राजकुमार कांदु

Tragedy Inspirational

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राजकुमार कांदु

Tragedy Inspirational

श्री राम हनुमान युद्ध

श्री राम हनुमान युद्ध

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श्री राम हनुमान युद्ध 
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सुनो , सुनाता हूँ किस्सा ये ,
लेकर के श्री राम का नाम 
क्यों कहते हैं लोग बड़ा है 
राम से भी प्रभु राम का नाम ...

लंका विजय के बाद प्रभु 
श्रीराम अयोध्या आए थे 
ग्रहण सिंहासन को करके 
वह राजा राम कहाए थे 
दूध दही की नदियाँ बहती 
रामराज था देश में 
प्रजा सुखी संतुष्ट थी पाके
राजा राम के वेश में 
दो अक्षर का नाम लो प्यारा
दुःख का होवे काम तमाम 
सुनो सुनाता हूँ किस्सा ये 
लेकर के श्री राम का नाम 
क्यों कहते हैं लोग .....

एक दिवस दरबार सजा था 
विश्वामित्र जी आये थे 
 शीष ले आओ ययाति का 
प्रभु को आदेश सुनाए थे 
नमन किया गुरु को प्रभु ने 
और आसन उच्च प्रदान किया 
आवभगत के बाद प्रभु ने 
रार का कारण जान लिया 
हठ पे गुरु की तब प्रभु ने 
सबके सम्मुख ये ठान लिया 
सूर्य डूबने से पहले वध 
होगा ये ऐलान किया 
पल अंतिम है निकट ययाति
अब ना कहना त्राहि माम् 
सुनो सुनाता हूँ किस्सा ये
ले करके श्री राम का नाम
क्यों कहते हैं लोग ....

जान के प्रण श्री राम प्रभु का 
अब ययाति थर्राया 
जा पहुँचा हनुमान के दर पर 
स्वर उसका था भर्राया 
कपि नहीं थे घर पर उस पल 
अंजनी माँ ने बिठाया था 
शरणागत था भूप सामने 
ढाढस उसे दिलाया था 
शरण दो माताजी कहके 
उसने था करुण विलाप किया 
मत घबराओ राजन तुम
कहके हनुमत से मिलाप किया 
अभय वचन दे दिया है मैंने 
रक्षा इसकी करनी है 
चाहे जो हो जाए वचन की 
लाज भी तो रखनी है 
सुनके माँ के वचन कपि तब 
मन ही मन हर्षाये थे 
शरणागत की रक्षा करना 
धर्म बड़ा है बताए थे 
जान सके ना केसरी नंदन
किसका ये अपराधी है 
अभय दिया है शरणागत को 
रक्षा करना मेरा काम 
सुनो सुनाता हूँ किस्सा ये 
लेकर के श्री राम का नाम 
क्यों कहते हैं लोग ......

गुरु की आज्ञा पालन को प्रभु
तज के निकले अपना धाम 
धनुष हाथ ले विकट रूप धर 
पूरा करने  अपना काम 
देव यक्ष गंधर्व सहित सब 
चिंतातुर थी सृष्टि तमाम 
क्या होगा तब आगे किस्सा 
प्रभु पहुँचेंगे जब कपि के धाम 
रवि की गति भी शिथिल हुई थी 
असमंजस था मन में भारी 
संकट में हैं केसरी नंदन 
आज परीक्षा की है बारी
शरणागत की रक्षा करेंगे कि 
स्वामिभक्त कहलाएंगे 
जब कपि को सम्मुख पाएंगे 
करेंगे क्या फिर राजा राम 
सुनो सुनाता हूँ किस्सा ये 
लेकर के श्री राम का नाम 
क्यों कहते हैं लोग .....

देख के दूर से हनुमत को प्रभु
रामचंद्र मुस्काये थे 
दोषी है वह राजन गुरु का 
कपि को तब समझाए थे 
कर दो उसको मेरे हवाले 
पूरण हो जाए मेरे काम 
सुनो सुनाता हूँ किस्सा ये 
लेकर के श्री राम का नाम 
क्यों कहते हैं लोग .....

नतमस्तक हो कपि तब बोले 
नमन मेरा स्वीकार करो 
शंका है मन में मम भारी 
विनती है कि सुधार करो 
प्राण जाए पर बचन न जाई
रघुकुल रीति सदा चली आई 
मैं सेवक तुम स्वामी मेरे 
मुझको भी ये बात सुहाई 
माताजी ने वचन दिया है 
रक्षा करना मेरा काम 
सुनो सुनाता हूँ किस्सा ये 
लेकर के श्री राम का नाम 
क्यों कहते हैं ....

नादानी ना करो कपि तुम 
क्षमा नहीं कर पाऊँगा 
वचनपुर्ति की खातिर कुछ भी 
करने से ना कतराउंगा 
अंतिम है मौका ये सुन लो 
सम्मुख उसको लाओ तुम 
या फिर उठो सामना कर लो
समय व्यर्थ ना गंवाओ तुम 
सुन के राम को हनुमत जी तब 
मंद मंद मुस्काये थे 
हाथ जोड़कर प्रभू राम को 
माँ का वचन बताए थे 
अभय दिया उसे माता ने 
और पूरा करना मेरा काम 
सुनो सुनाता हूँ किस्सा ये 
लेकर के श्री राम का नाम 
क्यों कहते हैं ......

