सेवानिवृत्त नहीं सेवा प्रवृत्त
सेवानिवृत्त नहीं सेवा प्रवृत्त
यह उस समय की बात है जब ऑफिस में बायोमैट्रिक जैसी कोई चीज नहीं होती थी, लोग समझते थे कि सरकारी कर्मचारी बिना काम किए ही वेतन लेते हैं ।उस समय में भी मैडम के कारण पूरा ऑफिस समय से पहले ही लग जाता था, और देर तक बैठने के लिए भी मैडम की अनुमति अनिवार्य थी। मैडम का सोचना था, देर तक बैठने वाले या तो वह होते हैं जो अपना काम समय पर नहीं कर सकते, या, भ्रष्टाचारी होते हैं। पूरे कार्यकाल में मैंने कभी भी मैडम को ना तो छुट्टी लेते देखा ,और ना ही लेट आते। मैडम की एक ही बेटी थी वह भी दूर रहती थी । उनके पति का स्वर्गवास हो चुका था। मैडम के कार्यकाल में कभी कोई काम रुकता नहीं देखा ।वह अपना वेतन भी तभी स्वीकार करती थीं ,जब पूरा दफ्तर वेतन ले चुका होता था । एक भ्रष्टाचार मुक्त ऑफिस की कल्पना, जैसा कि आज के नेतागण करते हैं, वैसा ही ऑफिस उस समय हमारा शिक्षा विभाग था। जो कर्मचारी अपने आप को इस व्यवस्था में काम करने के लिए अयोग्य पाते थे, बिना कोई कारण मांगे मैडम उनके स्थानांतरण का आवेदन स्वीकार कर लेतीं थी।
मैडम की सेवानिवृत्ति की तारीख भी नज़दीक आती जा रही थी ।कुछ लोग तो इसके कारण बहुत खुश हो रहे थे उन्हें अपने आप को जेल में से छूटने का अहसास हो रहा था। कुछ दुखी भी हो रहे थे कि अब काम की गति का क्या होगा ? कुछ यह जानने को उत्सुक भी थे कि मैडम अब क्या करेंगी ? अपनी सेवानिवृत्ति वाले दिन तमाम औपचारिकताओं के बाद जब मैडम ने भाषण दिया तो उन्होंने कहा कि मैं अब सेवानिवृत्त नहीं हो रही हूं, मैं अब सेवा प्रवृत हो रही हूं। बात बहुत पुरानी थी लेकिन मन को छू गई।
आज अपनी सेवानिवृत्ति वाले दिन मैडम की बहुत याद आई और याद आए उनके कहे हुए शब्द, कि "अब मैं सेवा प्रवृत्त हो रही हूं"! सेवा प्रवृत्त कैसे होते हैं? मैडम मेरी आदर्श थीं। एक बार मैडम से मिलने की इच्छा हुई।डायरी में से पुराना नंबर निकाला और मैडम को लगाया। मैडम ने फोन उठाते ही मुझे मेरे नाम से बुलाया और बोला " कहो कैसी हो "कैसे याद किया ? "आपको मेरा नाम याद कैसे है मैडम? वैसे ही मुस्कुराते हुए दूसरी तरफ से आवाज आई "क्यों "!जैसे तुम्हें मेरा नंबर याद है ।मैडम ने मुझे अपना पता दिया ।
दूसरे दिन गुड़गांव में मैं मैडम के घर थी।बाहर सिक्योरिटी वाले से जब मैडम के घर के बारे में पूछा तो वह मुझे आदर सहित एक घर के बाहर ले गया।उनके घर के बारे में जैसा मैंने सोचा था, वैसा तो कुछ भी ना था। मैडम कॉटन की साड़ी पहने बाहर ही टेबल और चेयर पर वैसे ही बैठी थीं, जैसे कि वह ऑफिस में बैठती थीं। अंदर उन्होंने दो कमरों में और छत पर क्लास लगा रखी थी। सर आते थे और पढ़ाते थे। मैडम ने बताया कि उसके बाद में उन्होंने पढ़ने के इच्छुक गरीब बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया था। 100 या 200 रूपये फीस के साथ वह बच्चों को पढ़ाने के लिए सिलेक्ट करती थी । फीस भी इसलिए लेतीं थी ताकि बच्चों को फ्री में काम करने और करवाने की आदत ना पड़ जाए। पास होने के बाद उनके पैसे अक्सर उनको इनाम के रूप में लौटा दिए जाते थे।बच्चों को 10वीं 12वीं आईआईटी और मेडिकल एंट्रेंस की पढ़ाई करवाई जाती थी। विभाग के बहुत सारे टीचर जो सेवानिवृत्ति के बाद अपनी सेवाएं प्रदान करके सेवा में प्रवृत्त होना चाहते थे, वह सब आ कर अपनी इच्छानुसार समय देकर बच्चों को पढ़ाते थे। वहीं जाकर मुझे पता पड़ा कि उनके पढ़ाए हुए कई बच्चों का सिलेक्शन आईआईटी और मेडिकल में भी हो गया है। मैडम का स्कूल हर उस बच्चे के लिए खुला था जो पढ़ना चाहते थे, आगे भी बच्चों की पढ़ाई का खर्चा अगर सरकार से मिलना हो ,तो वहां से कोशिश करके दिलवाया जाता था, और नहीं तो कुछ और टीचर मिल करके एक एक बच्चे की पढ़ाई का खर्च उठाते थे।
एक कमरे में 4 सिलाई मशीन रखी थी ,और अलमारी में बहुत सारे कपड़े ।मैडम ने बताया कि कई लोग जिनके पास बहुत सारे फालतू कपड़े होते हैं ,वह अपने कपड़े इस अलमारी में छोड़ जाते हैं। अपने आप जरूरतमंद बच्चे उनको अपने साइज का करके पहन लेते हैं ।उनके नाप का करने के लिए तीन डोमेस्टिक साइंस की सेवा प्रवृत्त मैडम आतीं थी, जो कि सिलाई के साथ साथ कपड़ों को काटकर नाप का करना बच्चों को सिखातीं थी। मैडम आज भी उतनी ही व्यस्त थीं, जितनी कि तब होतीं थी। लंच टाइम हो गया था। मैडम ने कहा ,आओ खाना खाते हैं। डायनिंग टेबल पर खाना लग चुका था। "फुलके दाल और चावल" मैडम ने कहा " हम कभी गुरुद्वारे में तो सेवा कर नहीं पाते ,लेकिन" हमारे लिए यही मंदिर यही गुरुद्वारा है" वह लोग जो सेवा करना चाहते हैं, यहां पर खाने का सामान भी दे जाते हैं । यहां पर खाना सबके लिए ही बनता था। तभी उन्होंने रसोई में काम कर रही कांता जी से मेरा परिचय कराया। उन्होंने बताया कि इनके बेटे का सिलेक्शन आईआईटी में हो गया हैै। हालांकि खाना बनाने केे लिए महाराज है, पर यह फिर भी इस मंदिर रूपी घर में आकर अपनी सेवा करना चाहती हैं, इसीलिए यह महाराज का हाथ बटांतीं हैं। ऐसे ही और भी व्यवस्था चल रही थी। एक कमरे में बहुत सारे बिस्तर जैसे बिछे थे। मैडम ने बताया कि कुछ बच्चे जिनके घर में ऐसे हालात नहीं होते, कि वह पढ़ सकें , वह अपने इम्तिहानों तक यहीं ठहर जाते हैं।
मैडम से विदा लेकर जब मैं अपने घर चली तो ऐसा महसूस हो रहा था जैसे मैंने किसी तीर्थ स्थल के दर्शन कर लिए हों ।सेवा में प्रवृत्त होने का अर्थ मुझे समझ में आ चुका था ।और इस दृढ़ निश्चय के साथ मैं भी चली कि मुझे भी सेवानिवृत्त नहीं सेवाप्रवृत्त होना है।