Ram Chandar Azad

Children Stories

5.0  

Ram Chandar Azad

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प्रायश्चित

प्रायश्चित

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पकड़ो पकड़ो ... मारो मारो। लोगों का शोर गली से सुनाई पड़ रहा था। एक बालक हाथ जोड़े हुए कहा रहा था- 'मुझे मत मारो , मुझे मत मारो। मैन चोरी नहीं की है।' मगर कुछ जोशीले, नहीं ,नहीं बदमाश प्रकृति के दो युवक उसे मारे जा रहे थे। और 8लोगों को मारने के लिए उकसा भी रहे थे। वे दोनों युवक अपने को सामाजिक कार्यकर्ता बता रहे थे। मगर ऐसा नहीं था। वे दोनों अपने पुराने झगड़े को लेकर उसे मार रहे थे। वे युवक एक बार उसके मोहल्ले में चंदा माँगने गए थे। इस बालक ने अपने पिता से पैसे नहीं देने दिए थे।


पिटता हुआ बालक लक्ष्मीपुर मोहल्ले के भग्गल मोची का लड़का था। वह पास के मिडिल स्कूल में आठवीं कक्षा में पढ़ता था। अपनी माता- पिता का एकलौता बेटा था। बड़ा ही होनहार और सुशील था। घर की आर्थिक स्थिति सही न होने पर भी भग्गल उसे पढ़ा-लिखाकर एक नेक इंसान बनाना चाहता था। शिक्षा ही मनुष्य को समाज मे सिर उठाकर चलने योग्य बनाती है।


भग्गल जानता था कि वह कभी चोरी नहीं कर सकता। शोर सुनकर वह भी वहाँ पहुँच गया था। बेटे को इस दशा में देखकर उसके तो होश उड़ गए। काटो तो खून नहीं। भीड़ को चीरता हुआ बेटे के पास जा पहुँचा। बेटा तो अधमरी अवस्था मे बेहोश पड़ा था।


हमीर बाबू हम गरीबों पे इतना जुल्म काहे ढा रहे हो। उसने कहा -'आखिर हमार भोलुवा से कउन सी गलती होय गवा जो आप लोग इसे मार मार के अधमरा कै दियो।


ससुरे ने आज स्कूल से आते समय हमारे घड़ी के दुकान से घड़ी चुरा ली और जब पूछा तो कहने लगा कि हमने घड़ी चोरी नहीं की। एक तो चोरी ऊपर से सीना जोरी। घड़ी लिए हुए भाग रहा था।


'चोरी का इल्ज़ाम किस पर लगा रहा था मालूम।' हमीर बड़े तैश में बोला।


'किस पर लगा रहा था?' भग्गल ने जानना चाहा।


'कह रहा था कि सुमित ने चुराया है। अपनी चोरी का इल्ज़ाम उस पर मढ़ रहा था। उसको अपनी दुकान से चोरी करने की क्या ज़रूरत। वह कह देता कि- चाचा, मुझे घड़ी चाहिए ,मैं उसे बढ़िया सी घड़ी दे देता।'


जैसे ही सुमित ने अपने चाचा को भोलुवा को डाँटते हुए देखा। वह डर के मारे भागकर घर पहुंच गया।


अब धीरे धीरे भोलुवा को होश आ रहा था। भीड़ भी अब वहाँ से खिसकती जा रही थी। अब केवल वहां भोलुवा और उसके पापा बच रहे थे। उसके सिर और हाथ-पैर में जगह जगह चोट एवम घाव थे। वह दर्द से कराह रहा था। उसके पापा ने उसे सहारा देकर उठाया। वे दोनों घर की ओर चल पड़े। भग्गल का मन कभी यह मानने को तैयार ही नहीं था कि उसके भोलुवा ने चोरी की है।


गरीबी में ईमानदारी की आवाज दबा दी जाती है। यदि गरीब आदमी उसे कितना भी सबूत देना चाहे तो डांट डपटकर या मारकर चुप करने को बाध्य कर दिया जाता है। यही स्थिति भग्गल की थी। उनकी सुनने वाला कोई नहीं था।


सुमित भी उसी मिडिल स्कूल में सातवीं कक्षा में पढ़ता था। अगले दिन वह स्कूल गया तो गुरु जी ने उसे बुलाकर पूछा- ' भोलुवा ने तुम्हारी दुकान से घड़ी क्यों चुराई थी? '


बालक सबसे झूठ बोल दे लेकिन अपने गुरु जी से कैसे झूठ बोले।


सुमित तो पहले कुछ हिचकिचाया फिर बोला-' मैने अपने चाचा से कई बार डिजिटल घड़ी के बारे में कहा लेकिन उन्होंने मुझे कोई घड़ी नहीं दी। हर बार कोई न कोई बहाना बना देते। शाम को स्कूल से लौटते समय दुकान से एक घड़ी निकाल ली और उसे भोलू को दे दी जिससे कि चाचा को पता न चल सके। '


जब चाचा ने भोलू के हाथ मे घड़ी देखी तो गुस्से से आग बबूला हो गए। उसे वे मारने लगे। इस डर से कहीं वे मुझे न मारने लगे ,मैं डर के मारे घर भाग गया।' उसके बाद तो वहाँ काफी लोगों की भीड़ जमा हो गई थी। चाचा के अलावा दूसरे लोग भी उसे पीट रहे थे।

