shekhar kharadi

Abstract

4  

shekhar kharadi

Abstract

शांति की तलाश

शांति की तलाश

6 mins
775


दौड़ धाम भरी जिंदगी में मिस्टर विलसन चौबीस घंटे अपने कार्य में व्यस्त रहता था। क्योंकि वो एक बड़ी कंम्पनी में सीइओ के पद पर नियुक्त था। इसलिए कंपनी के ज्यादातर कार्यभार और जिम्मेदारी का काम उसके हाथों मे था। जिसकी बदौलत से वो अपने परिवार को पुरता वक्त न दे पाता था। न ठिक ठाक से खाना खा पाता था। न अच्छी तरह नींद लें पाता था। जिनकी वजह से उसका स्वभाव चिड़चिड़ा तथा तनाव भरा बन चुका था। जिसकी मानसिक और शारिरिक असर अंदर और बाहर मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से साफ़ दिखाई देनें लगी थी । 


अब वक्त जैैसे जैसे बीत रहा था, वैसे वैसे मिस्टर विलसन की मानसिक संतुलन ओर बिगड़ने लगी। तब उसकी पत्नी वोलटरा यह सब देखकर बहुत चिंतित प्रतीत होने लगी । क्योंकि दिनप्रतिदिन मनःस्थिति में अधिक बढोत्तरी हो रही थी। इसलिए ज्यादा वक्त बर्बाद किये बगैर, एक दिन मशहूर सायकायट्रिस्ट र्डा. रोनिक्स के पास ले गई, उन्होंने सभी बातें ध्यान से सुनकर तथा वर्तन व्यवहार जानकर, तथ्यों को निचोडकर अच्छी तरह निरीक्षण किया फिर शांत स्वर में कहा " मिस्टर विलसन लगातार कार्य में व्यस्तता के कारण मेन्टल स्ट्रेस और डिप्रेशन का शिकार हुए है। जिसकी वजह से वो ऐसी उटपटांग हरकतें तथा अचरज में डाल दें ऐसा वर्तन व्यवहार करनें लगा है। " 

वोलटरा - " क्या इसका कोई फास्ट ट्रिटमेंट संभव है ? "

डॉक्टर -" हां.. बिल्कुल संभव है, बस ध्यान यह रखना है की रेग्युलर टेबलेट और काउंसिल करना अति आवश्यक है और शांत तथा खुले वातावरण में जितना रहेगा और घूमेगा वो उतना फिजिकली एन्ड मेन्टली फास्ट हेल्थ में रिकवरी मिलेगी। "

वोलटरा - " कितने हफ़्ते लगेंगे रिकवरी आनें में ? "

डॉक्टर - " दरअसल साफ़तौर से कहा नहीं जाता । शायद.. पांच महीने या एक साल भी लग सकतें है क्योंकि वो पेसेंट की स्टेबिलिटी पर निर्भर करता है, कि वह कितनी जल्दी स्वस्थ होना चाहता है।"

वोलटरा " इसमें कोई रिस्क तो नहीं डॉक्टर..?" 

डॉक्टर- " इतना रिस्क तो नहीं बस चौबीसे घंटे विलसन पर निगरानी रखना अति आवश्यक है, क्योंकि वो अकेलेपन में स्वयं के साथ कुछ रोंग ना कर बैठे ? "

वोलटरा - " हा..बिल्कुल मेंं ध्यान रखूँगी..! "

डॉक्टर - " आपको हफ़्ते में दो बार चेंकप तथा काउंसिल करनें आना होगा । "

वोलटरा - " हा..जरूरत रेग्युलर लेकर आउंगी ।"


अब वोलटरा विलसन को लेकर वापस अपने हाउस आ जाती है, 

इतने में विलसन ने रुककर कहा " तुम जरा भी चिंतातुर मत होना में फास्ट मेन्टली स्ट्रेस से रिकवर हो जाउंगा । "

वोलटरा - " आइ होप तुम.. जल्दी ठीक हो जाओ । "

विलसन - " तुम खामखा इतनी परेशान मत हो ।"

वोलटरा - " चिंता तो तुम्हारी सदैव रहेगीं फिर भी वक्त के साथ सबकुछ ठीकठाक हो जाएगा ,बस तुम लॉड बुद्धा पर ट्रस्ट रखों वो अत्यंत दयालु हैंं, अपनों पर स्नेह की कृपा दृष्टि सदा बनायें रखेंगे । "

विलसन - " हा..क्यों नहीं वो तो करुणानिधि हैं, जो सदैव संसार को मानवता कि परिभाषा सिखाते है तथा शांति के महादूत बनकर चारोओर स्नेह प्रस्थापित करते हैं । लेकिन मेरा यह उद्विग्न मन आजकल सतत भीतर के द्वंद्व से अशांत है, तरह तरह नेगेटिव विचारों से अंधेरों में डूबा जा रहा है, जैसे मृत्यु ने मुझे क्षणभर में जकड़ लिया हो वैसी साक्षात अनुभूति मस्तिष्क में उत्पन्न होनें लगी है । "

वोलटरा- " तुम मुनिबुद्ध के भिक्षु जैसा आध्यात्मिक ध्यान धरो , भीतर अवश्य शांति का अद्भुत प्रवाह बहेगा । "

विलसन - " ये मेरा अस्थिर तथा विचलित मन यहाँ वहाँ बहुत भटकने लगा हैंं, अब कहीं भी मन स्थिर नहीं रहता । बस अक्सर खोया रहता हैं । "

वोलटरा - " अब खाकर.. तुम तुरंत सो जाओ, क्योंकि.. रात काफ़ी हो गई हैं, कल प्रातःकाल हम शाक्यमुनि के शांति टेम्पल जाएगें । "


