समाज के द्वेष

समाज के द्वेष

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''हाय ! ''

''हाय जी !''

''अभी -अभी शिफ्ट किया है क्या ?''

''जी लास्ट मंथ ही मेरे हस्बेंड ने यहाँ एक कंपनी में ज्वाइन किया है --पहले तो हम लोग नैनीताल में रहते थे।

''बाइ दा वे --क्या मैं तुम्हारा नाम जान सकती हूँ ?''

''हाँ जरूर मैं हूँ सुजाता और मेरे हस्बेंड का नाम है अरविंद।''

''ओके --वेरी नाइस नेम !''

''आपका परिचय --?''

''हाँ जी --हाँ जी क्यों नहीं --मेरा नाम लवी है और मेरे हस्बेंड हैं रूपम।''लवी ने मुस्कराते हुए कहा तो सुजता भी मुस्करा दी।

''अब तो हम पड़ोसी बन ही गये हैं --अच्छा यह बताओ घर पर और कौन -कौन है ?''लवी ने फिर मुस्कराते हुए पूछा।

''जी मेरे दो बच्चे हैं !'' सुजाता ने खिली हुई मुस्कान के साथ उत्तर दिया।

''अच्छा खाली समय में बड़ी बोरियत होती है न --जब बच्चे स्कूल और पति औफिस चले जाते हैं --इसलिये मैंने तो बहुत सारी किटी पार्टी ज्वाइन कर लीं हैं --तुम भी कर सकती हो।'' लवी ने फिर चहकते हुए कहा।

''जी, मेरे पास समय ही नहीं बचता इन सबके लिये ।''सुजाता ने शालीनता से उत्तर दे मना कर दिया।

''ठीक है ---कभी घर पर बुलाईये न।'' लवी ने सुजाता के घर के अंदर झाँकते हुए कहा।

''अरे -आप आ जाइये।'' कहती हुई सुजाता लवी को भीतर ले गयी।

''मम्मी मुझे मेरी बूक्स लाकर दे दीजिये।''बिस्तर पर कूबड़ वाली कमर और पतले पैरों वाले बैठे लगभग बारह - तेरह साल के लड़के ने सुजाता से कहा।

''हाँ बेटा अभी लाती हूँ ---लवी यह मेरा बेटा प्रखर है --नमस्ते करिये बेटा आंटी को --!'' सुजाता ने प्रखर से तेज आवाज में कहा तो प्रखर ने दोनों हाथ जोड़कर नमस्ते किया।

''यह स्कूल नहीं गया क्या ?' लवी ने मुंह बनाते हुए पूछा

''इसको मैं स्कूल नहीं भेजती --घर पर ही स्टडी करता है !''

''पढ़ाता कौन है ?''

''मैं और इसके पापा --बहुत इंटेलिजेंट है मेरा प्रखर सुजाता ने प्रखर के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा तो प्रखर मुस्करा दिया।

''जन्म से ही ऐसा है क्या यह?'' लवी ने फिर मुँह बनाया।

''जी !''

''कैसे पालती हो तुम इसको ?''

''मतलब !''

''यह तो बिल्कुल ही अपाहिज है --बड़ी दुखी रहती होगी तुम ?'' लवी ने सुजाता को बेचारी बना दिया।

''कौन कहता है कि मैं दुखी हूँ ?---अरे माँ हूँ इसकी माँ जैसे तुम हो --लेकिन तुम्हारा कोई कसूर नहीं , हमारा समाज ही ऐसा है विकलांग लोगों को बेचारगी की नजर से देखते हैं ---और हाँ प्लीज आज के बाद मुझे और मेरे बेटे को बेचारगी की नजर से मत देखना !'' सुजाता ने चाय की प्याली लवी की तरफ़ बढ़ाते हुए कहा लवी के चेहरे पर शर्मिन्दगी के भाव आ गये। ''चिल यार --अब बुरा मत मानो !'' सुजाता ने ठहाका लगाते हुए कहा तो प्रखर और लवी दोनों ही हँस दिये।


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