संयोग
संयोग
तन्नू को संगीत से बहुत लगाव था। वह खुद गीत लिखती और उसे सुर, लय में सजाती थी। जब वह आठ वर्ष की थी और पाँचवीं कक्षा में पढ़ रही थी तभी उसने अपनी माँ की याद में एक गीत लिखा और उसकी धुन भी उसने स्वयं बनाई।उसका गीत इतना असरदार था कि उसे सुनकर उसके टीचर्स की आंखों में आँसू आ गए। जब वह मंच से कभी गीत की प्रस्तुति देती तो सभागार में उपस्थित सभी लोग भाव-विह्वल हो उठते थे। लोग उसकी खूब तारीफ करते थे। उसे गिटार बजाने का मन करता परंतु उसके पास गिटार नहीं था।
आज शाम को उसके घर पर खूब चहल-पहल थी। हो भी क्यों नहीं, क्योंकि आज उसका बर्थडे था। उसकी सौतली माँ उसे कम प्यार नहीं करती थी फिर भी उसे अपनी माँ की याद रुला ही देती थी।
'तन्नू देखो तुम्हारे लिए मैं क्या लाया हूँ?' उसके पिता ने कहा।
'अरे, ये तो गिटार है।' खुशी से वह उछल पड़ी। मानो पिता ने उसके मन की बात को पढ़ लिया हो। बेटी को खुश देखकर उसके पिता हर्षित भी फूले न समाए। गिटार उसके लिए किसी हीरे-जवाहरात से कम नहीं था। पार्टी समाप्त होने पर वह गिटार लेकर अपने कमरे में गई। उसे खूब ध्यान से देखा। उस पर उंगलियाँ भी चलाई। परंतु जब उसकी सौतली माँ अपनी बेटी मन्नू के साथ होती तो बरबस उसे अपने माँ की याद आ ही जाती थी। वह भी चाहती थी कि वह अपनी माँ से लिपटकर अपने मन की बातें करे। पर ऐसा मुमकिन नहीं था क्योंकि उसकी अपनी माँ उसे छोड़ परलोक सिधार गयी थी। ऐसा उसने पिता जी से बार-बार सुना था।
तन्नू की माँ सुरांगनी एक गायिका थी। वह गीत भी लिखती थी। तन्नू ने अपने माँ के रूम से जो पुराना सन्दूक था, उसे फेंकने नहीं दिया था। वही उसके माँ की अंतिम निशानी थी। उसकी सौतेली माँ चाहती थी कि सन्दूक हटा देने से तन्नू का ध्यान उसकी माँ की तरफ से धीरे-धीरे हट जाएगा। पर ऐसा नहीं हुआ।
एक दिन तन्नू उदास बैठी थी। उसे उसकी माँ की याद सता रही थी। उसने सन्दूक को खोला। उसमें से उसे एक डायरी मिली जिसमें कुछ गीत उसकी माँ के द्वारा रचित थे। अवसर पाकर वह उसे पढ़ती और निहारती थी कभी- कभी तो ऐसे खो जाती थी कि उसमें उसकी माँ परिलक्षित होने लगती थी।
एक दिन उसके पिता ने उसकी माँ की मृत्यु के बारे में उसे बताया।
उसके पिता ने कहा-' तुम्हारी माँ को 'सी-बिच' से बहुत लगाव था। अतः हम दोनों गोवा घूमने गए। वहाँ हम सबसे पुराना सी-बिच 'अंजुना' पर गए हमने वहॉं खूब मजे किये। लेकिन दुर्भाग्य हमेशा से सौभाग्य पर भारी रहा है। जब हम दोनों नौका-विहार कर रहे थे। वे नाव के किनारे बैठी थीं। समुद्र के पानी का स्पर्श करते हुए खुश हो रहीं थी कि अचानक ज्वार आने के कारण नाव के मुड़ते ही वे जल में डूब गईं। नाव तो पलटने से बच गयी। पर लाख कोशिश के बाद भी मैं उन्हें ढूंढ नहीं सका। और अकेले घर वापस आ गया। उस समय तुम तीन वर्ष की थी। कुछ समय बाद मैनें सुनयना से दूसरी शादी कर ली जिससे कि तुम्हारी परवरिश सही ढंग से हो सके।'