रात भी अब शांति के तलाश में इंतज़ार करके बैठीं हो वो भी मनुष्य के रात-दिन तरह तरह हथकंडे अत्यंत दुःखी होकर शांति की तलाश में निकलीं हो वैसा हवा में साफ़ प्रतीत होने लगा था । मानों आज का सूर्य उदय नया अवसर लेकर द्वार पर दबें पांव आया हो वैसा वोलटरा सोचने लगीं थीं । तभी उसने मन में ख्याल आया की विलसन कहीं देखाई नहीं दें रहा, कहा गया होगा कहकर वो बड़ी हड़बड़ी में दौड़ती हुई कमरें तरफ गई तो अवाक या हक्की-बक्की रह गई क्योंकि विलसन बिस्तर पर नहीं था । इसलिए उसने यहां वहां बहुत ढूंढा फिर भी विलसन का पता नहीं चला, फिर अपने संबंधियों से भी पूछा लेकिन उन्होंने भी साफ़ मना कर दिया ।


दुसरी तरफ़ विलसन शांति के तलाश में यीशु मसीह के टेंपल गया । वहां हृदय से शीश झुकाकर प्रेयर करने लगा । " गोंड जीज़स मेरा मन कई दिनों से अशांत है, जरा तुम मुझे दिव्य शांति प्रदान कर ..!! " यह कहकर वो कई घंटों तक वहाँ बैठा रहा फिर भी उसके मन को तनिक भी शांति न मिली, इसलिए हारकर वो आगे जाने लगा, तभी उसके मस्तिष्क में एक पुरानी घटना प्रस्फूटित हुई यथार्थ याद आई । दरअसल एक साल पुर्व बौद्ध धर्म के भिक्षु भिक्षा मांगने के लिए उनके घर के पास से गुजरें थे। तभी उन्हें देखकर विलसन ने सटिक निरीक्षण किया कि उन भिक्षु के चेहरे पर अद्भुत प्रसन्नता थी, तथा ललाट पर गजब का तेज दिखाई दे रहा था, हृदय में करुणा का सागर छलक रहा था, तथा बाहर शांति के पुष्प खिल रहें थें। यह सभी बातों को मध्य नज़र रखतें हुए विलसन ने एक ठोस निर्णय लिया की अब शीघ्र बुद्ध का भिक्षु बनकर शांति की तलाश करेंगा । किंतु यथार्थ समस्या यह थी कि भिक्षु जहाँ से आये थे वो बौद्ध मठ कई मीलों की दूरी पर स्थित था। जहाँ पहुंचना अत्यंत कठिन राहों को चुनौती देकर जानें के बराबर था। क्योंकि उसनें कहीं सुना था की घनें जंगलों से गुजर कर टेढ़ीमेढ़ी चट्टानों से आगे होवेरा नदी के पास नैसर्गिक वातावरण में भिक्षु मठ स्थापित था। केवल वर्षा ऋतु में वहां जानें के लिए मार्ग बंध रहता था। इसलिए भिक्षु के आनेजाने कि जनसंख्या न जाने की वजह से उजड़ लगता था । किन्तु विलसन का नसीब इस बार साथ था क्योंकि ठंडी का मौसम चल रहा था। जिसकी बदौलत वहां भिक्षु की चहलपहल बहुत कम देखने मिलती थी।


कई दिनों सेवार्थी आश्रम में रह कर विलसन भिक्षुओं के जाने की प्रतिक्षा करने लगा था। फिर वो सुनहरी सुबह एक दिन आ गया, क्योंकि बुद्ध पुर्णिमा कुछ हफ्तों के बाद आने वाला थी। इसलिए बुद्ध भिक्षु की विशाल टोली वहाँ से गुजरने लगीं। यह देखकर अब विलसन भी बड़ी प्रसन्नता से पीछे पीछे चलने लगा, तभी एक भिक्षु ने उत्सुकता से पूछा - " हे पथिक क्या आप बुद्ध का भिक्षु बनने की इच्छा रखते हो ?" 

विलसन- " हां.. जरूर में मुनिबुद्ध के अष्टांगिक मार्ग पर चलना चाहता हूँ ! वो भी साक्षात दीक्षा ग्रहण करके "

ये सुनकर भिक्षु ने प्रत्युत्तर में कहां - " स्नेह, करुणा, सत्य, अहिंसा, क्षमा, ध्यान तथा आध्यात्मिक यह सब गहराई से शाक्यमुनि के बौद्ध धर्म में अतः करण से सिखने मिलता है । "


इस तरह भिक्षु और विलसन परस्पर बातें करते करते शाम ढलने से पहले बुद्ध मठ सभी भिक्षु के साथ आ पहुंचे थे। जिसकी आल्हादित अनुभूति हृदय में उभर रही थी। क्योंकि शांति का सुखद झरना भीतर प्रवाहित हो रहा था ।अब वो भिक्षु बनकर करीब एक बरस के आसपास रहा।

किंतु परिवार की चिंता उसे फिर लौटने विवश कर देती है।

एक दिन वो संपूर्ण स्वस्थ होकर घर वापस आ जाता है ।तभी यह देखकर अत्यंत शोकातुर पत्नी का प्रतिक्षा का दौर खत्म हुआ । अत्यंत हृदय स्पर्शी मिलन दृश्य देखकर किसीकी आंखों में अश्रु उभर आये वैसी अत्यंत सुंदर छबि वहाँ उत्पन्न हुई शांति की प्रतीक दर्शाती हुई ।।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract