सिर्फ तुम्हें लिखना चाहती हूँ
सिर्फ तुम्हें लिखना चाहती हूँ
"टूट जाने का मतलब हमेशा बिखर जाना नहीं होता। कभी कभी टूट है एक नई शुरुआत भी होती है। "
अब मैं ज़िन्दगी के उस मोड़ पर हूँ। जहाँ अब कुछ भी पा लेने की कोई ख़्वाहिश नहीं है मेरी। और ना ही दुनियां की इस भीड़ के साथ भागने का मेरा कोई इरादा है।
और मेरी ज़िंदगी से जाने वाले किसी भी शख्स को रोकने की कोई ख़्वाहिश भी नहीं है मेरी। अब मैं बस बस चुप, शांत, और कुछ लम्हे सिर्फ खुद के साथ अकेले बिताना चाहती हूँ। जहाँ कोई ना हो, कोई भी नहीं, बस मैं मेरी डायरी एक कलम और मेरी पसंदीदा कुल्हड़ वाली चाय हो।
और जहाँ हल्की सी रोशनी में बैठकर मैं हमारी ज़िन्दगी के हर एक पल को वापस से उसी तरह जीते हुए लिख सकूँ। जैसे मैंने उस वक़्त तुम्हारे साथ जिया था।
और मैं लिख सकूँ वो हर लम्हा, जो आज भी उतना ही सच्चा है। जितना उस वक़्त था।
और तुम्हारी वो मंद सी मुस्कुराहट लिख सकूँ। जिसे देख मैं अक्सर खिलखिला उठती थी।
और तुम्हारा वो कमीज़ की बाजुओं को बार-बार ऊपर चढ़ा लेना। वो सब लिखना चाहती हूँ मैं। तुम्हारे हाथ की वो काले मोतियों वाली माला, जो अक्सर मैं तुमसे मांगा करती थी।
और तुम अक्सर बोलते थे, तुम्हारे लिए नई ला दूँगा। हर एक चीज़ लिखना चाहती हूँ मैं....
मेरा हर आँसू, तुम्हारी हर मुस्कुराहट, टूटे हुए सपने, हर टूटी हुई उम्मीद सब कुछ लिखना चाहती हूँ। हर वो लम्हा लिखना चाहती हूँ। जहाँ हम दोनो साथ थे।
शायद इस तरह मैं ढूढ़ पाऊं उस लम्हें को जो हमारे अलग होने का कारण बना। शायद मैं ढूढ़ पाऊँ अपनी उस कमी को जो तुम देख पाए और मैं नहीं।
मैं जानती हूँ, अब कुछ नहीं बदलेगा। कुछ भी नहीं। फिर भी लिखना चाहती हूँ। वो कहानी जो मैंने जी है। तुम्हारे साथ और आज भी जी रही हूँ।
अपने इस जीवन के अंत तक सिर्फ और सिर्फ तुम्हें लिखना चाहती हूँ। बस सिर्फ और सिर्फ तुम्हें ही लिखना चाहती हूँ।