गुरु जी ने पूछा-'क्या बाद में भी तुमने ये बात अपने चाचा को नहीं बताई।'

जी नहीं- सुमित ने जवाब दिया।

फिर तो भोलू के साथ बहुत अन्याय हुआ। गुरु जी ने कहा।

जी, गुरु जी। सुमित ने कहा।

शाम हो चुकी थी। आज गुरु जी अपने घर न जाकर सीधे भोलू के घर गए। भोलू का हाल समाचार जानने के लिए।

भग्गल तो गुरु जी को देखकर दुखी मन से बोला- 'साहब हम गरीब जरूर हैं। मेहनत करने वाले हैं। हम मेहनत की चोरी नहीं करते तो घड़ी की चोरी क्यों करेंगे । '

'मुझे सब मालूम हो गया है कि भोलू ने कोई चोरी नहीं की।' गुरु जी ने कहा।

'कैसे मालूम चला साब'। भग्गल बड़ी अधीरता के साथ बोल उठा।

'मुझे सब सुमित ने स्कूल में आज सब बता दिया। इसीलिए तो मैं सीधे तुम्हारे पास चला आया।'गुरु जी ने कहा।

'तो फिर चोरी किसने की थी। हमारे भोलुवा के हाथ मे घड़ी कैसे आई।' जिज्ञासा वश भग्गल ने पूछा।

'सुमित ने घड़ी लेकर भोलू को दे दिया। और जब हमीर ने देखा तो उसे लगा कि भोलू ने चुपके से घड़ी उठा ली।' गुरु जी ने बताया।

तभी सुमित और उसके चाचा भी वहाँ आ गए। वे अपने किये पर बहुत पछता रहे थे। सुमित ने जब गुरु जी को देखा तो उसकी नज़रें झुक गई।

'भग्गल, आज मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई। मैने अनजाने में आज बहुत बड़ा अपराध कर दिया जो क्षमा के लायक तो नहीं है फिर भी आप जो सजा देना चाहो दे सकते हो।' हमीर ने कहा।

'आपको सजा मैं दूँगा'। गुरु जी ने कहा।

'मुझे सब मंजूर है।' हमीर ने प्रायश्चित के स्वर में कहा।

'भोलू और सुमित दोनो अभी बालक हैं। सुमित की वजह से भोलू को गलती का शिकार होना पड़ा। कल आप स्कूल में आकर बच्चों को बताओगे कि भोलू ने कोई चोरी नहीं की थी। 'गुरु जी ने कहा।

'ठीक है गुरु जी।' आपका आदेश सर माथे ।


अगले दिन-

प्रातः कालीन सभा शुरू हो चुकी थी। हमीर गुरु जी के कहे अनुसार वहां पहुंच गया। बीच मे ही बच्चों को बिठाते हुए गुरु जी ने हमीर को बोलने के लिए मंच पर आमंत्रित किया। हमीर पहले से ही तैयार था।

'प्यारे बच्चों'! कल मुझसे एक बहुत बड़ी गलतफहमी हो गई। भोलू के हाथ मे घड़ी देखकर मैं उसे चोर समझकर उसे मारने व पूछने लगा। वह कुछ बता पाता कि कुछ लोग उसे बेतहाशा मारने लगे। मैं भी कुछ बचाव नहीं कर पाया।

पिछले कुछ दिनों से सुमित मुझसे डिजिटल घड़ी की माँग कर रहा था। मैं उसे देने को तो कह देता परन्तु घर जाते समय भूल जाता। आज सुमित जब दुकान पर आया ,भीड़ की वजह से मैं उस पर ध्यान नहीं दे पाया। उसने कब घड़ी उठाकर भोलू को दे दी। मैं देख नहीं पाया। और समझ बैठा कि घड़ी भोलू ने चुराई है। शाम को स्कूल से घर आने के बाद सुमित मुझसे लिपटकर रोने लगा। बहुत पूछने पर बताया कि घड़ी भोलू ने नहीं चुराई थी।

मैने पूछा तो फिर घड़ी किसने चुराई?

सुमित ने कहा- 'मैंने चुपके से लेकर भोलू को दे दिया था।

वही भोलू के हाथ मे घड़ी देखकर मुझे गलतफहमी हो गई थी। मैं जब उसे डाटना और मारना चाहा तो दूसरे कुछ दुष्ट लड़के चोर चोर कहकर पकड़कर मारने लगे। भोलू कुछ बताना तो चाह रहा था पर उसे मौका ही नहीं मिला।

बच्चों हमे बिना सोचे समझे तुरंत कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए। इससे बहुत बड़ा नुकसान हो सकता है। मैं भोलू और उसके परिवार से माफी माँगता हूँ।

आज मैं अपनी भूल के प्रायश्चित के लिए भोलू को एक छोटी सी गिफ्ट देना चाहूंगा।

भोलू जब मंच पर आया तो सुमित भी उसके साथ जाकर खड़ा हो गया। हमीर ने सुमित और भोलू दोनो को एक एक घड़ी दिया। घड़ी पाकर दोनो खुश हो गए।




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