सबक

सबक

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स्कूल का वह समय सुंदर यादों व बातों का एक खूबसूरत पिटारा है। यादों के उन गलियारों में झांकों तो अनगिनत कई किससे बरबस याद आ जाते हैं। कुछ खट्टे, कुछ मीठे और कुछ ऐसे जिनसे मिला सबक आप कभी नहीं भूलते। एक ऐसा ही अपना स्कूली किस्सा मैं आप लोगों के साथ साझा कर रही हूं।

मैं शुरू से ही बातूनी, पढ़ाकू और अपने टीचर्स की फेवरेट स्टूडेंट रही हूं क्योंकि मैं हर काम समय पर करती थी और नंबर भी हमेशा मेरे क्लास में अच्छे आते थे तो सभी टीचर्स की नजरों में मेरी एक अच्छी छवि थी। एक अलग ही रुतबा था मेरा क्लास में। इन सबके कारण मैं थोड़ी लापरवाह भी हो गई थी ।मुझे लगता था कि मैं थोड़ा भी पढूंगी तो भी मेरे मार्क्स अच्छे आएंगे और इसी अति आत्मविश्वास का नतीजा यह हुआ कि नौवीं कक्षा में मेरा रिजल्ट थोड़ा नीचे आ गया । सभी टीचर्स हैरान थे। उन्हें उम्मीद नहीं थी ऐस रिजल्ट की। उन्होंने प्यार से मुझे समझाया कि देखो जो हो गया उससे सबक लो और दसवीं के बोर्ड के लिए खूब मेहनत करो। क्योंकि इसी पर तुम्हारे भविष्य की नींव टिकी है। तुम एक होनहार छात्रा हो। हमारी व तुम्हारे माता-पिता की बहुत सी आशाएं है तुमसे।

सच सदमा तो मुझे भी लगा था रिजल्ट देख कर और मैंने सोचा भी था कि अब जो हो गया सो हो गया पर आगे खूब मेहनत करूंगी। लेकिन मेरे मन में वह खरगोश व कछुए वाली कहानी की तरह एक बात बैठ गई थी कि क्लास के सब बच्चे कछुए हैं और मैं खरगोश। मैं आराम करके भी जीत जाऊंगी। बस फिर क्या था! मैं पढ़ती कम ख्याली पुलाव ज्यादा पकाती । हमेशा हसीन सपनों की दुनिया में खोई रहती थी और जब दसवीं का रिजल्ट आया तो मेरे वो रंगीन सपने एक झटके में बिखर गए।

मेरा रिजल्ट देख किसी को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि इतना खराब रिजल्ट मेरा हो सकता है लेकिन यह सच्चाई थी। मैं एक ही झटके में अर्श से फर्श पर आ गिरी थी।

मेरा स्कूल दसवीं कक्षा तक ही था ।अगर वह 12वीं तक होता तो मेरे अध्यापक मुझ पर विश्वास कर मेरे मन चाहे सब्जेक्ट दे भी देते लेकिन फिर मुझे सबक कहां से मिलता। 11वीं में एडमिशन लेने के लिए मुझे दूसरे स्कूल जाना पड़ा। मेरे मार्क्स के आधार पर मुझे वोकेशनल स्ट्रीम दी गई। मैंने उनसे खूब विनती की। लेकिन मेरी सुनने वाला वहां कौन था और वैसे भी यह कांटे तो खुद मैंने अपने हाथों से बोए थे।

मेरे सारे फेवरेट सब्जेक्ट मुझसे छिन गए और जो सब्जेक्ट मुझे मिले उसमें मेरी बिल्कुल रुचि ना थी । मेरा स्कूल जाने का मन ना करता लेकिन आगे की पढ़ाई के लिए स्कूल तो जाना ही पड़ेगा, यह सोचकर भारी मन से मैंने अपनी किस्मत समझ फिर से मन लगाकर पढ़ना शुरू कर दिया। लेकिन अब हर समय मैं उदास ही रहती थी।

होम साइंस भी मेरा एक सब्जेक्ट था। होम साइंस की मैडम रंजना जी बहुत ही हंसमुख व मिलनसार थी । उनके पढ़ाने का तरीका भी बहुत अच्छा था । मुझे उनकी क्लास में अच्छा लगता था ।वह जो भी काम देती चाहे वह प्रैक्टिकल हो या थ्योरी मैं खूब मेहनत से उसे पूरा करती । एक डेढ़ महीने में ही उन्हें मुझसे बहुत लगाव हो गया था। मेरी पढ़ाई के प्रति लगन देखकर उन्होंने 1 दिन मुझसे से पूछा कि "तुम इतनी होशियार हो तो तुमने यह सब्जेक्ट क्यों लिये।"

 उनकी बात सुन मेरे आंसू निकल आए और मैंने सारी बातें उन्हें बताई।

सारी बातें सुनने के बाद उन्होंने मुझे प्यार से समझाते हुए कहा "देखो गलती तो तुमने की है । अपने बड़ों व अध्यापकों का भरोसा तोड़। लेकिन मैंने एक डेढ़ महीने में जितना तुम्हें देखा वह समझा है , इससे लगता है कि तुम्हें इन सब का बहुत पछतावा है और मैं नहीं चाहती इस एक गलती की वजह से तुम जैसी मेधावी छात्रा का भविष्य खराब हो।

अगर तुम मुझसे वादा करो कि फिर कभी मेहनत से जी नहीं चुराओगी तो मैं प्रिंसिपल मैडम से तुम्हारे मनपसंद सब्जेक्ट के बारे में बात करूंगी।"

मुझ पर विश्वास कर उन्होंने प्रिंसिपल मैडम से मेरे बारे में बात की और उनकी वजह से मुझे फिर से मेरे मनपसंद सब्जेक्ट मिल सके। सच रंजना मैडम मेरे लिए किसी फ़रिश्ते से कम नहीं थी। वह एक सच्ची गुरु थी। मैं आजीवन उनका उपकार कभी नहीं भूल पाऊंगी।

इसके बाद मैंने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। अपनी गलती से सबक लेते हुए खूब मेहनत की और 12वीं में शानदार रिजल्ट के साथ सबकी उम्मीदों पर खरी उतरी।


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