सितारा
सितारा
वही "ध्रुव" और वही उसका नृत्य मगर आज वेश बदला और चेहरा छुपाया तो जैसे गालियाँ तालियों में बदल गईं।
समाज के नियम भी शतरंज जैसे... हर मोहरे की अपनी जगह और अपनी चाल। यहाँ कला भी स्त्री और पुरुष में बँटी है। मगर आज इन तालियों ने ध्रुव को दृढ़ संकल्पित कर दिया अपनी कला के प्रति। तो क्या हुआ अगर वो कुछ अलग है, आखिर है तो इक सितारा ही... जगमगाएगा ज़रूर।