सिंदूर - एक प्रेम कथा
सिंदूर - एक प्रेम कथा


कहानी है, एक मध्यम वर्ग के परिवार (अंबानीजी का परिवार) की लड़की शांति की। शांति बड़ी ही चुलबुली और बातूनी लड़की है जो उत्तराखण्ड के रुद्रपुर शहर की निवासी है। शांति एक कंपनी में कार्यकारी प्रशिक्षक(एक्जीक्यूटिव ट्रेनर) के पद पर अधिवासित है। लेकिन उसमें, ना रूप रंग का और ना ही अपनी प्रतिभा का कोई घमंड है, वह लड़कप्पन की दहलीज को पार करके अब घर - संसार के उत्तरदायित्वों के निर्वाह की डगर पर चलने को तैयार है।मतलब, शादी करने की उम्र में आ पहुंची है और इसके साथ ही शांति, शादी के बाद भी नौकरी करने और जीवन में आगे पढ़ने के लिए बहुत महत्वाकांक्षी है।
संस्कार और सभ्यता उसमें कूट - कूट कर भरी है किन्तु कोई कितना भी सामाजिक या आधुनिक(अप - टू - डेट) रहे, शादी - शुदा जीवन यापन का अनुभव थोड़े ही ना हो जाता है किसी को। यह तो वह अनुभव है जो कि शादी - शुदा लोगों के संपर्क में रहने से भी अधूरा ही रहता है क्यूंकि इस अनुभव की डगर सबके लिए असमान है।
एक दिन, पड़ोस के ही मोदी जी ने अंबानी जी को एक अच्छे रिश्ते का सुझाव दिया क्यूंकि दोनों पड़ोसी होने के साथ - साथ अच्छे मित्र भी थे। अच्छी मित्रता के चलते अंबानी जी, मोदी जी से अपनी पुत्री की शादी करने की इच्छा को उनसे व्यक्त करते रहते थे।
अपनी शादी के लिए रिश्ता ढूंढने की बात सुनकर, शांति ने अपने पिताजी से बात करने की सोची और शांति ने अपने और अपने प्रेमी(दूत) की शादी का प्रस्ताव अपने पिता के समक्ष रखा।
शांति और दूत, कॉलेज के समय से एक दूसरे से प्रेम करते थे और दोनों में बहुत अच्छा समंजन था। शांति मन ही मन दूत को अपना पति भी मान चुकी थी।
जात - पात का कोई मुद्दा नहीं था, अंबानी जी का परिवार बड़े ही खुले विचारों का था।
शांति के पिताजी को अपनी बेटी की पसंद पर कोई आपत्ति नहीं थी और उन्होंने दूत के परिजनों से मिलने की इच्छा जताई।
एक दिन लड़के(दूत) के परिजन लड़के के साथ शांति को देखने आये, दोनों परिवारों की भेंट व बातचीत हुई और शांति और दूत(लड़का) की शादी के लिए बात पक्की हो गई। दूत रुद्रपुर के समीप हल्द्वानी शहर का रहने वाला है और वहीं पर अपना ही एक स्थानीय व्यवसाय चलाता है और उसकी अच्छी आय के साथ - साथ समाज में एक अच्छी छवि व प्रतिष्ठा भी है।
दूत को शांति के नौकरी करने या आगे पढ़ने से कोई इनकार ना था किन्तु वह अपने वंश/पीढ़ी को भी आगे बढ़ाने के लिए पूर्णतः प्रतिबद्ध था और साथ ही साथ पति - पत्नी के आपसी सामंजस्य से निर्णय लिए जाए, दूत का ऐसा सोचना भी था।
कुछ ही महीनों में दोनों की शादी हो गई और शादी के बाद शांति, हल्द्वानी से रुद्रपुर आवाजाही करके नौकरी करने लगी। प्रशिक्षण (ट्रेनिंग) देने के लिए शांति को काम के सिलसिले में कई बार दो - तीन दिन के लिए शहर से बाहर भी जाना पड़ता था।
संगठित दुनिया(कॉरपोरेट वर्ल्ड) में एक प्रशिक्षक होने के कारण, खासतौर पर शांति खुद को फिट और ठीक रखने के साथ - साथ श्रृंगार रहित भी रखती थी(जैसा कि आजकल के दौर में अधिकतर पेशेवर महिलाएं करने लगी हैं, और शादी - शुदा होने के बावजूद भी माथे पर "सिंदूर" तक लगाना उचित नहीं समझती)।
घर से दफ्तर और दफ्तर से घर आते - जाते समय यदाकदा कुछ असामाजिक तत्व शांति का पीछा करते और कुछ तो अशलील व गंदे शब्दों का प्रयोग कर टिप्प्णी करते। शांति इन बातों को नजर - अंदाज कर अपने रास्ते चल देती। लेकिन, एक दिन हद तो तब हो गई जब शांति के एक सहकर्मी ने शांति को उसकी किसी उपलब्धि की बधाई देते समय बुरा स्पर्श(बेड टच) किया और उसी शाम को शांति को "ड्रिंक एंड डाइन" के लिए ऑफर किया। शांति ने दफ्तर का वातावरण ना बिगड़े यह सोचकर अपने गुस्से को शांत किया और अपने उस सहकर्मी को बिना कोई उत्तर दिए वहां से घर चली आई।
अब तो बात सड़क के गंदे माहौल से आगे, दफ्तर तक जा पहुंची थी और शांति जानती थी कि अगर उसने अभी इन अवांछित गतिविधियों पर अंकुश नहीं लगाया और अपना विरोध नहीं जताया तो आगे चलकर शांति बहुत बड़ी समस्या में पड़ सकती है। शांति स्वयं को बहुत ही अशांत महसूस कर रही थी। काफी गहन विचार और आत्म - मंथन करने के पश्चात् शांति ने यह बात दूत को व किसी को भी ना बताने का और स्वयं ही इस प्रकरण को सुलझाने का निर्णय लिया।
