शालीन भाभी जी
शालीन भाभी जी
रमन बाबू ने जैसे ही घर मे प्रवेश किया,पत्नी रमा पानी का गिलास उनके लिये लेकर आई। रमन बाबू की नाक में मसालों का भभका घुसा, अस्त व्यस्त साड़ी, बिखरे से बाल। मन विरक्त सा हो गया। बोले- "क्या कर रही थी"
"अम्मा जी के लिये दलिया बना रही थी,"
"ये क्या पंसारी की दुकान बनी रहती हो। जाने कब सलीका आयेगा। पड़ोस वाली भाभी जी को देखो "
"रोज ही तो देखते है, कोई नई बात है क्या"
"सिर्री हो तुम। कितने शालीन ढंग से वो साड़ी बाँधती है। उनके बातचीत का तरीका, राजनीति में, सहित्य में, समाजिक कार्य सब में उनकी गहरी पैठ है।उनके हर काम में शालीनता टपकती है"
"अच्छा।"
जब भी उनके यहाँ जाता हूँ किस सलीके से वो बिस्किट्स चाय पेश करती है, तुम क्या जानो।"
"आप वहाँ चाय वाय पीकर आते है। उन्हे भी अपने घर खाने पर बुलाओ न"
"वाह भाभी जी, क्या सुगंध आ रही है। ओ-हो खीर, अरे मूँग की दाल की कचौरी, दही बड़े भी, लाजवाब। मेरी तो लार ही टपकने लगी, मज़ा आ गया। इतना लज़ीज़ खाना तो अपनी अम्मा के हाथ का ही खाया था "पान्डे जी (शालीन भाभी के पति) एक एक चीज का स्वाद ,चटखारे लेकर खा रहे थे और दिल से प्रशंसा किये जा रहे थे। अचानक मिसेज पान्डे जोर से बोली "तुम्हें खाने की भी तमीज़ तुम्हारी अम्मा ने नहीं सिखाई। इतनी चप-चप की आवाज़ निकालते है क्या खाते समय"
पान्डे जी अचकचा गये। खाना छोड़ दिया उन्होने। रमा ने सोचा क्या इसे ही शालीनता कहते है।