कुपित हुए हैं प्रभु रामजी 
सुनके हनुमत की बानी 
भक्त जो कहना ना माने और 
करता रहे जो मनमानी
बात से बात बने ना जब तो
रार पनप ही जाता है 
सबकी अटकी थी सांसें अब 
सम्मुख क्या क्या आता है
अब तो कोई विकल्प नहीं है
भक्त पे बाण चलाना है 
माना बहुत ही कठिन काम है 
वचन भी तो निभाना है 
क्या कीजै अब है मजबूरी 
प्रभु ने मन में है ठानी 
सुनियो लोगों ध्यान लगा के 
अचरज भरी हुई ये कहानी 
क्या होगा अब हनुमत का 
और क्या करेंगे राजा राम 
सुनो सुनाता हूँ किस्सा ये 
लेकर के श्री राम का नाम 
क्यों कहते हैं लोग ........


करके नमन पूज्य गुरुवर को 
राम ने शर संधान किया 
सम्मुख कपि थे ,हाथ जोड़कर 
प्रभु को फिर प्रणाम किया 
रामनाम का जाप ही करते 
कपि ने शीष झुकाया है 
 सम्मुख जाके तीर भी ठिठका 
कपि को भेद न पाया है 
करत निरंतर जाप नाम का 
हनुमत मन हर्षाये थे 
उर में बसती छवि प्रभु की
रोम रोम में समाए थे 
कर प्रदक्षिणा तीर कपि का 
 लौटा प्रभु के तरकश में
विस्मय में थे राम प्रभु जी 
मेरा तीर नहीं बस में 
किया प्रयोग कुपित होकर 
प्रभु ने दिव्य अस्त्रों की माला 
पर भेद सका ना कोई कपि को
हर अस्त्र निरर्थक कर डाला 
राम नाम के दिव्य कवच का
वलय कपि के चहुँ ओर रचा 
हर तीर था बेबस सम्मुख उसके 
लेता था कपि को वह बचा 
तब क्रोधित होकर प्रभु ने कर 
तरकश की तरफ बढ़ाया है 
अंतिम प्रयास में रामबाण को 
अपने धनुष चढ़ाया है 
अब दसों दिशाएं काँप उठी 
सुर नर दम साधे देख रहे 
जाने क्या होगा अब आगे 
अंतिम परिणाम को निरख रहे 
भक्त और भगवान के रण का 
ना जाने क्या हो अंजाम 
सुनो सुनाता हूँ किस्सा ये 
लेकर के श्रीराम का नाम 
क्यों कहते हैं लोग ......

अब ऐन समय प्रभु ने देखो 
अपनी लीला दिखलाई है 
गर भक्त सही भगवन झुकता
यह बात हमें बतलाई है 
आ पहुँचे विश्वामित्र गुरु 
प्रभु को आदेश सुनाया है 
अब शीश की मुझको चाह नहीं 
तुम वचन मुक्त हो बताया है 
अब आशीष दो हनुमत को 
और दिव्य अस्त्र को दो आराम 
सुनो सुनाता हूँ किस्सा ये 
लेकर के श्री राम का नाम 
क्यों कहते हैं लोग .....

कोई न जीता ,कोई न हारा 
अनुपम दृश्य विलक्षण था 
राम के नाम की महिमा न्यारी 
सब उसका ही लक्षण था 
अद्भुत दृश्य को देख सभी 
मन में आनंद विभोर हुए 
प्रभु की महिमा गाते गाते 
पुष्प वृष्टि चहुँ ओर भए 
रवि की चाल भी तेज हुई है 
वो निकले अस्ताचल को 
सुर ,गंधर्व यक्ष भी निकले 
गाथा गाते निज आलय को 
गुरु को नमन किया है प्रभु ने 
कपि को गले लगाया है 
हँसकर बोले भगवन कपि से 
तुमने मुझे हराया है 
बोले हनुमत हाथ जोड़कर 
प्रभु को शीश नवाया है 
मैं हूँ अदना सा सेवक तुम 
सारे जग के स्वामी हो 
बाल न बाँका होए कभी 
जो आपका अनुगामी हो 
तीर भी उसको छुए कैसे 
जिस उर बसे हों प्रभु श्री राम 
सुनो सुनाता हूँ किस्सा ये 
लेकर के श्री राम का नाम 
क्यों कहते हैं लोग  .......

राजा ययाति सम्मुख आए 
गुरु को शीश नवाया है 
अंजाने में हुई गलती है 
क्षमा करो दुहराया है 
मुझ पापी का पाप तो हर्गिज 
करने काबिल माफ नहीं 
मुस्काये तब गुरु वर बोले 
बात अभी तक साफ नहीं 
जाओ तुमको अभय दिया है 
हनुमत की भक्ति को नमन 
भक्ति भाव सीखो हनुमत से 
वश कर लो भगवान का मन 
वह पत्थर भी तर जाता है 
जिसपर लिखा हो राम का नाम 
सुनो सुनाता हूँ किस्सा ये 
लेकर के श्री राम का नाम 
इसी तरह साबित हुआ लोगों 
राम से भी बड़ा राम का नाम 
तभी से कहते हैं हम सब कि 
राम से भी बड़ा राम का नाम 

🙏🚩जय श्री राम 🚩🙏


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