पति का विश्वास और प्रेम, शांति की सबसे बड़ी ताकत थी। अब वह परिस्थितियों का सामना करने का दृढ़ निश्चय कर चुकी थी लेकिन इस समस्या से निपटने की कोई युक्ति उसे सूझ नहीं रही थी, इसी कशमकश में वह सारी रात सो ना सकी।
अगले दिन, सुबह उठकर शांति ने दूत के लिए, हर रोज की तरह हल्दी वाला गर्म दूध बनाया। दोनों थोड़ी देर साथ बैठे फिर शांति और दूत अपने - अपने काम पर जाने के लिए तैयार होने लगे।
शांति, अपने बाल बनाने के लिए ड्रेसिंग टेबल के सामने बैठी। शांति के मन में दफ्तर जाने से पहले वही उथल - पुथल चल रही थी कि वह कैसे अपने साथ हो रहे अनाचार को रोकेगी। इतने में ही, अचानक शांति की सासू मां जी शांति के पास अाई और बोली - "बेटा आज करवाचौथ है, भले ही तुम दफ्तर जा रही हो किन्तु आज अपनी मांग में सिंदूर लगाकर ही घर से निकलना"।
शांति ने सासू मां जी के चरण स्पर्श किए, आशीर्वाद लिया और कहा - "जी अवश्य माता जी"।
शांति ने तुरंत दूत को पुकारा - "अजी सुनिए"।
सुनकर दूत शांति के समीप आए और बोले - "जी कहिए"।
शांति - आज करवाचौथ है और आप ही मेरी मांग में सिंदूर भरें ऐसी मेरी आपसे विनती है।
दूत - अरे इसमें विनती कैसी। आप आज्ञा करें तो हम तो रोज सुबह आपकी मांग में सिंदूर भर दें।
पति का प्रेम व स्नेह देखकर शांति को अपने पतिव्रता होने का असल एहसास हुआ और वह भरी आंखों से दूत के गले लग गई और बोली - "आज तो में चूड़ी, नथ, बिंदिया और साड़ी पहनकर ही दफ्तर जाऊंगी"।
शांति खुश थी और उसने सरल व अच्छे ढंग से अपना श्रृंगार किया और दफ्तर के लिए घर से जाने लगी। तभी दूत ने शांति से कहा - "शांति। चलो आज मैं आपको दफ्तर तक छोड़ देता हूं"।
लेकिन, आज शांति अपने पति प्रेम में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती थी और आज वह आत्म विश्वास से परिपूर्ण भी थी। शांति ने दूत से कहा - "रहने दीजिए। आप बस अपना काम समय से करके आज घर जल्दी अाइएगा"। और शांति दफ्तर के लिए चल दी।
आज शांति का विश्रंभ सातवें आसमान पर था वह अति प्रसन्न मन से घर से निकली और हर दुस्साहस का कड़ा उत्तर देने को तैयार थी, क्योंकि शादी की इस पहली करवाचौथ पर उसे इस बात का आभास हो गया था कि उसके पतिव्रता धर्म में कितनी शक्ति है।
दफ्तर जाते समय, जो लोग शांति को घूरा करते थे या अशलील टिप्पणी करते थे। आज वह शांति के एक कड़ी नजर से देखने मात्र पर ही, मानो ऐसा लग रहा था कि डर कर भाग रहे थे।
शांति दफ्तर पहुंची, दफ्तर के सभी कर्मचारी शांति को इस नए रूप में देखकर अति प्रसन्न थे व पहले से ज्यादा आदर की नजरों से देख रहे थे। इसी बीच वह युवा कर्मचारी जिसने शांति के साथ दुर्व्यवहार किया था दफ्तर आ पहुंचा और शांति को मांग में सिंदूर लगाए और सजा - धजा देख शर्मिन्दा हो गया। उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने शांति से अपने दुर्व्यवहार की माफी मांगी।
शांति ने बड़प्पन दर्शाते हुए, उस युवक को कहा - "स्त्री चाहे, कुंवारी हो या शादी शुदा हो, आप अपनी जाती राय के आधार पर कभी भी उसके साथ दुर्व्यवहार या अनाचार करने का प्रयास ना करें, बहुत महंगा पड़ सकता है आपको"। कहकर शांति ने स्वयं को उस युवक से किनारे कर लिया और अपने और सहकर्मियों के साथ दफ्तर के काम काज में व्यस्त हो गई।
शाम को शांति दफ्तर से घर के लिए निकली और बस में बैठ गई। सारे रास्ते शांति यही सोचती रही कि, आज जो भी परिवर्तन हुआ उसके पीछे का कारण या यूं कहें कि इस विपदा से निपटने की शक्ति, मुझे मेरे पति धर्म ने और इस मांग में भरे सिंदूर ने दी।
शांति अनुभव कर रही थी कि, मांग का सिंदूर एक स्त्री/पत्नी की अपने पति से प्रेम और जीवन - प्रयन समर्पण का सूचक है।
आज शांति अपनी स्त्री शक्ति को समझ चुकी थी और जान चुकी थी कि, मांग में भरे सिंदूर का महत्व और मूल्य एक शादी - शुदा औरत के लिए क्या होता है, वह भी तब, जब उसका पति उससे इतना असीम प्रेम और उस पर इतना अधिक विश्वास करता हो।
अब शांति हर सुबह घर से दफ्तर मांग में सिंदूर लगाकर निकलती है और वह भी दूत ही शांति की मांग में सजाता है।