जिस ज्वार के कारण सुरांगनी जल में डूबी उसी ज्वार ने उसे समुद्र के दूसरे छोर पर पहुँचा दिया था। वह बेसुध अवस्था में वहाँ पड़ी थी। कुछ मल्लाहों की नज़र जब उन पर पड़ी तो वे उसे उठाकर घर ले गए। होश में आने पर भी उसे कुछ याद नहीं हो पा रहा था।
तन्नू को अपनी माँ की बहुत याद उस समय आती जब उसकी सौतेली माँ मन्नू को उसके सिर पर हाथ फेरकर प्यार से चूमती व उसे अपने गले से लगाया करती थी। तन्नू अब बाइस वर्ष की हो चुकी थी। वह अपनी माँ की तरह खूबसूरत थी। वह भी गीत लिखती और उसे गाती थी। उसके गायकी की चर्चा दूर-दूर तक फैल चुकी थी। उसके प्रशंसकों की कमी नहीं थी। फिर भी वह प्रसिद्ध गिटार वादिका एवम गायकी में स्थान बना चुकी देवी मल्हारी से मिलना चाहती थी।
उसने अपनी सहेली अवंती से कहा-'क्यों न हम इस गर्मी की छुट्टियों में गोवा घूमने चलें। वहॉं जाकर हम देवी मल्हारी से मुलाकात भी कर लेंगे।
' बिल्कुल सही । इससे हम गर्मी की छुट्टियों का लुत्फ उठा सकेंगे।' अवंती ने कहा।
'बहुत दिनों से मेरी इच्छा थी कि मैं भी गोवा जाऊँ और 'सी-बिच' घूमकर आऊँ।' तन्नू ने कहा।
'मैं भी समुद्र देखने के लिए काफी उत्सुक थी। अब मेरी भी इच्छा पूरी हो जाएगी।' अवंती ने कहा।
निर्धारित योजना के अनुसार दोनों सहेलियाँ ट्रैन में सवार होकर गोवा के लिए निकल पड़ीं। गोवा पहुँचकर दोनों ने एक होटल में कमरा लिया। रात को खाना उन्होंने होटल में ही मंगवा लिया था। सफर में थकान के कारण बातें करते करते अवंती कब सो गयी। तन्नू को पता ही नहीं चला। उसने अब अवंती को जगाना ठीक नहीं समझा और वह भी थोड़ी देर में सो गयी।
अगले दिन चाय, नाश्ता करके वे गोवा के प्रसिद्ध दर्शनीय स्थलों को देखने के लिए निकल पड़ीं। सबसे पहले वे मंगेश टेम्पल देखने गयीं। यह एक शिव मंदिर है। जहाँ श्रद्धालु काफी संख्या में शिव लिंग की पूजा अर्चना कर रहे थे साथ उस पर फूल माला एवम जलाभिषेक कर रहे थे। तन्नू ने भी शिवलिंग की पूजा की। इसके बाद वे दोनों दूध सागर फॉल्स, अगुआरा किला और अन्य स्थानों का भ्रमण किया। वापस होटल लौटकर दोनों ने आराम किया। दोपहर का खाना दोनों ने बाहर ही खा लिया था।
यहाँ के प्रसिद्ध सी-बिचों में फ़ॉलोलेम, अंजुना, बागा आदि हैं। तन्नू अंजुना सी-बिच पर जाना चाहती थी। इसका संबंध उसकी माँ की मृत्यु से जुड़ा था। वहाँ पहुँचने पर उसे पता चला कि आज देवी मल्हारी का प्रोग्राम है। सबसे अच्छी बात तो यह थी उनका यह प्रोग्राम उसी होटल के समीप था जिसमें वे दोनों रुकी थीं। अतः जल्दी ही वे दोनों होटल वापस पहुँच गयीं।
तन्नू ने अवंती से कहा-'यदि अवसर मिला तो मैं भी अपना एक गीत प्रस्तुत करूंगी।'
'जरूर प्रस्तुत करना। देखना,तुम्हारे गीतों को सुनकर लोग दीवाने हो जाएंगे। तुम गाती ही ऐसा हो।' अवंती ने कहा।
वे दोनों बातें करते हुए उस सभागार में पहुँचे। जहाँ शाम को प्रोग्राम था। कार्यक्रम संचालक एवम आयोजक से मिलने के पश्चात उसे अपना गीत प्रस्तुत करने की अनुमति मिल गयी। प्रायः ऐसे आयोजनों में नए कलाकारों को पहले अवसर मिलता है। पुराने कलाकार अंत में अपनी प्रस्तुति देते हैं।
कार्यक्रम आरम्भ हुआ। सभी कलाकार अपने गीत गा रहे थे। तीसरे नम्बर पर तन्नू की प्रस्तुति थी।
उसने मंच से सबको संबोधित करते हुए कहा-' मैं बहुत छोटी थी, जब मेरी माँ मुझे अकेला छोड़ दिव्यलोक चली गयी। वे एक अच्छा गिटार वादिका थीं। वे एक गायिका थीं एवम गीत भी लिखती थीं। उनकी वह डायरी आज भी मेरे पास है। उससे मुझे प्रेरणा मिलती है। मैं जब आठवीं कक्षा में थी तब मैंने अपनी माँ की याद में एक गीत लिखे थे। वही आज मैं आप सबके समक्ष पेश करने जा रही हूँ।'
जैसे ही तन्नू ने गाना शुरू किया। उसके एक एक शब्द लोगों के दिल को छूने लगे। लोगों के आँखों में आँसू थे। गिटार पर चलती उसकी उंगलियाँ उसके गीत को और अधिक प्रभावी बना रहीं थीं। तन्नू के गीत को सुनकर देवी मल्हारी भी स्टेज पर आने से खुद को नहीं रोक पाईं। वे जानना चाहती थीं कि उसकी माँ कौन थीं जिसकी बेटी इतना कमाल का गाती है।
उन्होंने कहा-'क्या मैं तुम्हारी माँ की वह डायरी देख सकती हूँ।'
तन्नू ने कहा-'क्यों नहीं। आप तो संगीत की देवी हैं। आप के बारे में हमने काफी सुना है।'
'लीजिए, ये रही मेरी माँ की डायरी'- तन्नू ने कहा।
डायरी देखते ही वह फूट फूटकर रो पड़ीं। उन्होंने तन्नू को पास बुलाया। उसके सिर पर हाथ फेरा। उसके माथे को चूमा।
तन्नू अवाक थी। उसे देवी मल्हारी का यह बर्ताव कुछ समझ में नहीं आ रहा था। वह चुप थी।
देवी मल्हारी ने माइक हाथ में लिया और बोलीं-' जिस तन्नू को आप लोग देख रहे हैं। वह कोई और नहीं मेरी अपनी बेटी है। और मैं उसकी अभागिन माँ सुरांगनी हूँ। यह मेरी ही डायरी है।'
मल्लाहों के यहाँ रहते हुए जब धीरे-धीरे मेरी याददाश्त वापस लौटी। तब तक मेरी पति ने दूसरी शादी कर ली थी। मैं उनके पारिवारिक जीवन में बाधा नहीं बनना चाहती थी। इसलिए अपना नाम बदलकर देवी मल्हारी रख लिया। और इसी नाम को मैंने अपनी जीविका और गायिकी का आधार बना लिया।'
तन्नू हतप्रभ थी। उसके मुँह से बोल ही नहीं निकल रहे थे। उसे संसार का वह अमूल्य खजाना मिल गया था जिसके लिए वो वर्षों से तरस रही थी।
तन्नू के मुख से केवल एक शब्द निकला-'माँ'
'हाँ बेटी'-देवी मल्हारी ने कहा।
और तन्नू को गले लगा लिया। दोनों की आँखों से अश्रु की अविरल धारा बह निकली। सारी सभा में सन्नाटा था।
