज़ाद ख़्यालों की थी । उसने प्रतियोगी परीक्षाओं में हिस्सा लेकर जनरल इंश्योरेंस में नौकरी पा ली । अब तो वह कमा भी रही थी इसलिए माता-पिता ने उसके सामने शादी का प्रस्ताव रखा । उसने अपने माता-पिता के सामने शर्त रखी कि उसे संयुक्त परिवार नहीं चाहिए । उसने कहा होने वाले सास ससुर के बहुत सारे बच्चे न हों सिर्फ़ एक बेटा और एक बेटी बस छोटा परिवार सुखी परिवार जैसे हो । माता-पिता ने समझाने की कोशिश की कि हमारे घर में भी तो बहुत सारे लोग होते हैं पर वह नहीं मानी । माँ ने पिताजी से कहा कि चिंता मत कीजिए ईश्वर हैं न । उन्होंने रिश्ते देखना शुरू किया परंतु कहते हैं न ईश्वर की कृपा के बिना हवा भी नहीं चलती है । जो भी हमारी क़िस्मत में हो लिए वही हमें मिलता है । रत्ना के माता-पिता ने उसके लिए इतने रिश्ते ढूँढे पर उसकी शर्त के मुताबिक़ वाला रिश्ता नहीं मिला । जो भी रिश्ते आते थे सब संयुक्त परिवार के ही थे । अंत में एक रिश्ता आया जिसमें लड़का बहुत अच्छा और अच्छी नौकरी करने वाला था । बहुत ही पैसे वाले थे उनका बहुत बड़ा प्रिंटिंग प्रेस था । घर महल के समान बहुत बड़ा था । रत्ना ने हाँ कह दिया । रत्ना और भुवन की शादी धूमधाम से हो गई । रत्ना अपने ससुराल पहुँची इतने सारे लोग थे घर में कि उसे ऐसे लगा जैसे वह घर में नहीं मेले में आ गई है । वैसे भी रत्ना नौकरी करती थी । इसलिए सुबह अपने पति के साथ नौ बजे घर से निकल जाती थी । उसे शाम को आते आते देर हो जाती थी फिर भी उसे सबके साथ मिलकर रहना अच्छा नहीं लग रहा था । एकबार रत्ना अपने पति से अलग जाने की बात कर रही थी कि बाहर से सास ने सुन लिया और उसने भुवन को अलग जाकर रहने के लिए कहा । भुवन भी रोज की चिकचिक से तंग आ गया था इसलिए झट से उसने अपना ट्रांसफ़र हैदराबाद करा लिया साथ ही रत्ना के ट्रांसफ़र के लिए भी मदद की थी । दोनों ने अपने ऑफिस के नज़दीक ही घर किराए पर लेकर अपनी नई गृहस्थी की शुरुआत की थी । 

उनके पड़ोस में रागिनी और परिवार रहते थे । रागिनी को देख कर रत्ना को उसका ससुराल याद आ गया ।भरापूरा परिवार था । आओ जाओ घर था हमेशा घर में मेला लगा रहता था । रागिनी हमेशा ख़ुश रहती थी । रत्ना ने कई बार रागिनी को समझाया कि मेरी बात सुनो और घर से बाहर रहो । मुझे देखो मेरा ससुराल भी मेले के समान ही था मैं तो एक साल से ज़्यादा वहाँ नहीं टिक सकी । रागिनी सुनकर हँस देती थी । सब लोगों का ख़याल रखती थी । रत्ना को वह बिल्कुल पसंद नहीं आती थी । इसलिए जहाँ तक हो सके उससे बात नहीं करती थी । रत्ना और भुवन ने एक अच्छा सा तीन कमरों का फ़्लैट ख़रीदा और वहाँ से शिफ़्ट हो गए । उनके दो लड़के भी हो गए थे । रत्ना के भी दो बच्चे थे एक लड़का और एक लड़की दोनों घर के पास के ही स्कूल में पढ़ते थे । रत्ना के बच्चे हैदराबाद के सबसे बड़े और प्रसिद्ध स्कूल में पढ़ते थे । 

