शनासाई

शनासाई

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आज फिर मोड़ पे मेरी अपनी वहशत लेकर ,
मौत रस्ते में चली आई है ,
रास्ते में आदम के चेहरे तो दिखाई देंगे ,
मौत की सूरत, अलग अंदाज़ में दिखेगी ,
समय की फटी आँखों सुर्ख खून पीकर ठहर जाएगी ,
और सोचती होगी ,क्या मेरी उससे शनासाई थी? 

आज भी खून की नदी में नहाया सूरज ,
आज फिर उसकी रोशनाई में जमा खून है ,
रूह सब एक ही रंग में ढल जाते हैं ,
दश्त व दिल एक से ही लगते है ,
फिर पंजाब हो कि हो कश्मीर 
हर जगह एक सा पसरा मातम है ,
आंख पर दीद बहुत भारी है! 

पेड़ो की अक्स में भी अब खून जमा है ,
सूखते गले से टपकती बुँदे खून की ,
दानों टपकती बूंदें टप टप ,
प्यास का हक़ नमक की जरुरत बढ़ा देती हैं ,
हाफिज तालिबान और दौअद के कहकहे (आतंकवादी )
गुल की पोशाक हो या फूलों से तन ,
पैरहन हर जगह एक सी गुलपोश साथ है ! (फूलो में लिपटी लाशे )

कोई तो आवाज मिले प्यासे गले से ,
टपकते समय के साथ रूकी एक आवाज़ अपनी शबाखत लेकर ,
दूर के आंगन से मेरी आवाज आंख में केवल अंधेरे हैं,
सुनवाई की दरकार दूर तक आती दिखती नहीं है ,
दबी-दबी आवाजें दूर तक, शोर भी पर सन्नाटा है| (मारतो की दास्ताँ )

.............................................ھاھاھاھھاھاھااھاھاھاھہ۔۔۔۔۔
© Shantnu Barar

 


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