जो शब्दों की मार है न ऐसे ज़ख्म दे जाते है जो मरते दम तक साथ रहते है जो शब्दों की मार है न ऐसे ज़ख्म दे जाते है जो मरते दम तक साथ रहते है
शिक्षक नहीं आज के प्रतिकूल काल के अनुरूप योद्धा जो समझता हूँ। शिक्षक नहीं आज के प्रतिकूल काल के अनुरूप योद्धा जो समझता हूँ।
ये कहानी कॉर्पोरेट सेक्टर में व्याप्त चाटुकारिता की संस्कृति पे व्ययंग है...! ये कहानी कॉर्पोरेट सेक्टर में व्याप्त चाटुकारिता की संस्कृति पे व्ययंग है...!