शब्दों की मार
शब्दों की मार


ये फिर से बच्चा पैदा करने के लिये यहाँ आ गई पहले जो दो बच्चे है ना उनकी पैदाइश के वक्त का कर्ज अभी तक नहीं दे पाया और अभी फिर से मुझसे नहीं होगा। पैसों का कोई पेड़ नहीं है मेरे पास जो छोटी को पढ़ाऊं और वो तुम्हारे निकम्मे बेटे को भी रोज शराब पिलाऊ। अरे अब बस भी करो सुन लेगी वो दामाद भी तो ऐसा मिला के किस्मत फूटी मेरी बेटी की भला यहाँ नहीं आएगी तो कहाँ जाएगी, तो फिर ठीक है पैसे तू लगाना इस बार।
माहि ये सब सुन रही थी उसकी आँखो से आँसू बहे रहे थे और पास में खड़ी उसकी भाभी उसे कह रही थी बाबूजी ठीक तो बोल रहे है, मैं तो कभी भी अपने पापा पर इस तरह बोझ न बनूँ ।
माहि कमरे में जाकर अपने कपड़े एक बैग में भरती है और निकलने की तैयारी करती है तभी छोटी कॉलेज से आ जाती है और कहती है दीदी अभी ऐसी हालत में मत जाओ और वो तुम्हारा पति वो तो तुम्हें मार मारकर कर मार ही डालेगा। नहीं छोटी अब नहीं मुझसे नहीं सहा जाता तुम अभी छोटी हो तुम्हें नहीं पता के मेरे पति की मार के ज़ख्म कुछ दिनों के बाद भर जाते है, पर ये जो शब्दों की मार है न ऐसे ज़ख्म दे जाते है जो मरते दम तक साथ रहते है और तकलीफ़ देते रहते है, ऐसा कहकर वो चली जाती है।
कुछ दिनों के बाद अस्पताल से फोन आता है और उधर से आवाज़ आती है तुम्हरी बेटी की मौत हो गयी है आकर लाश लेकर जाओ।