रत्ना का अपने परिवार से कोई नाता नहीं था कभी किसी फ़ंक्शन में या कहीं मिले तो हेलो हाय में ही उसका रिश्ता था । उसने बहुत पैसे जमा कर लिए बच्चों को आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका पढ़ने भेजा था । दोनों नौकरी करते थे इसलिए ज़मीन जायदाद ख़रीद कर रख लिया था । समय किसी के लिए नहीं रुकता है । रत्ना और भुवन भी रिटायर हो गए थे । बच्चों ने उन्हें अपने पास बुलाया तो दोनों वहाँ पहुँच गए । कुछ दिन वहाँ रहे पूरा अमेरिका देखा । इसी बीच बच्चों के पसंद की लड़कियों से उनका विवाह कराया । 

अब बच्चे भी वहीं सेटिल हो गए थे । इसलिए दोनों वापस इंडिया आ गए । 

या । 

। कल तक की भागदौड़ की ज़िंदगी से पीछा छूटा आराम की ज़िंदगी बिता रहे थे । हाँ न इनके घर कोई आते न ये लोग किसी के घर जाते थे । भारत के सभी प्रसिद्ध स्थलों को देखकर आ गए थे । लग्ज़री लाइफ़ गुज़ार रहे थे । कभी-कभी सिर्फ़ दोनों ही रहते थे तो समय नहीं कटता था । पिक्चर देखना ,वाकिंग करना सबके बाद भी बहुत समय बच जाता था । 

उस शनिवार था सुबह सुबह भुवन ने कहा चलो चिलकूर बालाजी मंदिर चलते हैं । वह शहर के बाहर था थोड़ा घूम फिरकर बाहर खाना खाने का प्लान बनाया और जल्दी उठकर नहा धोकर निकल गए । 

वहाँ पहुँच कर एक जगह बैठ गए और मंदिर की परिक्रमा करने वाले भक्तों को देखने लगे । उस मंदिर की मान्यता है कि आप मंदिर में दर्शन करके ग्यारह बार परिक्रमा करके मन्नत माँगे और जब आपकी मन्नत पूरी हो जाती है तो एक सौ आठ बार परिक्रमा करें । साल के तीन सौ पैंसठ दिन वहाँ लोगों को परिक्रमा करते हुए देखा जा सकता है । कोई मन्नत माँगता है तो कोई मन्नत पूरी होने पर धन्यवाद करता है पर आप चाहें धूप बारिश ठंड सभी मौसमों में लोगों की भीड़ देख सकते हैं । उस मंदिर में बालाजी की मूर्ति है जिन्हें वीसा बालाजी भी कहते हैं क्योंकि अमेरिका जाने से पहले बच्चे मन्नत माँगते हैं वीसा के लिए और पूरी हो भी जाती है । रत्ना ख़्यालों में खोई हुई थी कि किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा देखा तो रागिनी थी । रत्ना को तो वह पसंद नहीं थी पर उसे देखा तो वह पहले के समान ही खुश दिखाई दे रही थी । दोनों ने एक दूसरे को हेलो हाय किया । रागिनी ने ही कहा इतने सालों बाद हम मिल रहे हैं । हमारे घर एक दिन आओ न लंच के लिए । फिर उसने पता बताया और फ़ोन नंबर भी दिया था । एक दूसरे बॉय कहकर अपने अपने घर चले गए । ऐसे ही एक दिन भुवन ने कहा अभी हम ख़ाली बैठे हैं न क्यों न हम रागिनी जी के घर चलते हैं । रत्ना ने कहा ठीक है चलिए क्योंकि उसे भी जानना था कि पूरे परिवार को पालते हुए वे कहाँ पहुँचे हैं बच्चे क्या कर रहे हैं पूरी जानकारी तभी मिलेगी जब वहाँ जाएँगे । 

