Pallavi Goel

Drama

5.0  

Pallavi Goel

Drama

सम्मोहन

सम्मोहन

4 mins
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बयालीस वर्षीय रीमा अभी तक आगरा के एक दुकान में काम करती थी ।सामान का हिसाब रखने का काम था। ज्यादातर काम फाइलों के माध्यम से निपट जाता था। जो थोड़ा बहुत कंप्यूटर का काम बचता था ,वह सेठ अपने अकाउंटेंट को दे देता था। लड़का इंटर पास कर चुका था और पति से दस वर्ष पूर्व ही तलाक ले लिया था। सारी जिम्मेदारी स्वयं उठाने की आदत ने उसे बहुत आत्मविश्वासी और स्वाभिमानी बना दिया था कभी-कभी अकेलापन महसूस होता था पर बेटे के सानिध्य से वह दूर भी हो जाता था।

बेटे श्यामल का ऐडमिशन मुंबई के एक कॉलेज में करवाने के बाद वह अकेली हो गई थी इसलिए सोचा वह भी मुंबई में जाकर ही रहेगी ।वहाँ कुछ काम ढूंढ लेगी । बेटे का आना और मिलना जुलना भी होता रहेगा तो इतना अकेलापन नहीं खलेगा ।वह जब मुंबई आई तो रहने का खर्चा ही इतना था कि उसे लगा कि साधारण सी कमाई से काम नहीं बनेगा। अब उसे बड़ा काम करना होगा अकाउंट का सारा काम उसे आता ही था पर जहाँ भी वह काम मांगने गई ,उसे एक ही परेशानी का सामना करना पड़ा। हर एक कंपनी ने अपना हिसाब कंप्यूटर पर रखना शुरू कर दिया था ।उसे कंप्यूटर सीखना आवश्यक था ।

उसने सबसे पहले एक छोटी सी दुकान में काम करना शुरू किया ।साथ ही साथ कंप्यूटर सीखना भी शुरू किया। वहाँ उसकी मुलाकात कंप्यूटर इंस्ट्रक्टर संदेश से हुई। संदेश पैंतीस - छत्तीस वर्ष का युवक था । शुरू में रीमा ने सीखना शुरू जरूर किया पर न आने पर जब वह झुंझलाती और गलती करती तो संदेश अपने भरपूर हँसी के साथ उसका उत्साह बढ़ाता व कार्य करने के लिए प्रेरित करता, रीमा को उसकी हंसी बहुत पसंद आती ।निर्दोष मुक्त सी हँसी के आकर्षण के साथ बंधी हुई बहुत ही सहजता के साथ उससे बातचीत करती।

एक दिन जब संदेश यूं ही खिल-खिलाकर हँस रहा था तो रजनी के एक कथन पर रीमा के मुंह से निकल पड़ा।संदेश की हँसी की तो बात ही मत पूछो ।कोई भी उसकी हँसी के मोह से बचकर नहीं रह सकता ।सामान्य बात कही थी और बात खत्म हो गई पर बात यहीं खत्म नहीं हुई थी ।उसी दिन से संदेश की नजरें कुछ बदल सी गई और कुछ समय बाद रीमा को उसमें प्रश्न भी तैरते नज़र आने लगे। रीमा ने पहले तो नजरों को फेर कर फिर सहजता पूर्वक बातें करके उसे समझाने की कोशिश की कि जैसा वह समझ रहा है ऐसी कोई बात नहीं पर संदेश बिल्कुल समझने को तैयार नहीं था ।उसकी हँसी गायब हो चुकी थी रीमा को बहुत बुरा लगता कि उसकी वजह से संदेश की हँसी गायब हो चुकी है उसने अपनी उम्र और अपने बेटे के बाबत हर बात बताने का निश्चय किया। पर कुछ ही दिनों में उसे लगने लगा उन आँखों के जादूई सम्मोहन में वह खुद भी फँसने लगी है। दस साल का अकेलापन व किसी का उसके प्रति आकर्षण जताना उसके लिए पहली बार तो नहीं पर अनोखा जरूर था। अनोखा इसलिए वह संदेश जिसकी मुस्कान उसे पसंद थी, उतने ही निर्दोष संदेश उसे भेज रहा था। आखिरकार रीमा के दिल ने हार मान ली और संदेश को देखते ही उसकी आँखें नीची हो जाती व देखते हुए भी उसे ना देखने का बहाना करती। अब संदेश ने उसे अपलक आंखों से देख कर मुस्कुराना शुरू कर दिया था ।उसकी झुकी नज़रों में उसे अपने उत्तर मिलने शुरू हो गए थे। संस्थान के वार्षिकोत्सव का दिन था सभी तैयारी में व्यस्त थे । आज जितने लोगों का कोर्स पूरा हो चुका था उन्हें सर्टिफिकेट मिलना था और सर्टिफिकेट मिलने के बाद यहाँ आना भी बंद होने वाला था।

उसकी आतुर नजरें और व्यथित दिल बेसाख़्ता संदेश को ढूंढ रहे थे तभी मोबाइल की घंटी बजी। श्यामल झुंझलाई आवाज़ में बोल रहा था ।"कितनी देर से फोन मिला रहा हूँ, कहाँ हो? घर के बाहर खड़ा हूं ;ताला लगा है; कितनी देर में आओगी?" रीमा को मानो झटका लगा और नींद से सोते से जगी।बोली, "बेटा, अभी आ रही हूं ।"रास्ते में संदेश मिला। उसने आतुरता से पूछा," कहाँ जा रही हैं, प्रोग्राम शुरू होने वाला है।" उसकी पूरी दृढ़ता के साथ संदेश की आँखों में आँखें डाल कर जवाब दिया ," बेटा इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ता है ,वहां से लौटा है, उसी के पास जा रही हूं। सर्टिफिकेट फिर कभी आकर ले जाऊंगी । नमस्ते कर ,वह अपनी दृढ़ चाल के साथ दरवाजे की तरफ बढ़ चली। संदेश वहीं खड़ा उसे जाते देखता रहा ।


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