भुवन कुछ मिठाई ख़रीद कर ले आया । रत्ना ने फ़ोन करके रागिनी को बता दिया कि वे आ रहे हैं । उन्हें कोई दिक़्क़त नहीं हुई घर आराम से मिल गया । बहुत ही सुंदर सोसायटी थी । रत्ना को विश्वास ही नहीं हो रहा था । खैर डोर बेल बजाई तो रागिनी ने ही दरवाज़ा खोला उसके हाथ में सुंदर सा एक छोटा बच्चा था । घर रत्ना के घर से भी बड़ा और एकदम साफ सुथरा था । रागिनी ने बताया कि यह मेरा पोता है बेटा बहू यहीं रहते हैं । रत्ना को यह भी बताया कि मेरे बेटे ने सिर्फ़ डिग्री पास किया था पर उसकी अच्छी नौकरी लग गई पर मेरे देवर ने कहा भाभी अभी यह बहुत छोटा है उसे और पढ़ना चाहिए कहते हुए रिजाइन करवाया और अपने साथ ले जाकर एम बी ए कराया था । अब वह बहुत बड़ी कंपनी में डायरेक्टर है और बहू कॉलेज में लेक्चरर है । बेटी को भी मेरी ननंद अपने साथ ले गई उसने वहाँ मास्टर्स किया और बैंक की परीक्षा लिखा उसने यहीं के एक ब्रांच में ब्रांच मैनेजर है उसकी शादी उसी के साथ मिलकर काम करने वाले विजय से से हो गई है । इसी शहर में रहती है । 

अपने बारे में भी रत्ना ने बताया था । फिर कहा क्या अब क्या तेरे बच्चों ने बेबी सिटिंग की ज़िम्मेदारी तुझे सौंप दी है । रागिनी ने कहा नहीं रत्ना मैं जितना कर सकती हूँ उतना ही करती हूँ । बेबी को देखने के लिए नैनी है खाना पकाने के लिए रसोइया है । मुझे कुछ नहीं करना पड़ता है । रत्ना ने कहा घर बहुत सुंदर और अच्छी लोकालटी में लिया है तुम लोगों ने । रागिनी बोलने लगी असल में मेरे पति जब रिटायर हो रहे थे । हमने एक छोटा सा फ़्लैट देखा तभी तुम्हें मालूम है न हमारे घर में मेरे चाची सास का पोता धृव पढ़ता था । उसने इसे ख़रीदा था अचानक उसे अमेरिका जाना पडा तो उसने हम जितने पैसों में फ़्लैट ख़रीदने की सोच रहे थे उतने पैसों में ही हमें बेचकर चला गया था । इसीलिए हमें यह फ़्लैट सस्ते में मिल गया है । 

भुवन और रत्ना लंच के बाद उन्हें भी अपने घर आने का निमंत्रण देकर कार में बैठ गए । रत्ना ने देखा भुवन बहुत खुश नज़र आ रहे थे । उन्हें लोगों का साथ अच्छा लगता था । इनके घर पर तो शायद कौआ भी नहीं बैठता होगा । रत्ना भी सोचने पर मजबूर हो गई थी कि मेरे कारण ही हम सब से दूर हो गए हैं । हमारे पास पैसे बहुत हैं पर लोग नहीं हैं । उसे याद आया पिछले साल जब वह बाथरूम में गिर गई थी और उसका पैर टूट गया था । छह महीने बिस्तर पर पड़ी थी कोई भी हाल-चाल जानने भी नहीं आया था । एक खाना बनाने वाली बाई को और एक हेल्पर को रखकर दिन गुज़ारा था । 

सही ही है कि संयुक्त परिवार के फ़ायदे और नुक़सान दोनों ही हुआ करते हैं । मालूम नहीं बचपन से इतने लोगों के बीच रहकर अकेले रहने की इच्छा होती थी उसी का नतीजा है कि आज हम लोगों से बात करने के लिए तरस जाते हैं । मेरा जैसा व्यवहार है उसे देख कर ही बच्चे भी वैसे ही हो गए हैं । यह सोचते हुए रत्ना के आँखों में आँसू आ गए और उसे किसी की कही हुई बात याद आती है कि “अब पछताए क्या होत है जब चिड़िया चुग गई खेत “अब तो रत्ना ने सोच लिया कि उसने जो भी खोया है उसे पाना ही है । 



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